पिछले वर्षों में आरएएस मुख्य परीक्षा में पूछे गए राजस्थान सामान्य अध्ययन के प्रश्न

 

पिछले वर्षों में आरएएस मुख्य परीक्षा में पूछे गए राजस्थान सामान्य अध्ययन के प्रश्न

बैराठ सभ्यता (RAS 1994) 

  • जयपुर के पास स्थित पुरातात्विक स्थल जिसका प्राचीन नाम विराटनगर था, यहां आर्य सभ्यता, महाभारत, मौर्य शासन एवं कुषाणकालीन सभ्यता के अवशेष मिले हैं। 
  • बैराठ में स्थित बीजक की पहाड़ी से सम्राट अशोक के काल के गोल बौद्ध मंदिर, स्तूप एवं मठ के अवशेष मिले हैं। 
  • बैराठ में शैल चित्र भी प्रकाश में आये हैं जिससे इसको प्राचीन युग की चित्रशाला कहा गया है। 
  • यहां से अशोक के 250 ई. पूर्व के दो अभिलेख मिले है, तथा मध्यकालीन सभ्यता के अवशेष भी बैराठ से मिले हैं। यहां पहला उत्खनन दयाराम साहनी 1936-37 में और बाद में डॉ. एन. बनर्जी ने कराया।

कुम्भलगढ़ (RAS 1996)

  • राजसमंद जिले में स्थित यह एक गिरी दुर्ग है। इसका निर्माण महाराणा कुंभा ने मौर्य शासक सम्प्रति द्वारा निर्मित प्राचीन दुर्ग के ध्वंसावेशषों पर अपनी रानी कुम्भलदेवी की स्मृति में शिल्पी मंडन की देखरेख में करवाया था। 
  • इसका निर्माण काल 1448-1458 ई. है। इस दुर्ग में एक लघु दुर्ग 'कटारगढ़' है जिसे कुम्भा ने अपने निवास के लिए बनवाया था, झाली रानी की मालिडयार, मामा देव का कुंड, झालीबाब बावड़ी, कुंभस्वामी, विष्णु मंदिर, उडणा राजकुमार (पृथ्वीराज) की छतरी बनी हुई है। 
  • यह मेवाड़ की आंख है। टॉड ने इसकी तुलना एस्ट्रस्कन से की है। 

गमेती (RAS 1997)

  • भील जनजाति में गांव का मुख्यिा को गमेती कहते हैं। यह सामाजिक, आर्थिक व व्यक्तिगत झगड़ों को हल करता है।

गोडावण (RAS, 2008)

  • उत्तर राज्य पक्षी गोडावण को भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के अन्तर्गत पूर्ण संरक्षण प्राप्त है। आज भी यह पक्षी राष्ट्रीय मरु उद्यान (जैसलमेर), सोकलिया (अजमेर) तथा सोरसन (बारां) में पाया जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम क्रायोटीस नाइग्रीसैप्स।

हरित लेखांकन (Green Audit)


  • उत्तर- किसी औद्योगिक इकाई या किसी संस्थान की जाँच पड़ताल उसके द्वारा पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को जानने के उद्देश्य से करना हरित लेखांकन कहलाता है।

कृपालसिंह शेखावत (RAS 2003)

  • सीकर जिले के मऊ गांव में 1922 को जन्मे स्व. कृपाल सिंह ने ब्लू पॉटरी को नया रूप देकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाया। इन्होंने ब्लू पॉटरी में 25 रंगों का प्रयोग किया। 
  • वर्ष 1974 में पद्मश्री से सम्मानित किया। वे कनागुरु के नाम से प्रसिद्ध थे। 

मोलेला गांव  (RAS 2003)

  • राजसमंद जिले के नाथद्वारा के निकट स्थित मोलेला गांव मिट्टी पकाकर मूर्तियां (मृण्मूर्तियां) बनाने की कला टेरीकोटा व खिलौने बनाने के लिए प्रसिद्ध है। वे मिट्टी में गधे की गोबर मिलाकर बनाये जाते हैं।

इन्दिरा गाँधी नहर के अपवाह जिले 

  • श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर, चुरू, जोधपुर, जैसलमेर व बाड़मेर। 

सूक्ष्म वित्त (Micro finance) 

  • लघु स्तरीय उद्योग धन्धों के लिए अधिकतम बीस लाख तक की सीमा में लेना सूक्ष्म वित्त कहलाता है।

रम्मत (RAS 1998)

  • लोक नाट्य जो ऐतिहासिक लोक नायकों एवं पौराणिक तथ्यों के आधार पर रगमंच पर अभिनीत काव्य रचनाएं हैं। बीकानेर, जैसलमेर, फलौदी में अधिक प्रचलित है। अमरसिंह की रम्मत, हेडाऊ मेरी री रम्मत, स्वतंत्र बावनी प्रमुख रम्मते हैं।

