किसान आंदोलन Avadh Kisan Sabha

किसान आंदोलन और राष्ट्रीय स्वाधीनता संघर्ष अवध किसान सभा


- - अवध में होमरूल लीग आंदोलन के कार्यकर्ता काफी सक्रिय थे। इन्होंने किसानों को संगठित करना शुरू कर दिया। संगठन को नाम दिया गया 'किसान सभा'
--  गौरीशंकर मिश्र, इंद्रनारायण द्विवेदी और मदनमोहन मालवीय के प्रयासों से फरवरी 1918 में 'उत्तर प्रदेश किसान सभा' का गठन हुआ था।
- - प्रतापगढ़ जिले की एक जागीर में 'नाई-धोबी-बंद' सामाजिक बहिष्कार संगठित कार्यवाई की पहली घटना थी।
- - अवध की तालुकेदारी में ग्राम पंचायतों के नेतृत्व में किसान बैठकों का सिलसिला शुरू हो गया।
- - झिंगुरी सिंह और दुर्गपाल सिंह ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 
- बाबा रामचंद्र, जिन्होंने आंदोलन की बागडोर संभाली 
--  प्रतापगढ जिले का रूर गांव ‘किसान सभा‘ की गतिविधियों का मुख्य केन्द्र बन गया। 
- - 17 अक्टबर 1920 को प्रतापगढ में एक समांतर संगठन अवध किसान सभा का गठन कर लिया।
--  शोषित एवं उत्पीडित किसानों ने अपना विरोध, विद्रोह और आन्दोलन मुख्य रूप से लगान वृद्धि, बेदखली, साहूकारों की सूदखोरी और अंग्रेज बागान मालिकों के उत्पीडन तथा शोषण के विरूद्ध चलाया। 

वरसाड आंदोलन 1923-24 


- सरकार द्वारा लगाये गये ‘डकैती कर’ के विरोध में।
- सरदार वल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में।
- सरकार द्वारा सितंबर 1923 में वरसाड के प्रत्येक व्यस्क पर 2 रूपये 7 आने का कर लगान की घोषणा।
- 104 प्रभावित ग्रामों ने कर न अदायगी का निर्णय लिया।
- 7 फरवरी 1924 को समाप्त। 
- वरसाड सत्याग्रह को हार्डियन ने ग्रामीण गुजरात में पहला सफाल गांधीवादी सत्याग्रह कहा है।

वायकोम सत्याग्रह 1924-25


- उद्देश्य: निम्न जातीय एझवाओं एवं अछूतों द्वारा गांधीवादी तरीके से त्रावणकोर के एक मंदिर की निकट की सडकों के उपयोग के बारे में अपने-अपने अधिकारों को मनवाना।
- नेतृत्वः - एझवाओं के कांग्रेसी नेता टी.के. माधवन, के. केलप्पन तथा के.पी. केशव मेनन। 
- मार्च 1925 में महात्मा गांधी ने वायकोम का दौरा किया। 
- मंदिर प्रवेश का प्रथम आंदोलन। सरकार ने अछूतों के लिए अलग सडक का निर्माण किया।



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