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कश्मीर का इतिहास

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कश्मीर का इतिहास

  • कश्मीर के हिन्दू राज्य का इतिहास कल्हण की राजतरंगिणी से ज्ञात होता है। कल्हण जाति का ब्राह्मण था। उसका पिता चम्पक कश्मीर नरेश हर्ष (लोहारवंश) का मंत्री था।
  • इस ग्रंथ की रचना उसने जयसिंह (1127-59) के शासनकाल में पूरी की थी।
  • कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ में कुल आठ तरंग एवं 8,000 श्लोक हैं। इस पुस्तक में ऐतिहासिक घटनाओं का क्रमबद्ध उल्लेख है। राजनीति के अतिरिक्त सदाचार एवं नैतिक शिक्षा पर प्रकाश डाला है।
  • प्रथम तीन तरंगों में कश्मीर का प्राचीन इतिहास है। चौथे, पांचवें तथा छठें तरंगों में कार्कोट वंष तथा उत्पल वंशों का इतिहास है। 7वें तथा 8वें तरंगों में लोहार वंश का इतिहास वर्णित है।
  • रचना महाभारत शैली में है।
  • संस्कृत भाषा में ऐतिहासिक घटनाओं के क्रमबद्ध लेखन का प्रथम सफल प्रयास माना जा सकता है।
राजनैतिक इतिहास
  • मौर्यकाल में कश्मीर अशोक के साम्राज्य का अंग था जिसने वहां श्रीनगर की स्थापना की। अशोक के पुत्र जालौक को कश्मीर में हिन्दू सभ्यता के प्रचार का श्रेय दिया जाता है।
  • कुषाण साम्राज्य का भी यह एक प्रांत था तथा कनिष्क के समय में वहां कुण्डलवन नामक स्थान में चतुर्थ बौद्ध संगीति हुई थी। कश्मीर का राज्य हर्ष के साम्राज्य में सम्मिलित नहीं था।

कार्कोट वंश
दुर्लभ वर्धनः-

  • 7वीं शताब्दी में दुर्लभ वर्द्धन नामक व्यक्ति ने कश्मीर में कार्कोट वंश की स्थापना की।
  • चीनी वृत्तों में इस तु-लोन-प कहा गया है।
  • ष्वान-च्वांग इसी के समय में कश्मीर आया था।
  • ह्वेनसांग के विवरण से ज्ञात होता है कि उसके राज्य की सीमा के अन्तर्गत तक्षशिला, सिंहपुर, उरषा, पुंछ तथा राजपूताना शामिल था।

दुर्लभक :-

  • दुर्लभ वर्द्धन का पुत्र तथा उत्तराधिकार दुर्लभक 632-82 ई. हुआ, जिसने ‘प्रतापादित्य’ की उपाधि धारण की। उसने प्रतापपुर नामक नगर की स्थापना की।
  • इसके सिक्कों पर ‘श्रीप्रताप’ उल्लेख है।
  • इसके तीन पुत्र- चन्द्रापिड़, तारापीड (उदयादित्य) एवं मुक्तापीड (ललितादित्य)।
  • तारापीड़ को कल्हण ने क्रूरू शासक बताया है।
  • चन्द्रापीड ने अरबों तथा तुर्को के विरूद्ध सहायता के लिए 713 ई. में चीन के शसक के पास एक दूत भेजा।
  • यशोवर्मन के साथ सन्धि कर मुक्तापीड ने तिब्बतियों को पराजित किया। 733 ई. में चीन में दूतमण्डल भेजा।
  • कल्हण उसे अरबों की विजय का श्रेय देता है।
  • सूर्य का प्रसिद्ध मार्तण्ड-मंदिर का निर्माण मुक्तापिड ने करवाया। अंतिम शासक जयापीड था।
  • ललितादित्य ने कश्मीर में परिहासपुर नगर बसाया था।
  • कन्नौज के राजा यशोवर्मन को हराने के बाद उसके दरबारी कवियों भवभूति तथा वाक्पतिराज को कश्मीर बुलाकर अपने दरबार में रखा।

जयापिड़ विनयादित्य (770-810)

  • उसने कन्नौज के शासक बज्रायुध को हराकर अपने राज्य की सीमा का विस्तार किया।
  • उसे विद्वानों के आश्रयदाता के रूप में भी जाना जाता है।
  • उसके दरबार में क्षीर (झीर), उद्भट्ट, दामोदर गुप्त आदि विद्वान सुशोभित करते थे।
  • 810 ई. में उसकी मृत्यु के साथ ही कार्कोट वंश का अन्त हो गया।

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