रक्त का थक्का जमना


  • रक्त का थक्का या स्कन्दन प्रक्रिया की खोज हॉवेल द्वारा की गई थी।
  • रक्त का थक्का जमना एक प्रक्रिया है जो निम्नलिखित चरणों में पूरी होती है-
पहला चरण -
  • क्षतिग्रस्त ऊतक से थ्रोम्बोप्लास्टिन नामक लाइपोप्रोटीन विमुक्त होता है। 
  • क्षतिग्रस्त रुधिर कोशिकाओं से निकली रुधिर प्लेटलेट्स का विघटन होकर एक प्लेटलेट तत्त्व-3 बनता है।
  • थ्रोम्बोप्लास्टिन तथा प्लेटलेट्स तत्त्व-3 अब प्लाज्मा में उपस्थित कैल्सियम आयनों तथा प्लाज्मा प्रोटीन से मिलकर प्रोथ्रोम्बिनेज नामक एंजाइम बनाते हैं।
दूसरा चरण -
  • प्लाज्मा में हिपैरिन नामक एक पदार्थ होता है जो रक्त को जमने नहीं देता। इसको निष्क्रिय होना आवश्यक है। इसलिए कैल्सियम आयन Ca की उपस्थिति में प्रोथ्रोम्बिनेज हिपैरिन को निष्क्रिय कर देता है। 
  • साथ ही प्रोथ्रोम्बिनेज, प्रोथ्रोम्बिन नामक निष्क्रिय प्रोटीन को सक्रिय थ्रोम्बिन में बदल देता है।
तीसरा चरण
  • प्लाज्मा में घुलनशील फाइब्रिनोजन नामक प्रोटीन को थ्रोम्बिन द्वारा सक्रिय फाइब्रिन अणुओं में बदल दिया जाता है। 
  • फाइब्रिन के अणु मिलकर पतले रेशे बनाते हैं। इनसे एक घना जाल बनकर चोट को ढक लेता है। इस जाल में रुधिर के कण फंस जाते हैं और लाल थक्का बन जाता है।
नोट:-
  • विटामिन K की उपस्थिति में यकृत में प्रोथ्रोम्बिन तथा फाइब्रिनोजन प्रोटीन का निर्माण होता है। इसकी कम से रुधिर का थक्का नहीं बनता।

रक्त के कार्य:-
  1. हीमोग्लोबिन की सहायता से रुधिर अवशोषित ऑक्सीजन को शरीर के विभिन्न ऊतकों तक पहुंचाता है तथा विमुक्त कार्बन डाइऑक्साइड को वापस उत्सर्जी अंगों में ले जाता है।
  2. प्लाज्मा द्वारा भोजन का परिवहन करता है।
  3. उत्सर्जी पदार्थों को ‘वृक्क’ तक ले जाता है।
  4. शरीर का ताप नियन्त्रण करता है।
  5. थक्का बनाकर रक्त प्रवाह रोकना।
  6. रोगों के बचाव करना।
  7. लिम्फोसाइट्स द्वारा घाव भरना।


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