भारतीय संस्कृति में छुपें हैं प्रकृति की दीर्घायु के उपाय


  • बड़ी न्यूज थी वह जिसने स्टीफन हाकिंग ने दावा किया कि मानव सभ्यता को 100 सालों में इस धरती को छोड़नी होगी और पश्चिमी जगत ने इसे कितना सही अर्थों में लिया है यह तो मंगल अभियान से मंगल ग्रह पर जीवन की खोज व बसने की रूपरेखा पर कार्य किया जा रहा है। किंतु भारतीय जनमानस ने इसे शायद पूरी तरह नकार दिया है, क्योंकि भारतीय शास्त्रों में कहीं भी इस प्रकार का जिक्र नही किया गया है कि मानव को धरती से पलायन करना होगा।
  • यह दावा किसी भारतीय का होता तो समस्त जगत में उसकी मजाक बना दी जाती क्योंकि उसे एक रूढ़िवादी मानकर नकार दिया जाता है। यह दावा विश्व के एक बहुत ही बड़े वैज्ञानिक ने किया है, तो स्वाभाविक है कि अधिक विश्वास के योग्य है।
  • ऐसा दावा करने वाला स्वयं पूर्णतः भौतिकता के सहारे जीवित है और वह तो यही चाहेगा कि इसी भौतिकता के सहारे और अधिक जीया जाये। उनका यह दावा तर्क पूर्ण है क्योंकि मानव सभ्यताा जिस कदर भौतिकता पर आधारित होती जा रही है उससे तो यही लगने लगा है कि वाकई मानव सौ वर्षों से पहले ही धरती को छोड़ देगा। उनके इस दावे के पीछे के सच का कारण मौसम में बदलाव, धूमकेतु की टक्कर और जनसंख्या विस्फोट माना है।
  • पर कभी भारतीय संस्कृति को किसी विदेशी ने सच्चे हृदय से स्वीकार नहीं किया, यदि इसे सच्चे मायने में स्वीकार कर वैज्ञानिक तरीके से मानव सभ्यता को आगे बढ़ाते तो शायद हाकिंग को यह कहने की जरूरत महसूस न होती। भारतीय जनमानस सदैव से ही प्रकृति के सानिध्य में रहा है, उसके जन्म से मृत्यु तक प्रकृति से ही वास्ता रहता है।
  • भारतीय जनमानस विदेशियों की तरह भौतिकता पर प्रारम्भ से ही आश्रित नहीं रहा है, यह तो आजादी के बाद से ही भारतीय भी भौतिकता के रंग में रंग गये हैं, जो भारतीय संस्कृति के पतन से अधिक मानव सभ्यता के पतन की ओर जा रहा है। भारतीय जनमानस में युवा ऊर्जा की कोई कमी नहीं है, लेकिन इस युवा पर तकनीक एवं भौतिकता हावी हो रही है, जो उनके श्रम को उपेक्षित कर रही है। यह तकनीक इतनी हावी हो गई कि उनके श्रम और बौद्धिक क्षमता पर प्रश्न लगा रही है। यही कारण है कि युवा हताशा में अपराध की ओर रूख कर रहा है। पूंजीवादी लोगों का मानव के श्रम और बौद्धिकता क्षमता से संतुष्ट नहीं होने से तकनीकों पर अधिक आश्रित हो गये और मानव की अपने व्यवसायों से बेदखल करने लगे है। जो पर्यावरण असंतुलन का बड़ा कारण है जहां कोई कार्य मानव कर सकता था, उस कार्य को मशीन करती है तो वह प्रदूषण को बढ़ाती है। पहले खेती में तकनीकी साधन न के बराबर थे लेकिन अब तकनीक के बैगर खेती होती ही नहीं है। माना ये सब अच्छे है किंतु मानव पतन के बड़े कारण भी है।
  • खेती में तकनीक और मानव की हर जरूरत पैसों से पूरी होने की वजह से शहरों में आबादी आने से परिवहन डगमगा गया हैं। गांवों में रोजगार नहीं होने से लोग शहरों की ओर आने से शहरों में अपराध और प्रदूषण बहुत बढ़ गया है। जिससे ग्लोबल वार्मिंग, ग्रीन हाउस जैसी विकराल स्थितियों ने जन्म ले लिया है।
  • हम हर मुसीबत का कारण और समाधान हैं, बस संयम और सहयोग की आवश्य कता है, पर हम एक-दूसरे से बहुत बुद्धिमान है इसलिए हम समस्या के मूल तक नहीं जा पा रहे है। भारतीय हमेषा से शांत और प्रकृतिवादी रहे हैं, पर वह भी पाश्चात्य की भौतिकता से मदहोश हो चुका है और जो भारतीय संस्कृति के पैरवीकार बचें है उनकी कोई सुनता ही नहीं। हमें अपनी संस्कृति को भूलना नहीं चाहिए। हमें स्मार्ट एवं तकनीक पर आधारित होना है, लेकिन आश्रित नहीं। हाकिंग के दावों पर यकीन करना चाहिए एवं उनके बताये कारणों पर अमल करना बहुत ही जरूरी है, क्योंकि कोई इतना बड़ा और अनुभवी व्यक्ति कुछ कह रहा है उसके पीछे कोई कारण जरूर है। इन दावों का समाधान हम भारतीय जीवन शैली में ढूढ़ना चाहिए, हमें अवष्य इनका समाधान मिलेगा और प्रकृति रूपी जननी को हम दीर्घायु प्रदान करे सकते हैं।


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