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मौर्य साम्राज्य का इतिहास

byDivanshuGS -December 11, 2017
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मौर्य साम्राज्य 323ई.पू. से 184 ई. पू.

चन्द्रगुप्त मौर्य (322 ई.पू. से 298 ई. पू.)
  • चाणक्य की सहायता से चन्द्रगुप्त मौर्य ने अंतिम नन्द शासक धननन्द को पराजित कर 322 ई.पू. मे मगध का शासक बना और मौर्य वंश की स्थापना की।
  • ब्राह्मण साहित्य चन्द्रगुप्त मौर्य को ‘शूद्र’ कुल से उत्पन्न बताते हैं, जबकि बौद्ध और जैन साहित्य उसे ‘क्षत्रिय’ बताते हैं।
  • मुद्राराक्षस नाटक में उसके लिए ‘वृषल’ (निम्न कुल) उपनाम का प्रयोग किया गया है। इसमें चंद्रगुप्त को नंदराज का पुत्र माना गया है।
  • फिलार्कस, स्ट्रैबो और जस्टिन ने चन्द्रगुप्त को ‘सैण्ड्रोकोटस’ तथा एरियन और प्लूटार्क ने ‘एण्ड्रोकोटस’ कहा है। सबसे पहले विलियम जोन्स ने ‘सैण्ड्रोकोटस’ की पहचान चन्द्रगुप्त मौर्य के साथ स्थापित की।
  • चन्द्रगुप्त मौर्य ने व्यापक विजय द्वारा प्रथम अखिल भारतीय साम्राज्य की स्थापना की। पश्चिमोत्तर भारत में 305 ई.पू. में उसने तत्कालीन यूनानी शासक सेल्यूकस निकेटर को पराजित किया।
  • इसके बाद सेल्यूकस ने अपनी पुत्री का विवाह चन्द्रगुप्त के साथ कर दिया तथा मेगस्थनीज को अपने राजदूत के रूप में चन्द्रगुप्त के दरबार में भेजा। मेगस्थनीज ने इंडिका नामक पुस्तक लिखी।
  • इस युद्ध का विवरण एप्पियानस नामक यूनानी ने दिया है।
  • संधि के बाद सेल्यूकस ने 500 हाथी लेकर बदले में एरिया (हेरात), अराकेसिया (कंधार), जेड्रोसिया और पेरोपनिसडाई (काबुल) के क्षेत्र प्रदान किए।
  • प्लूटार्क का कहना है कि चंद्रगुप्त ने 6 लाख सैनिकों वाली सेना लेकर संपूर्ण भारत को रौंद डाला और उस पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। जस्टिन भी इसी प्रकार का विवरण प्रस्तुत करता है।
  • विष्णुगुप्त चंद्रगुप्त का प्रधानमंत्री था, जिसे चाणक्य तथा कौटिल्य के नाम से भी जाना जाता है। चाणक्य ने अर्थशास्त्र नामक ग्रंथ की रचना की, जिसमे प्रशासन के नियमो का उल्लेख है।
  • चंद्रगुप्त के शासनकाल में सौराष्ट्र के राज्यपाल पुष्यगुप्त वैश्य ने सुदर्शन झील का निर्माण कराया।
  • चंद्रगुप्त की दक्षिण भारत की विजयों के बारे में जानकारी तमिल ग्रंथ ‘अहनानूर एवं मुरनानूर’ से मिलती है।
  • चंद्रगुप्त की बंगाल विजय का उल्लेख महास्थान अभिलेख से प्रकट होता है।
  • मगध मे 12 वर्ष का दुर्भिक्ष पड़ा। चन्द्रगुप्त ने जैन मुनि भद्रबाहु से जैन धर्म की दीक्षा ले ली और श्रवणबेलगोला (मैसूर) जाकर 298 ई.पू. में सल्लेखन द्वारा शरीर त्याग दिया।
  • यूनानी लेखक स्ट्रेबो और जस्टिन ने चंद्रगुप्त मौर्य को ‘सैण्ड्रोकोट्स’ एरियन तथा प्लूटार्क ने ‘एण्ड्रोकोट्टस’ और फिलार्कस ने ‘सैण्ड्रोकोट्टस’ कहा है। सैण्ड्रोकोट्स की पहचान चंद्रगुप्त मौर्य के रुप में सबसे पहले विलियम जोंस (1793 ई.) ने की थी।

