भारत में संविधान संशोधन

संविधान का संशोधन
संविधान का अनुच्छेद 368 संविधान का संशोधन करने की संसद की शक्ति और उसके लिए प्रक्रिया का उपबंध करता है, जिसके अनुसारः
1. इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी संसद अपनी संविधायी शक्ति का प्रयोग करते हुए इस संविधान के किसी उपबंध का परिवर्द्धन, परिवर्तन या निरसन के रूप में संशोधन इस अनु. में अधिकथित प्रक्रिया के अनुसार कर सकेगी।
2. इस संविधान के संशोधन का आरंभ संसद के किसी सदन में इस प्रयोजन के लिए विधेयक पुरःस्थापित करके ही किया जा सकेगा और जब वह विधेयक प्रत्येक सदन में उस सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उस सदन के उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा पारित कर दिया जाता है तब वह राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जायेगा, जो विधेयक को अपनी अनुमति देगा और त संविधान उस विधेयक क निर्बंधनों के अनुसार संशोधित हो जायेगा,
परन्तु यदि ऐसा संशोधन:
क. अनुच्छेद 54, अनु.55, अनु.73, अनु.162 या अनु. 241 में या,
ख. भाग 5 के अध्याय 4, भाग 6 के अध्याय 5 या भाग 11 के अध्याय 1 में, या
ग. सातवीं अनुसूची की किसी सूची में, या
घ. संसद में राज्यों के प्रतिनिधित्व में या
ड. इस अनुच्छेद के उपबंधों में,
कोई परिवर्तन के लिए है तो ऐसे संशोधन के लिए उपबंध करने वाला विधेयक राष्ट्रपति के समक्ष अनुमति के लिए प्रस्तुत किये जाने से पहले उस संषोधन के लिए कम से कम आधे राज्यों के विधानमंडलों द्वारा पारित इस आशय के संकल्पों द्वारा उन विधानमंडलों का अनुसमर्थन भी अपेक्षित होगा।

प्रथम संशोधन अधिनियम- 1950ः इस संषोधन में संविधान के अनुच्छेद 19 में दिये गये वाक् स्वातंत्र्य और अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य के अधिकार तथा कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारोबार करने के अधिकार पर प्रतिबंध लगाने के लिए नये अधिकारों की व्यवस्था है। इन प्रतिबंधों का प्रावधान सार्वजनिक व्यवस्था, विदेषी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बंधों अथवा वाक् स्वातंत्र्य के अधिकार में अपराध उद्दीपन और व्यावसायिक और तकनीकी अर्हताएं विहित करने अथवा कोई व्यापार या कारोबार चलाने के संदर्भ में राज्य आदि द्वारा कोई व्यापार, कारोबार, उद्योग अथवा सेवा चलाने के संबंध में किया गया है।
इस संशोधन द्वारा दो नये अनुच्छेद 31 क तथा 9वीं अनुसूची को शामिल किया गया, ताकि भूमि सुधार कानूनों को चुनौती न दी जा सके।


द्वितीय संशोधन अधि.-1952ः

इस संषोधन द्वारा लोकसभा चुनाव के लिए प्रतिनिधित्व के अनुपात को पुनः समायोजित किया गया।


पांचवा संशोधन अधि.- 1955

इस संशोधन द्वारा अनुच्छेद 3 में संशोधन किया गया। जिससे राष्ट्रपति को यह शक्ति दी गई है कि वह राज्य विधानमंडलों द्वारा अपने-अपने राज्यों के क्षेत्र, सीमाओं आदि पर प्रभाव डालने वाली प्रस्तावित केंद्रीय विधियों के बारे में अपने विचार भेजने के लिए कोई समय सीमा निर्धारित कर सकते है।

सातवां संशोधन अधि.1956-

राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों को लागू करने और पारिणामिक परिवर्तनों को शामिल करने के उद्देष्य से यह संशोधन किया गया। संविधान के प्रथम अनुच्छेद और प्रथम अनुसूची में परिवर्तन करके 14 राज्यों तथा 6 संघ राज्य क्षेत्रों में पुनर्गठित किया गया।


31वां संशोधन अधि. 1973-

इस अधिनियम द्वारा अन्य बातों के साथ-साथ लोकसभा में राज्यों के प्रतिनिधित्व की अधिकतम संख्या 500 से बढ़ाकर 525 तथा केंद्र शासित प्रदेशों के सदस्यों की अधिकता संख्या 25 से घटाकर 20 की गई।


41 वां संशोधन अधि. 1976-

ठस अधि. द्वारा अनु. 316 में संशोधन करके राज्य लोक सेवा आयोग और संयुक्त लोक सेवा आयोगों के सदस्यों की सेवानिवृत्ति की आयु 60 से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दी गई।


42 वां संशोधन अधि. 1976-

इस अधिनियम द्वारा संविधान में अनेक महत्त्वपूर्ण संशोधन किये गये। ये संशोधन मुख्यतः स्वर्णसिंह आयोग की सिफारिशों को लागू करने के लिए थे।
- संविधान की उद्देशिका में ‘पंथनिरपेक्ष, समाजवादी तथा अखंडता’ शब्दों को जोडा गया।
- अनु. 31 ग जोड़कर यह प्रावधान किया गया कि नीति निदेषक तत्वों को प्रभावी करने के लिए मूल अधिकार में संशोधन किया जा सकता है।
- भाग 4 क तथा अनुच्छेद 51 क जोड़कर नागरिकों के 10 मूल कर्त्तव्यों का उल्लेख किया गया।
- लोकसभा तथा विधानसभाओं के कार्यालय में 1 वर्ष की वृद्धि की गई।
- संसद द्वारा किये संशोधन को न्यायालय में चुनौती देने को वर्जित किया गया।

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