चन्देल और परमार वंश

चन्देल  और परमार वंश

जेजाक भुक्ति के चन्देल

  • जेजाक भुक्ति वर्तमान बुन्देलखण्ड है। राजधानी खजुराहो।
  • चन्देल प्रतिहारों के सामन्त थे।
  • प्रथम शासक नुन्नुक था।
  • पौत्र जयसिंह या जेजा के नाम पर जेजाकभुक्ति रखा।

यशोवर्मन 925-50 ई.

  • इसके काल में चन्देल शक्ति अपने चरमोत्कर्ष पर थी।
  • गौड, खस, कोशल, कश्मीर, मालव, चेदि कुरु गुर्जर आदि का विजेता माना।
  • खजुराहो में एक विशाल विष्णु मंदिर (कंदरिया महादेव मन्दिर) का निर्माण करवाया, जिसे चतुर्भुज मंदिर कहा जाता है। बैकुण्ठ की मूर्ति

धंग 950-1008 ई.

  • चंदेलों की वास्तविक स्वतंत्रता का जन्मदाता माना जाता है।
  • महाराजाधिराज की उपाधि धारण की।
  • कालिंजर पर अधिकार कर राजधानी बनाया।
  • उसकी ग्वालियर विजय सबसे महत्त्वपूर्ण थी।
  • भटिण्डा के शाही शासक जयपाल को सुबुक्तगीन  के विरुद्ध सैनिक सहायता भेजी।
  • ब्राह्मणों को भूमिदान व उच्च प्रशासनिक पद दिये।

गंडदेव 1008-19

  • 1008 ई. में महूद गजनवी के विरुद्ध जयपाल के पुत्र आनन्दपाल द्वारा बनाये संघ में भाग लिया।
  • त्रिपुरी के कलचुरी-चेदि तथा ग्वालियर के कच्छपघात शासक गंडदेव के अधीन थे।

विद्याधर 1019-29

  • चन्देल शासकों में सर्वाधिक शक्तिशाली
  • मुसलमान लेखक उसका नाम चन्द एवं विदा नाम से पुकारते हैं।
  • उसने प्रतिहार शासक राज्यपाल की हत्या मात्र इसलिए कर दी क्योंकि उसने महमूद गजनवी के कन्नौज आक्रमण के सममय बिना युद्ध किये ही गजनवी के सामने समर्पण कर दिया।

कीर्तिवर्मन 

  • चेदिवंश के कर्ण को परास्त किया।
  • ‘प्रबोध चन्द्रोदय’ नामक नाटक की रचना कृष्ण मिश्र ने उसी के दरबार में की थी।
  • उसने महोबा के निकट ‘कीरत सागर’ झील का निर्माण करवाया।
  • अन्तिम शक्तिशाली शासक - परमार्दिदेव था। जो 1182 ई. में पृथ्वीराज चौहान से परास्त।
  • 1203 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक ने पराजित कर कालिंजर पर अधिकार कर लिया।
  • 1305 में दिल्ली सल्तनत में मिला लिया।

मालवा परमार

  • संस्थापक - उपेन्द्र अथवा कृष्णराज
  • प्रारम्भिक राजधानी- उज्जैन, कालान्तर में धारा (मध्यप्रदेश में)
  • प्रथम स्वतंत्र शासक सीयक अथवा श्रीहर्ष।
  • इसने अपने वंश को राष्ट्रकूटों की अधीनता से मुक्त कराया।

वाकपति मुंज

  • चालुक्य राजा तैलप द्वितीय को मुंज ने 6 बार हराया। 7वीं बार युद्ध में बन्दी बनाकर उसकी हत्या कर दी। 
  • श्रीवल्लभ, पृथ्वीवल्लभ, अमोघवर्ष आदि उपाधियां धारण की।
  • कौथेम दान-पात्र में उसके द्वारा हूणों को पराजित करने का उल्लेख।
  • कवियों एवं विद्वानों का आश्रयदाता, उसके दरबार में -
  1. ‘यशोरूपलोक’ के लेखक धनिक, 
  2. ‘नवसाहसांकचरित’ के लेखक पद्मगुप्त और ‘दशरूपक’ के लेखक धनंजय निवास करते थे।
  • धारा में ‘मुंज सागर’ नामक तालाब का निर्माण कराया।
  • भाई सिंधु राज शासक बना। पद्मगुप्त द्वारा लिखित नवसाहसांकचरितम् में इसी परमार नरेश के जीवन चरित का वर्णन किया गया है।

भोज 1000-55

  • चंदेल विद्याधर के हाथों पराजित हुआ।
  • 1008 ई. में महमूद गजनवी के विरुद्ध शाही शासक आनन्दपाल को उज्जैन के शासक भोज ने सैनिक सहायता भेजी।
  • भोज ने प्राचीन राजधानी उज्जैन को छोड़कर धारा को अपनी राजधानी बनाई।
  • पराक्रमी शासक के साथ ही वह विद्वान, विद्या एवं कला का संरक्षक था।
  • कविराज की उपाधि धारण की। उसने विविध विषयों - चिकित्साशास्त्र, खगोलशास्त्र, धर्म, व्याकरण, स्थापत्यशास्त्र आदि पर बीस से अधिक ग्रंथों की रचना की।
  • उसके द्वारा लिखित ग्रन्थों में चिकित्साशास्त्र पर आयुर्वेद सर्वस्व एवं स्थापत्यशास्त्र पर समरांगणसूत्रधार विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
  • इसके अतिरिक्त - सरस्वती कठांभरण, सिद्धांतसंग्रह, योगसूत्रवृत्ति, राजमार्तण्ड, विद्याविनोद, युक्ति-कल्पतरु, चारुचर्चा, आदित्य प्रताप सिद्धांत, प्राकृत व्याकरण, कूर्मशतक, श्रृंगारमंजरी आदि प्रमुख है।
  • आईन-ए-अकबरी - उसके दरबार में 500 विद्वान का उल्लेख किया
  • दरबारी कवि - भास्कर भट्ट, दामोदर मिश्र, धनपाल 
  • अनुश्रुति के अनुसार वह हर कवि को प्रत्येक श्लोक पर 1 लाख मुद्राएं देता था।
  • भोज ने धारा नगरी का विस्तार किया और वहां भोजशाला के रूप में प्रख्यात एक महाविद्यालय की स्थापना कर उसमें वाग्देवी की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की। 
  • अपने नाम से उसने भोजपुर नगर बसाया तथा एक बहुत बड़े भोजसर नामक तालाब को निर्मित करवाया।


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