बिंदुसार (298 ई.पू.-272 ई. पू.)
  • चन्द्रगुप्त के बाद उसका पुत्र बिंदुसार मौर्य साम्राज्य का शासक बना।
  • यूनानी लेखों के अनुसार बिन्दुसार को अमित्रोचेट्स या अमिात्रघात कहा गया है। जबकि वायुपुराण में उसे ‘मद्रसार’ और जैन ग्रन्थों में ‘सिंहसेन’ कहा गया है।
  • बिंदुसार ने सुदूरवर्ती दक्षिण भारतीय क्षेत्रों को जीतकर मगध साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया। उसके शासन काल में तक्षशिला में दो विद्रोह हुए, जिसको दबाने के लिए उसने पहली बार अपने पुत्र अशोक तथा दूसरी बार सुसीम को भेजा था। (बौद्ध ग्रन्थ दिव्यादान के अनुसार)
  • सीरिया (यूनानी) के शासक एंटियोकस ने डायमेकस नामक अपना एक राजदूत बिंदुसार के दरबार में भेजा था। - ( स्ट्रेबो के अनुसार)
  • बिन्दुसार ने एन्टीयोकस प्रथम को पत्र लिखकर यूनानी शराब, सूखे अंजीर और एक दार्शनिक की मांग की थी।
  • एथेनियस के अनुसार बिन्दुसार ने सीरिया के शासक एन्टीयोकस प्रथम के पास एक संदेश भेजकर एक दार्शनिक भेजने का आग्रह किया था, जिसे उसने यह कह कर इंकार कर दिया कि दार्शनिकों का विक्रय नहीं किया जा सकता।
  • मिस्र नरेश फिलाडेल्फस (टॉलेमी द्वितीय) ने ‘डियानीसियस’ नामक एक राजदूत बिन्दुसार के दरबार में नियुक्त किया था।
  • चाणक्य बिंदुसार का प्रधानमंत्री रहा।
  • बिंदुसार आजीवक संप्रदाय का अनुयायी था। दिव्यादान से पता चलता है कि राजसभा में आजीवक संप्रदाय का एक ज्योतिषी परिव्राजक बिन्दुसार की सभा को सुशोभित करता था।

सम्राट अशोक (273 ई.पू.-232 ई. पू.)

