हाड़ी रानी



  • हाड़ा राजवंश की राजकुमारी सहल कंवर का विवाह मेवाड़ महाराणा राजसिंह के प्रमुख सरदार रतनसिंह चूण्डावत से हुआ था। उसी समय किशनगढ़ के राजा रूपसिंह की पुत्री चारूमति ने महाराणा राजसिंह को पत्र लिखकर औरंगजेब से बचाकर विवाह कर ले जाने के लिए आमंत्रित किया था।
  • राजसिंह ने अपने सरदारों से वार्तालाप कर औरंगजेब की सेना को रोकने का कार्यभार रतनसिंह चूण्डावत को दिया। युद्ध में जाने से पहले रतनसिंह अपनी नवविवाहित रानी से मिलने गया, जहां पर वह रानी द्वारा दिये गये सम्बल के कारण युद्ध भूमि में जाने को तैयार हो गया। परन्तु युद्धभूमि में जाने से पूर्व बार-बार रानी का चेहरा उसकी आंखों के साने मंडरा रहा था और रानी की याद विचलित कर रही थी और रानी के लिए वह व्याकुल हो रहा था। 
  • रतनसिंह ने अपने विश्वासपात्र सेवक को रानी से कोई सेनाणी (निशानी) लेने के लिए भेजा ताकि वह युद्ध आसानी से जीत सके।
  • रानी को जब सेवक से यह बात पता चली तो उसके सामने धर्म संकट खड़ा हो गया— एक ओर पति के प्रति प्यार था, तो दूसरी ओर चारूमति के सम्मान की रक्षा। परंतु रानी के लिए नारी सम्मान अधिक महत्त्वपूर्ण था।
  • रानी ने तुरन्त निर्णय लिया और अपनी दासी को चांदी का थाल लाने को कहा। थाल अपने हाथ में लेते ही रानी ने तलवार के वार से अपना शीश काट लिया जो थाली में जा गिरा, वहां खड़े सभी लोग आश्चर्यचकित रह गये। सेवक उस सेनाणी को लेकर चूण्डावत के पास गया, जिसे देखकर उसकी भुजाएं फड़क उठी और वह युद्ध के मैदान में दुश्मनों पर काल बनकर टूट पड़ा। वह शत्रु सेना से लड़ते हुए युद्ध भूमि में ही शहीद हो गया।


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