किसी
पदार्थ के, ऊष्मा के संचार द्वारा, सीधे गर्म होने को विकिरण
कहते हैं।
सूर्य
से प्राप्त होने वाली किरणों से पृथ्वी तथा उसका वायुमण्डल गर्म होता है। यही
एकमात्र ऐसी प्रक्रिया है जिससे ऊष्मा बिना किसी माध्यम के, शून्य से होकर भी यात्रा कर सकती है।
सूर्य
से आने वाली किरणें लघु तरंगों वाली होती है जो वायुमण्डल को बिना अधिक गर्म किए
ही उसे पार करके पृथ्वी तक पहुंच जाती हैं।
पृथ्वी
पर पहुंची हुई किरणों का बहुत-सा भाग पुनः वायुमंडल में चला जाता है। इसे भौमिक
विकिरण (Terrestrial Radiation) कहते हैं।
भौमिक
विकिरण अधिक लम्बी तरंगों वाली किरण होती है जिसे वायुमंडल सुगमता से अवशोषित कर
लेता है।
अतः
वायुमंडल सूर्य से आने वाले सौर विकिरण की अपेक्षा भौमिक विकिरण से अधिक गर्म
होता है। यही कारण हे कि वायुमंडल की निचली परतें ऊपरी परतों की अपेक्षा अधिक
गर्म होती है।
संचालन
जब
असमान ताप वाली दो वस्तुएं एक-दूसरे के सम्पर्क में आती हैं तो अधिक तापमान वाली
वस्तु से कम तापमान वाली वस्तु की ओर ऊष्मा प्रवाहित होती है।
ऊष्मा
का यह प्रवाह तब तक चलता रहता है जब तक दोनों वस्तुओं का तापमान एक जैसा न हो
जाए।
वायु
ऊष्मा की कुचालक है अतः संचालन प्रक्रिया वायुमंडल को गर्म करने के लिए सबसे कम
महत्त्वपूर्ण है। इससे वायुमण्डल की केवल निचली परतें ही गर्म होती हैं।
संवहन
किसी
गैसीय अथवा तरल पदार्थ के एक भाग से दूसरे भाग की ओर उसके अणुओं द्वारा ऊष्मा के
संचार को संवहन कहते हैं।
यह
संचार गैसीय तथा तरल पदार्थों में इसलिए होता है, क्योंकि उनके अणुओं के बीच का
सम्बन्ध कमजोर होता है। अतः यह प्रक्रिया ठोस पदार्थों में नहीं होती।
जब
वायुमण्डल की निचली परत भौमिक विकिरण अथवा संचालन से गर्म हो जाता है। घनत्व कम
होने से वह हल्की हो जाती है और ऊपर को उठती है।
इस
प्रकार वह वायु निचली परतों की ऊष्मा को ऊपर ले जाती है। ऊपर की ठंडी वायु उसका
स्थन लेने के लिए नीचे आती है और कुछ देर बाद वह भी गर्म हो जाती है। इस प्रकार
संवहन प्रक्रिया द्वारा वायुमंडल क्रमशः नीचे से ऊपर गर्म होता रहता है।
अभिवहन
इस
प्रक्रिया में ऊष्मा का क्षैतिज दिशा में स्थानान्तरण होता है। गर्म
वायु-राशियां जब ठंडे इलाकों में जाती है तो उन्हें गर्म कर देती हैं।
इससे
ऊष्मा का संचार निम्न अक्षांशीय क्षेत्रों से उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों तक भी
होता है।
वायु
द्वारा संचालित समुद्री धाराएं भी उष्ण कटिबन्धों से ध्रुवीय क्षेत्रों में
ऊष्मा का संचार करती हैं।
पार्थिव विकिरण
पृथ्वी
को सूर्य से प्राप्त होने वाला विकिरण लघु तरंगों के रूप में होता है जिसे
वायुमंडल नहीं सोख सकता। परिणामस्वरूप प्रवेशी सौर विकिरण भूतल पर पहुंचकर
पृथ्वी को गर्म करता है।
गर्म
होकर पृथ्वी विकिरण पिंड बन जाती है और वायुमंडल में दीर्घ तरंगों के रूप में
ऊर्जा का विकिरण करने लगती है। यह ऊर्जा वायुमंडलों को नीचे से गर्म करती है। इस
प्रक्रिया को ‘पार्थिव विकिरण’ कहा जाता है।
दीर्घ
तरंगदैर्ध्य विकिरण वायुमंडलीय गैसों, मुख्यतः कार्बन डाइऑक्साइड एवं अन्य ग्रीन हाउस
गैसों द्वारा अवशोषिम कर लिया जाता है।
इस
प्राकर वायुमंडल पार्थिव विकिरण द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से गर्म होता है न कि
सीधे सूर्यातप से।
तदुपरांत
वायुमंडल विकिर्णन द्वारा ताप को अंतरिक्ष में संचरित कर देता है। इस प्रकार
पृथ्वी की सतह एवं वायुमंडल का तापमान स्थिर रहता है।