पंडित दुर्गालाल (RAS 2007)

  • जयपुर शैली के कथक नृत्यकार जिनकी 31 जनवरी, 1990 को लखनउ में कार्यक्रम प्रस्तुति के दौरान मृत्यु हो गई।

भूरसिंह शेखावत (RAS 2003)

  • धोंधलिया बीकानेरवासी की एक विद्या है जो हमीरगढ़, मांडल एवं सांगानेर में मंचित होती है। बगसूलाल खमसेरा (भीलवाड़ा) को इस ख्याल का पितामह कहते हैं।

कुकड़ला (RAS 2007) 

  • राजस्थान में गाया जाने वाला लोकगीत जो जंवाई के आने पर रात्रि में तथा राति जोगा में प्रभातिवेला में मटकी में मुंह डालकर कुकड़ा की आवाज निकालने के साथ गाया जाता है।

चित्र शाला (RAS 1997)

  • बूंदी रियासत में राव उम्मेद सिंह के समय (1749-73) बूंदी के राजमहल में बूंदी शैली में बनी भित्ति चित्रों की रंगशाला है। ये चित्र बूंदी शैली के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं। इसे भित्ति चित्रों का स्वर्ग कहते हैं।

किशनगढ़ शैली की चित्रकला (RAS 1994)

  • कला, प्रेम, भक्ति का सामंजस्य जिसमें श्वेत व गुलाबी रंग की प्रधानता है। चांदनी रात की संगीत गोष्ठी चित्रित ग्रन्थ है। बणी-ठणी, राधा-कृष्ण, गीतगोविन्द, कृष्ण लीला आखेट प्रमुख विषय हैं।

तारा भांत की ओढ़नी

  • आदिवासी स्त्रियों द्वारा ओढ़ी जाने वाली सबसे लोकप्रिय ओढ़नी इसकी जमीन भूरी-लाल और किनारों का छोर काला षट्कोणीय आकृति वाला तारों जैसा होता है।

अंगरखी (RAS 1994)

  • ग्रामीण पुरुषों द्वारा कमर से ऊपरी शरीर पर पहना जाने वाला वस्त्र जिसे बगतरी भी कहते हैं। यह विविध आकार व रंग में बनाई जाती थी। कानों, मिरजाई, गाबा, दुतई, तनसुख आदि भी कहते हैं।

राजस्थान दिवस/30 मार्च 1949

  • 30 मार्च, 1949 को पूर्व निर्मित संयुक्त राजस्थान में 4 रियासतें- जयपुर, जोधपुर, बीकानेर व जैसलमेर को विलय कर वृहद राजस्थान बनाया। इस दिन 30 मार्च को राजस्थान दिवस के रूप में मनाते हैं।

लाग-बाग (RAS 1994, 99)

  • उत्तर- रियासती शासन में जागीरदारों/सामंतों द्वारा किसानों से लगान/कर के अतिरिक्त लिया जाने वाला उपकर, जैसे की भेट, बंदोली री लाग आदि। बाई जी का हाथ खर्च, खिचड़ी लाग, हल लाग, माताजी

मत्स्य संघ (RAS, 1999)

  • अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली व नीमराना (ठिकाना) को मिलाकर 18 मार्च, 1948 को मत्स्य संघ बना, जिसकी राजधानी अलवर, राजप्रमुख उदयभान सिंह (धौलपुर) व प्रधानमंत्री शोभाराम बने।

कृष्णा कुमारी विवाद (बलिदान) (RAS 2003)

  • मेवाड़ महाराणा भीमसिंह की पुत्री कृष्णाकुमारी थी किसका सम्बन्ध जोधपुर के महाराज भीमसिंह के साथा हुआ परंतु 1803 ई. में भीमसिंह की मृत्यु हो जाने पर कृष्णा कुमारी का संबंध जयपुर महाराजा जगतसिंह से कर देने पर राठौड़ों ने अपनी मानहानि समझी। 
  • जोधुपर महाराजा मानसिंह और जयपुर के जगतसिंह में इसी को लेकर गिंगोली का युद्ध हुआ। जोधपुर सेना की हार हुई। अंत में राजकुमारी कृष्णा कुमारी की जान गवाने पर यह विवाद शांत हुआ।

1857 ई. का स्वतंत्रता संग्राम में ठाकुर कुशालसिंह का योगदान (RAS 2007)

