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भारत की पहली महिला कैबिनेट मंत्री बनी थी राजकुमारी अमृत कौर

भारत की पहली महिला कैबिनेट मंत्री बनी थी राजकुमारी अमृत कौर
राजकुमारी अमृत कौर

भारत की पहली महिला कैबिनेट मंत्री राजकुमारी अमृत कौर का जन्म 2 फरवरी, 1889 को लखनऊ में हुआ। वह पंजाब के कपूरथला राजघराने के उत्तराधिकारियों में से एक राजा सर हरनाम सिंह की पुत्री थी।
उनकी उच्च शिक्षा इंग्लैंड में हुई। उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से एमए की डिग्री हासिल की। उन्होंने भारतीय कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की तथा वह समाज सुधार एवं राजनीति के क्षेत्र में सक्रिय हुई।

महात्मा गांधी उन्हें पागल और बागी कहकर बुलाते थे


अपनी शिक्षा पूरी होने के बाद वह भारत लौट आई और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गई। उनकी महात्मा गांधी से पहली मुलाकात वर्ष 1934 में हुई। उन्होंने महात्मा गांधी के द्वारा चलाए गए वर्ष 1930 में नमक सत्याग्रह और वर्ष 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया। वह इस दौरान जेल भी गई।

महात्मा गांधी अक्सर अपने पत्रों में अमृत कौर को 'मेरी प्यारी बेवकूफ' और 'बागी'  बुलाते थे और आखिर में खुद को तानाशाह भी बुलाते थे।

स्वतंत्रता के बाद पहली स्वास्थ्य मंत्री बननी 


अंग्रेजी शासन द्वारा उन्हें शिक्षा सलाहकार बोर्ड का सदस्य मनोनीत किया गया। वह प्रथम महिला थी, जो इस बोर्ड की सदस्य बनीं। हालांकि, बाद में 'भारत छोड़ो आंदोलन' से जुड़ने के दौरान उन्होंने इसकी सदस्यता से इस्तीफा दे दिया।

यूनेस्को के वर्ष 1945 एवं वर्ष 1946 में क्रमश: लन्दन एवं पेरिस में आयोजित अधिवेशन में उन्होंने भारतीय प्रतिनिधिमण्डल के सदस्य के रूप में भाग लिया।

आजादी मिलने के बाद वह जवाहर लाल नेहरू मंत्रिमंडल का हिस्सा बनी। उन्हें स्वास्थ्यमंत्री बनाया गया। वर्ष 1950 में उन्हें 'वर्ल्ड हेल्थ असेम्बली' की अध्यक्ष भी चुना गया। वह वर्ष 1957 तक भारत के स्वास्थ्य मंत्री के पद पर रहीं।
दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की स्थापना उनके कार्यकाल की प्रमुख उपलब्धियों में से एक है।

खेल में थी रुचि


उन्हें खेलों से बड़ा प्रेम था। नेशनल स्पोर्ट्स क्लब ऑफ इंडिया की स्थापना इन्होंने की थी और इस क्लब की वह अध्यक्ष शुरू से रहीं। उनको टेनिस खेलने का बड़ा शौक था।  टेनिस खेलने का उनको इतना शौक था कि कई बार उन्होंने चैम्पियनशिप भी जीती।

निधन


वर्ष 1957 के बाद उन्होंने हालांकि मंत्री पद छोड़ दिया, परंतु वह 2 अक्टूबर, 1964 को अपनी मृत्यु तक राज्यसभा की सदस्य रही।

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