मनोविज्ञान चेतना के विकास के रूप में

मनोविज्ञान चेतना के विकास के रूप में 
  • अनेक अनुसंधानों के द्वारा जब मनोवैज्ञानिकों को यह बात स्पष्ट हो गई कि मस्तिष्क एक सम्पूर्ण है और इसे खण्ड़ों में विभाजित नहीं किया जा सकता, तब मनोवैज्ञानिकों ने माना कि चेतना नामक तत्व के द्वारा मस्तिष्क क्रियाशील होता है और व्यक्ति के व्यवहार को संचालित करता है।
  • मनोविज्ञान को चेतना का विज्ञान मानने वाले प्रमुख दार्शनिक- विलियम वुण्ट, विलियम जेम्स, जेम्स सल्ली थे। इस प्रकार 19वीं शताब्दी में मनोविज्ञान चेतना के रूप में विकसित हुआ। (18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध भी)
  • 1879 ई. में विलियम वुण्ट ने जर्मनी के लिपजिंग विश्वविद्यालय के अन्तर्गत प्रथम मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला की स्थापना की। इसी कारण विलियम वुण्ट को प्रयोगात्मक मनोविज्ञान का जनक कहा जाता है।
  • लिपजिंग विश्वविद्यालय का वर्तमान नाम कार्लमार्क्स विश्वविद्यालय है।
  • वुण्ट के द्वारा स्थापित प्रथम प्रयोगशाला का नाम साइकोलॉजिकल इन्स्टीट्यूट था।

विलियम मैक्सीमिलयन वुण्ट

  • प्रथम प्रयोगशाला जो वुण्ट द्वारा स्थापित की गई थी, उसमें अध्ययन का विषय मन था।
  • विलियम वुण्ट ने अपने अध्ययनों के आधार पर बताया कि मन का निर्माण तीन तत्वों से मिलकर होता है-
  • अ. संवेदना, ब. भाव और स. प्रतिमा
  • ये तीनों तत्व मिलकर ही मन को क्रियाशील करते है। इसी आधार पर वुण्ट ने मनोविज्ञान को चेतना का विज्ञान कहा।
  • मनोविज्ञान का जनक विलियम जेम्स को कहा जाता है क्योंकि 1875 में विलियम जेम्स के द्वारा अमेरिका के अन्तर्गत स्नातक छात्रों को एक विषय का शीर्षक ‘मनोविज्ञान और शरीर विज्ञान में सम्बन्ध’ समझाने के लिए अनौपचारिक प्रयोगशाला की स्थापना की थी।
  • इसी समय सिग्मण्ड फ्रायड़ (वियना) भी मन के स्वरूप पर अध्ययन कर रहे थे। उन्होंने बताया कि व्यक्ति के व्यवहार को संचालित करने में केवल चेतन म नही कार्य नहीं करता है।
  • व्यक्ति के द्वारा किये जाने वाले व्यवहार में अनेक ऐसे तथ्य पाये जाते है। जिसके आधार पर यह सिद्ध होता है कि चेतन मन के अलावा अवचेतन और अचेतन मन के महत्वपूर्ण पहलू होते है।

मन के स्थलाकृति पक्ष

अ. चेतन मन  Conscious-

  • मन के जिस भाग का सम्बन्ध तात्कालिक ज्ञान के साथ में होता है उसे चेतन मन कहा जाता है।
  • चेतन मन से प्रत्यक्ष ज्ञान का सम्बन्ध होता है और चेतना में निरन्तरता का गुण पाया जाता है।

ब. अवचेतन Sub Conscious-

  • इसे मन का द्वितीय भाग माना गया है। इस भाग में रहने वाली सामग्री को प्रयत्न करके वापस चेतन स्तर पर लाया जा सकता है।
  • व्यक्ति के सीखने अथवा आदतों के निर्माण का सम्बन्ध मन के इस भाग से होता है।

स. अचेतन मन -

  • मन का यह भाग सबसे विस्तृत (9/10) अथवा बड़ा होता है। इस क्षेत्र में रहने वाली विषय-सामग्री को प्रयत्न करके भी चेतना के स्तर पर नहीं लाया जा सकता है।
  • व्यक्ति के अधिकांश व्यवहारों का नियमन मन के इसी भाग के द्वारा सम्पादित होता है। इस भाग में व्यक्ति की दमित ईच्छाएं, विचार अथवा संवेग निवास करते हैं।
  • इस भाग में रहने वाली सामग्री चेतन मन के निष्क्रिय होने पर या तो स्वतः ही प्रकट होती है या शब्द-साहचर्य विधि, सम्मोहन विधि आदि विधियों द्वारा चेतन के स्तर पर लायी जा सकती हैं।

अचेतन मन की विशेषताएं/कार्यक्षेत्र-

  • 1. स्वप्न का आना
  • 2. नींद में चलना 
  • 3. नींद में बड़बड़ाना
  • 4. पहचानने की भूल
  • 5. लिखने में होने वाली भूल
  • 6. नामों का भूल जाना
  • 7. कामुक ईच्छाओं का निवास स्थान
  • 8. ईड़ प्रवत्ति का मूल स्थान (इदम्-पाशविक प्रवृत्ति)
  • 9. सुध-बुध के नियम से निर्देशित 
  • 10. अतार्किक
  • 11. शैशव स्वरूप 
  • 12. मानसिक रूप सेे विक्षिप्त हो जाना
  • 13. सामान्य व्यवहार का अचानक असामान्य हो जाना
मन का गत्यात्मक पक्ष-

अ. इड़ Id -

  • 1. ईड़ का स्थान अचेतन मन में होता है
  • 2. यह एक पाशविक प्रवृत्ति है
  • 3. एक शिशु अपने जीवन के प्रारम्भ में इड़ स्तर का ही होता हैं।
  • 4. यह सुख के सिद्धान्त पर आधारित होती है।
  • 5. यह निरर्थक अतार्किक होती है
  • 6. इड़ में ही समस्त मूल प्रवृत्तियों का वास पाया जाता है।
  • 7. यह सामाजिक मान्यताओं व परम्पराओं का विरोध करती है।
  • 8. इसमें नैतिकता का अभाव पाया जाता है
  • 9. इड़ की प्रवृत्ति को दिशा देने का कार्य ईगो करता है।

ब. इगो Ego -

  • 1. ईड़ व सुपर ईगो के मध्य यह मध्यस्थता का कार्य करता है।
  • 2. यह यथार्थ के सिद्धान्त पर आधारित होता है।
  • 3. समें तार्किक गुण पाया जाता है
  • 4. स्वरक्षा का भाव पाया जाता है
  • 5. वास्तविकता को समझने का प्रयास करता है
  • 6. नैतिक परम्पराओं एवं मान्यताओं को कुछ सीमा तक स्वीकार भी करता है।

स. सुपर ईगो - 

  • 1. इसका स्थान चेतन मन में होता है।
  • 2. यह पूर्णतः नैतिक नियमों, परम्पराओं एवं आदर्शों पर आधारित होता है।
  • 3. यह देवीय सिद्धांत पर कार्य करता है
  • 4. इसमें तार्किक गुण पाया जाता है
  • 5. यह स्थिरता के गुण को धारण करता है
  • 6. मानवीय गुणों से ऊपर होता है।

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