  • मारवाड़ रियासत के आउवा ठिकाने के ठिकानेदार ठाकुर कुशालसिंह थे। एरिनपुरा सैनिक छावनी के पूर्बिया सैनिक (जोधपुर लीजन), आसोप ठाकुर शिवनाथसिंह, आलनियावास ठाकुर अजित सिंह, गूलर के बिशनसिंह की सेना व अन्य सामंतों की सेना का नेतृत्व ठाकुर कुशाल सिंह ने किया। 
  • कुशाल सिंह की संयुक्त सेना ने 8 सितंबर, 1857 को जोधपुर के तख्तसिंह की सेना एवं लेफ्टिनेट हीथकोट की संयुक्त सेना को बिथौड़ा के युद्ध (पाली) में हराया। 
  • चेलावास के युद्ध जिसे गौरों और कालों का युद्ध कहते हैं, में ए.जी.जी. लारेन्स को हराया। जोधपुर पॉलिटिकल एजेंट मोकमोसन को मारकर उसके शव को किले के दरवाजे पर लटकाया।

जय नारायण व्यास (RAS 2000)  

  • प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी और गांधीवादी नेता जिनका जन्म फरवरी, 1899 ई. में जोधपुर में हुआ। उन्हें लोकनायक और शेर-ए-राजस्थान की उपाधि से विभूषित किया गया। 1920 ई. में मारवाड़ सेवा संघ की स्थापना की और अक्टूबर, 1929 ई. में मारवाड़ राज्य लोक परिषद् की स्थापना की। 
  • 'आगी बाण' नामक प्रथम राजनैतिक समाचार पत्र का ब्यावर से प्रकाशन, 'तरुण राजस्थान' और 'अखण्ड भारत' पत्रों का सम्पादन किया और अंग्रेजी पाक्षिक 'पीप' का सम्पादन किया। अप्रैल, 1951 से मार्च, 1952 तक एवं नवम्बर, 1952 से नवम्बर, 1954 तक राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और राज्य सभा सदस्य रहे।

सागरमल गोपा (RAS 1999)

  • सागरमल गोपा का जन्म 3 नवम्बर, 1900 को जैसलमेर के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। जैसलमेर के शहीद शिरोमणि जिन्होंने जैसलमेर में राजनीतिक चेतना जाग्रत की व शिक्षा के प्रचार-प्रसार पर जोर दिया। 
  • इन्होंने 'जैसलमेर में गुण्डाराज' पुस्तक छपवाकर वितरित की तथा अपने क्रान्तिकारी भाषणों एवं ओजपूर्ण लेखों से राजशाही के शत्रु हो गए और निष्कासित होकर नागपुर चले गए। वहां से भी जन-जाग्रति व आक्रोश पैदा करने वाली गतिविधियां जारी रखीं। 
  • सन 1941 ई. में इनको राजद्रोह के आरोप में कैद कर लिया। छः वर्ष की सजा हुई। जेल में इनके साथ अमानुषिक व्यवहार किया गया। जेल में इनको जला दिया गया जिससे उनको मृत्यु हो गई। उन्होंने 'आजादी के दीवाने' नामक पुस्तक लिखी थी।

मोतीलाल तेजावत (RAS 2003)

  • मोतीलाल तेजावत उदयपुर में कोलियारी गांव के थे। झाडौल ठिकाने के कामदार बने किन्तु शीघ्र नौकरी छोड़कर जनजातियों के राजनीतिक जागरण में लग गए। और 1921 ई. में बैठ-बेगार और लाग-बाग के विरुद्ध आन्दोलनरत भीलों का नेतृत्व संभाला और 'एकी आन्दोलन' चलाया। 
  • भीलों पर अत्याचारों, लाग-बाग व बैठ-बेगार समाप्त करने सम्बन्धी मांगों को लेकर 'नीमड़ा गांव' (विजयनगर) में विशाल सम्मेलन बुलाया जिसमें सेना की गोलीबारी में 1200 भील मारे गए तेजावत भूमिगत हो गए। 1929 ई. में ईडल पुलिस के समक्ष समर्पण किया।

प्रजामण्डल का स्वतंत्रता आन्दोलन में महत्त्व (RAS 1994) 

  • हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन 1938 ई. में रियासत की जनता को जाग्रत कर संगठित करने के प्रस्ताव को प्रजामण्डल आन्दोलन का सूत्रपात माना जाता है। राजस्थान में हुए प्रजामण्डल आन्दोलनों के कारण यहां की देशी रियासतों को झुकना पड़ा जिससे उत्तरदायी सरकार की स्थापना हो सकी। 
  • देशी रियासतों में राष्ट्रीयता की भावना जाग्रत हुई और उनको राष्ट्र की मुख्य धारा में सम्मिलित होने का अवसर मिला। विभिन्न देशी राज्यों में स्थापित प्रजामण्डलों में कांग्रेस के कार्यक्रमों और नीतियों को लागू करने का प्रयास किया तथा स्वतंत्रता पश्चात् देशी राज्यों के एकीकरण का कार्य आसान सम्भव हुआ।

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