राजस्थान के सांस्कृतिक संस्थान
जयपुर में गुणीजन खाना महाराजा प्रतापसिंह के समय स्थापित हुआ।राजस्थान में मांड गायकी की सुप्रसिद्ध कलाकार बीकारेर की स्वर्गीय अल्ला जिलाई बाई थीं।
राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट्स (मदरसा हुनरी) की स्थापना महाराजा रामसिंह ने 1857 ई. में की तथा रामप्रकाश थियेटर की स्थापना की जो उत्तर भारत का पहला रंगमंच था।
भारतीय लोक कला मंडल उदयपुर की स्थापना पद्मश्री स्व. देवीलाल सामर द्वारा सन् 1952 में की गई। इस संस्थान की स्थापना का मुख्य उद्देश्य लोक कलाओं, प्रदर्शनोपयोगी लोक कलाओं और पुतलियों के शोध सर्वेक्षण, प्रशिक्षण एवं लोक कलाओं का प्रसार करना है।
राजस्थान में कलाकारों को अधिकाधिक मंच प्रदान करने के उद्देश्य से भारत सरकार द्वारा स्थापित सात सांस्कृतिक केन्द्रों में से राजस्थान को तीन केन्द्रों का सदस्य बनाया गया। उदयपुर में सन् 1952 में पश्चिम-क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की स्थापना की गई।
उदयपुर में हस्तशिल्पियों को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से शिल्पग्राम की स्थापना की गई।
कला धरोहर का संरक्षण तथा राज्य के कलाकारों को प्रोत्साहन देने के लिए जवाहर कला केन्द्र, जयपुर की स्थापना अप्रैल, 1993 में की।
उस्ताद नजीर खां को मेवाती घराने का प्रवर्तक माना जाता है।
रागमाला और राग मंजरी की रचना पुण्डरीक विट्ठल द्वारा की गई।
जवाहर कला केन्द्र, जयपुर
- राज्य की पारम्परिक व विलुप्त हो रही कलाओं का संरक्षण व संवर्द्धन करने के उद्देष्य से इसकी स्थापना की गई। वास्तुकार श्री चार्ल्स कोरिया थे।रूपायन संस्थान बोरूंदा, जोधपुर
स्व. कोमल कोठारी ने स्थापना कीं
ललित कला अकादमी, जयपुर
- राजस्थान की दृश्य तथा शिल्प कला के विकास और प्रोत्साहन के लिए 24 नवम्बर, 1957 को स्थापना की गई।जयपुर कत्थक केन्द्र, जयपुर 1978
राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, जोधपुर 1957
रविन्द्र रंग मंच, जयपुर 15 अगस्त 1963
पश्चिमी क्षेत्र सांस्कृतिक संस्थान, उदयपुर 1986
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