समुद्रगुप्त का मूल्यांकन


  • समुद्रगुप्त की गिनती भारत के महान् विजेताओं और पराक्रमी सेनानायकों में की जाती है। उसके सिक्कों पर मुद्रित ‘पराक्रमांक’ (पराक्रम है पहचान जिसकी), व्याघ्रपराक्रमः तथा ‘अप्रतिरथ’ (जिसका कोई प्रतिद्वन्द्वी नहीं है) जैसी उपाधियां उसके प्रचण्ड पराक्रम और अद्भुत शौर्य को बताती है। प्रयाग प्रशस्ति में कहा गया है कि उसे सदैव अपनी भुजाओं के बल और पराक्रम का ही सहारा रहता था। वास्तव में उसने भुजबल से भारतवर्ष के एक बड़े भूभाग पर अपना एकछत्र राज्य स्थापित किया और इस प्रकार पुनः देश की राजनीतिक एकता स्थापित की।
  • वह वास्तविक अर्थ में चक्रवर्ती सम्राट था। रमेशचन्द्र मजूमदार के शब्दों में, ‘समुद्रगुप्त महान् प्रभावशाली और अद्वितीय व्यक्तित्व का धनी था। उसने भारत के इतिहास में एक नये युग का आरम्भ किया। वह अखिल भारतीय साम्राज्य के उच्चादर्शों से प्रेरित था। उसने छोटे-छोटे राज्यों को संगठित किया तथा आन्तरिक शान्ति स्थाापित करने में पूरी तरह सफल रहा।’
  • समुद्रगुप्त की प्रतिभा बहुमुखी थी। वह शस्त्रों का धनी ही नहीं बल्कि शास्त्रों में भी परम प्रवीण था। प्रयाग-प्रशस्ति में कहा गया है कि शास्त्र ज्ञान में इन्द्र के गुरु बृहस्पति को और ललित (संगीत कला) में गांधर्वों एवं देवताओं के संगीताचार्य तुम्बरू व नारद को भी इस महान् सम्राट ने अपनी निपुणता से लज्जित कर दिया।
  • समुद्रगुप्त एक महान कवि भी था जो अपनी काव्य निपुणता के कारण ‘कवियों का राजा’ की ख्याति प्राप्त की थी। उसका संगीत-प्रेम उसके वीणा-शैली के सिक्कों से भी प्रकट होता है। इन सिक्कों पर  पर्यंक पर बैठकर वीण बजाते हुए समुद्रगुप्त की मूर्ति अंकित है।
  • हरिषेण ने प्रयाग प्रशस्ति में इन्हीं गुणों का समावेश करते हुए लिखा कि, ‘ऐसा कौन-सा गुण है, जो उसमें न हो?’
  • धार्मिक सहिष्णुता उसके चरित्र की महान् विशेषता थी। वैष्णव धर्म में अपार श्रद्धा रखते हुए भी उसने बौद्ध विद्वान् ‘वसुबन्धु’ को अपना मंत्री बनाया। संगीत तथा काव्य कला में वह पारंगत था। विद्वानों ने उसे ‘कविराज’ की उपाधि से विभूषित किया। उसमें चन्द्रगुप्त मौर्य के समान सैनिक योग्यता थी एवं वह सम्राट अशोक की भांति प्रजापालक था, परन्तु साहित्यिक योग्यता में वह दोनों से आगे था।
  • विन्सेन्ट स्मिथ ने उसके विजय अभियान से प्रभावित होकर समुद्रगुप्त को ‘भारत का नेपोलियन’ कहा है। नेपोलियन की भांति उसने कई युद्ध लड़े और विशाल साम्राज्य का निर्माण किया परन्तु काव्य एवं संगीत समुद्रगुप्त की विशेष योग्यता थी। नेपोलियन को वाटरलू के युद्ध में पराजय का सामना करना पड़ा था। समुद्रगुप्त को एक भी युद्ध में पराजय का मुंह नहीं देखना पड़ा। नेपोलियन में कूटनीति का अभाव था। वह आवश्यकता से अधिक महत्त्वाकांक्षी था। नेपोलियन ने रूस पर आक्रमण कर अदूरदर्शिता का परिचय दिया, जबकि समुद्रगुप्त ने दक्षिण के राज्यों को मित्र बनाकर अपनी कूटनीति का उदाहरण प्रस्तुत किया। 
  • संक्षेप में भारत के इतिहास में कोई ऐसा सम्राट नहीं हुआ, जिसकी योग्यता इतनी बहुमुखी हो, जितनी समुद्रगुप्त की।


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