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किशोरावस्था

किशोरावस्था
किशोरावस्था

  • अंग्रेजी शब्द Adolescen ‘एडोलेन्स’ लैटिन शब्द एडोलसीयर से बना है जिसका अर्थ परिपक्वता की तरफ बढना अर्थात् शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, नैतिक रूप से।

किशोरावस्था विकास केे सिद्धान्तः

1. आकस्मिक या त्वरित विकास का सिद्धांतः- 

  • स्टेनली हॉल के अनुसार इस अवस्था में होने वाले परिवर्तन एकदम व अचानक होता है।

2. क्रमिक विकास का सिद्धांतः थॉर्नडाइक, किंग, हालिंगवर्थ 

  • हैडो कमेटी के अनुसार किशोरावस्था में बालक के अंतर्गत एडोलेन्स नामक हार्मोन स्रावित होता है। जिसके कारण बालक की नसों में एक विशेष प्रकार का ज्वार उत्पन्न होता है। यदि इस ज्वार को सही दिषा की तरफ मोड दिया जाये तो बालक का सर्वांगीण विकास संभव है।
  • जरसील्ड के अनुसार ‘‘किशोरावस्था वह समय हैं जिसमें विकासशील व्यक्ति बाल्यावस्था से परिपक्वता की तरफ बढता हैं।’’
  • स्टेनली हॉल ‘‘ किशोरावस्था संघर्ष, तूफान, तनाव या विरोध की अवस्था है।’’
  • किलपैट्रिक के अनुसार ‘‘किशोरावस्था जीवन का सबसे कठिन काल है।’’

किशोरावस्था का विभाजन 

  • 1. पूर्व किशोरावस्था- 12 से 16 वर्श
  • 2. उत्तर किशोरावस्था- 16 से 19 वर्श
  • हरलाक के अनुसार 17 वर्श का समय दोनों अवस्थाओं का विभाजन बिन्दु है।

किशोरावस्था की विशेषताएं

1. पारगमन अवधिः
  • किशोरावस्था की यह मुख्य विशेषता होती है कि यह एक पारगमन अवधि होती है।
  • कारण- इस अवस्था के दौरान व्यक्ति न तो बालक होता है और न ही व्यस्क होता है। वह अपनी बाल्यावस्था से गुजर गया होता है और व्यस्क अवस्था की ओर अग्रसर होता है।
2. संक्रमणावस्थाः
  • किशोरावस्था को संक्रमण की अवस्था माना जाता है क्योंकि किशोरावस्था, बाल्यावस्था एवं प्रौढ़ावस्था के बीच की अवस्था है। जब व्यक्ति शारीरिक सामाजिक और आर्थिक रूप से प्रौढ समस्याओं में अपनी भूमिका अदा करने लगता है तो वह प्रौढ समझा जाता है। लेकिन वह व्यक्ति तब तक प्रौढ नही माना जा सकता जब तक उसके विचार प्रौढों की तरह अनुभव पर आधारित न हो।

3. कामजागरणः

  • किशोरावस्था में कामशक्ति के विकास पाया जाता है। इसी कामशक्ति के विकास के कारण बालक में स्व प्रेम की भावना का उदय होता हैं। वह अपने शरीर की सुन्दरता के प्रति अधिक सचेत हो जाता है, इस स्वप्रेम को फ्रायड ने नार्सिज्यम कहा है।

4. अपराध प्रवृति का विकासः

  • इच्छापूर्ति में बाधा, निराशा और असफलता मिलने के कारण किशोरों में अपराध प्रवृति जन्म लेती है। इस संबंध में वेलेन्टाइन ने कहा है ‘‘किशोरावस्था अपराध प्रवृति के विकास का नाजुक काल है।’’

5. परावर्तकताः

  • प्रारम्भिक किशोरावस्थाा की एक विशिष्ट पहचान परावर्तकता कहलाती है। इसका अर्थ यह है कि किशोर लड़के-लड़कियां अपने सम्बन्ध में अधिक चिन्तन करते है।

6. अहम तादात्म्यः


  • इरिकसन के अनुसार ‘‘ किशोरावस्था मके किशोर अपनी एक पहचान बना लेता है, जिसे अहम तादात्म्य कहते है और वह स्वयं समझने लगता है कि मैं स्वयं अपने भविष्य का निर्माता हूं।’’

7. वीरपुजा की भावना का उदयः


  • किशोरावस्था में वीरों, नेताओं, महापुरूषो के आदर्श गुणों से प्रभावित होकर उनका अनुयायी बन जाता है।

8. धार्मिक भावना का उदय होनाः


  • इस अवस्था में धार्मिक चेतना का उदय होता है किशोर ईश्वर के किसी न किसी रूप से प्रभावित होकर ईश्वर में विश्वास करने लगता है।