  • जैन अनुश्रुति के अनुसार अशोक (273-232 ई.पू.) ने बिन्दुसार की इच्छा के विरुद्ध मगध के शासन पर अधिकार कर लिया।
  • सिंहली अनुश्रुति और महाबोधिवंश एवं तारानाथ के मुताबिक अशोक ने अपने 99 भाइयों की हत्या करके सिंहासन प्राप्त किया था।
  • यह गृहयुद्ध चार वर्ष तक चलता रहा, इसलिए अशोक का वास्तविक राज्याभिषेक 269 ई.पू. में हुआ।
  • बिन्दुसार के समय में अशोक अवन्ति (उज्जयिनी) का राज्यपाल था।
  • अपने राज्याभिषेक के 9वें वर्ष में अशोक ने कलिंग पर विजय प्राप्त की। राजवंश का कोई राजकुमार वहां का वाइसराय (उपराजा) नियुक्त कर दिया गया। तोसली इस प्रांत की राजधानी बनाई गई।
  • अशोक ने युद्ध की नीति को सदा के लिए त्याग दिया और ‘दिग्विजय’ के स्थान पर ‘धम्म विजय’ की नीति को अपनाया।
  • कलिंग की प्रजा तथा कलिंग की सीमा पर रहने वाले लोगों के प्रति कैसा व्यवहार किया जाए, इस संबंध में अशोक ने दो आदेश जारी किए। ये दो आदेश धौली और जौगड़ नामक स्थानों पर सुरक्षित है।
  • ये आदेश तोसली और समापा के महामात्यों तथा उच्चाधिकारियों को सम्बोधित करते हुए लिखे गए थे।
  • उत्तर-पश्चिम में शाहबाजगढ़ी और मंसेरा में अशोक के शिलालेख खरोष्ठी लिपि में पाये गए।
  • तक्षशिला और काबुल प्रदेश मेंके लमगान में अशोक के लेख अरामाइक लिपि में मिलते हैं।
  • कालसी, रूमिंदेई तथा निगालीसागर शिलालेख तथा स्तम्भ लेखों से सिद्ध होता है कि देहरादून और नेपाल की तराई का क्षेत्र अशोक के राज्य में था।
  • पूर्व में बंगाल तक मौर्य साम्राज्य के विस्तृत होने की पुष्टि महास्थान अभिलेख से होती है। (ब्राह्मी लिपि)
  • महावंश के अनुसार अशोक अपने पुत्र को विदा करने के लिए ताम्रलिप्ति तक आया था।
  • ह्वेनसांग को भी ताम्रलिप्ति, कर्ण सुवर्ण, समतट पूर्वी बंगाल तथा पुण्ड्रवर्धन में अशोक के स्तूप देखने को मिले थे।
  • आसाम मौर्य साम्राज्य से बाहर था।
  • धौली और जौगड़ में अशोक के शिलालेख मिले हैं, सौराष्ट्र में जूनागढ़ और अपरांत में, बंबई के पास सोपारा नामक स्थान के पास अभिलेख मिले हैं।
  • अशोक ने अपने राज्याभिषेक के 10वें वर्ष बोधगया तथा 20वें वर्ष लुम्बिनी (कपिलवस्तु) की धम्म यात्रा की थी।
  • अशोक के शिलालेखों मे चोल, चेर, पांड्य और केरल सुदूर दक्षिणवर्ती स्वतंत्र सीमावर्ती राज्य बताये गये हैं।
  • राज्याभिषेक से संबंधित एक लघु शिलालेख में अशोक ने स्वयं को ‘बुद्धशाक्य’ कहा।
  • अशोक ने मनुष्य की नैतिक उन्नति के लिए जिन आदर्शों का प्रतिपादन किया, उन्हें ‘धम्म’ कहा गया।
  • अशोक से पूर्व -विहार यात्रायें की जाती थीं, जिसमें राजा अपने मनोरंजन के लिए पशुओं का शिकार करते थे। अशोक ने इनके स्थान पर ‘धम्मयात्रा’ का प्रावधान किया, जिसमें बौद्ध स्थानों की यात्रा तथा ब्राह्मणों, श्रमणों एवं वृद्धों को स्वर्णदान में दिया जाता था।
  • अपने राज्याभिषेक के 14वें वर्ष अशोक ने ‘धम्ममहामात्र’ नामक अधिकारियों की नियुक्ति की, जिनका मुख्य कार्य था -जनता के बीच धम्म का प्रचार करना, कल्याणकारी कार्य करना, उन्हें दानशीलता के लिए प्रोत्साहित करना आदि।
  • अशोक मौर्य वंश का ऐसा प्रथम शासक था, जिसने अभिलेखों के माध्यम से अपनी प्रजा को संबोधित किया, जिसकी प्रेरणा उसे ईरानी राजा दारा प्रथम (डेरियस) से मिली थी।
  • अभिलेखों में अशोक को ‘देवानामपिय’ और ‘देवानामपियदस्सी’ उपाधियों से विभूषित किया गया है।
  • अशोक के अधिकांश अभिलेख ब्राह्मी लिपि में हैं, जबकि पश्चिमोत्तर भारत से प्राप्त उसके अभिलेख अरामाइक से उत्पन्न खरोष्ठी लिपि में हैं। 


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