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केशवदास

 

केशवदास


जन्म : 1555 ई. में

मृत्यु : 1617 ई. के आसपास 


ओरछा नरेश महाराजा रामसिंह के भाई इन्द्रजीत सिंह की सभा में इनका पांडित्य के कारण अत्यधिक सम्मान था। 

इनके द्वारा लिखे गए सात ग्रंथ मिलते हैं- कविप्रिया, रसिकप्रिया, रामचन्द्रिका, वीरसिंहचरित्र, विज्ञानगीता, रतनबावनी और जहाँगीरजसचन्द्रिका। 

इनमें से रामचन्द्रिका (1601 ई.) हिन्दी रामकाव्य परंपरा के अन्तर्गत एक विशिष्ट कृति है। 

विद्वानों का मत है कि केशव ने वाल्मीकि रामायण और तुलसी के 'रामचरितमानस' से प्रेरणा ग्रहण करते हुए 'रामचन्द्रिका' की रचना की। 

केशव विद्वान और आचार्य तो थे-पर उन्हें कवि हृदय नहीं मिला था। केशव ने राम को मर्यादा - पुरुषोत्तम के रूप में नहीं, एक रीतिकालीन वैभव सम्पन्न सामंत के रूप में प्रस्तुत किया। 

अलंकार और द्वन्द्वकला के प्रदर्शनकारी चमत्कारवाद के कारण 'रामचन्द्रिका' आभाहीन होती गई। फिर केशव का समय तो भक्तिकाल है, पर प्रवृत्तियाँ रीतिकालीन है। पंडितई उनके लिए बोझ है जिसके नीचे उनका कवि दबकर रह गया है।

तुलसीदास ने रामभक्ति काव्य को इतना उत्कर्ष प्रदान किया कि आगे के कवियों के लिए

नवीन सर्जनात्मक संभावनाएँ लगभग समाप्त हो गई। यह भी सच है कि तुलसी के पश्चात राम

भक्त कवि अधिक नहीं हुए। अग्नदास ने 'कुण्डलिया रामायण' और 'ध्यानमंजरी' में रामकथा का

वर्णन किया है। प्राणचंद चौहान ने 'रामायण-महानाटक' तथा हृदयराम ने 'हनुमन्नाटक' का सृजन

किया। लालदास ने 'अवध-विलास' लिखी।

कालांतर में कृष्णभक्तिधारा की मुधरोपासना का प्रभाव रामभक्ति साहित्य पर भी पड़ा। इस

धारा में भी सखी भाव से राम की उपासना प्रारंभ हुई और तत्सुखी शाखा की स्थापना हुई, जिसमें भक्त अपने को सीता की सखी रूप में रखकर राम की भक्ति में प्रवृत्त होता है। जनकपुर के भक्तों ने सीता को प्रधानता देकर कुछ राम काव्य रचे। 1703 ई. में  रामप्रियाशरण दास ने सीतायन नामक काव्य रचा। 'तत्सुखी शाखा' के समान 'स्वसुखी' भी प्रवर्तित हुई। 

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