9. स्वायत्तताः


  • किशोरावस्था की मुख्य विशेषता स्वायत्तता भी है। किशोरावस्था के विकास के क्रम में लड़कों एवं लड़कियों में स्वायत्तता तथा आत्मनिश्चय की आवश्यकता बढती जाती है। जैसे-जैसे व्यस्कों से समानता का बोध व विश्लेषण करने की योग्यता में वृद्धि होती है वैसे-वैसे व्यस्कों के आदेश को स्वीकार करना किशोरों के लिए कठिन कार्य हो जाता है।

10.व्यवसाय चुनाव की चिन्ताः 


  • किशोरावस्था में कल्पना प्रवृति के उन्नयन के कारण किशोरों में कलात्मक शक्ति का विकास होता है जो किशोरों को कलाकार, कहानीकार, उपन्यासकार, संगीतकार आदि बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देती है।

किशोरावस्था में शारीरिक विकास 

1.भारः

  • जन्म के समय बालक में 7.15 पौंड भार जबकि बालिका में 7.13 पौंडभार पाया जाता है।
  • जब 6 वर्ष की अवस्था में यह भार बढकर 30 से 32 पौंड के लगभग हो जाता है। किशोरावस्था के प्रारम्भ में भार लगभग 90 पौंड के आसपास हो जाता है बालकों का भार किशोरावस्था में बालिकाओं की अपेक्षा लगभग 4 से 4.5 किलो अधिक होता है।

2. सिर एवं मस्तिष्क:

  • वडवर्थ के अनुसार 15-20 वर्ष की आयु में बालक का अधिकतम या उच्चतम मानसिक विकास हो जाता है।
  • लगभग 16 वर्ष की आयु तक सिर एवं मस्तिष्क का विकास पूर्ण हो जाता है। एक पूर्ण मस्तिष्क का भार 1200-1400 ग्राम के मध्य होता है।

3. मांसपेशीयः 

  • किशोरावस्था के दौरान मांस-पेशियों का भार कुल शरीर के भार का लगभग 45 प्रतिशत हो जाता है। 

4. हड्डियांः 


  • शैशवावस्था में-270
  • बाल्यावस्था में- 350
  • किशोरावस्था में- 206

5. लम्बाईः 

  • किशोरावस्था के दौरान बालक और बालिकाओं की लम्बाई में तीव्रगति से वृद्धि होती है। 12 वर्ष की अवस्था में बालक की लम्बाई 138.3 सेमी. के लगभग और 18 वर्ष में लगभग 161.8 सेमी हो जाती है।
  • 12 वर्ष में बालिका की लम्बाई लगभग 139.2 सेमी
  • 18 वर्ष में बालिका की लम्बाई लगभग 151.6 सेमी

संवेगात्मक विकासः

  • ब्रिजेज के अनुसार बालक में सभी संवेग विकसित हो जाते है। अंग्रेजी शब्द इमोशन की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द इमोवियर से हुई है। जिसका तात्पर्य होता है- उत्तेजित होना अथवा गति करना।

संवेगात्मक विकासः

  • जन्म -  उत्तेजना
  • 3 माह में - उत्तेजना, पीडा, प्रसन्नता
  • 6 माह में - उत्तेजना, पीडा (भय, घृणा,क्रोध), प्रसन्नता
  • 12 माह में - उत्तेजना, पीडा (भय, घृणा,क्रोध), प्रसन्नता,उल्लास, बडों के प्रति प्रेम
  • 1.5 वर्ष में - उत्तेजना, पीडा (भय, घृणा,क्रोध), प्रसन्नता,उल्लास, बडों के प्रति प्रेम, बडों व छोटों के प्रति प्रेम
  • 2 वर्ष में - उत्तेजना, पीडा (भय, घृणा,क्रोध, ईर्ष्या), प्रसन्नता,उल्लास, बडों के प्रति प्रेम, बडों व छोटों के प्रति प्रेम

  • किशोरावस्था के अन्तर्गत सभी संवेग अपना स्थायी रूप धारण करने लगते है और जब वे प्रकट होते है ‘व्यवहार में’ तो उनकी अधिकता काफी समय तक बनी रहती है।
  • 1. भाव प्रधान जीवन
  • 2. विरोधी मनोदशाएं
  • 3. संवेगों में विभिन्नताएं
  • 4. काम भावना की उत्पति
  • 5. वीर पूजा
  • 6. चिन्तायुक्त व्यवहार
  • 7. स्वतंत्रता की भावना
  • 8. स्वाभिमान की उत्पत्ति
  • 9. अपराध प्रवृत्ति






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