जहाँगीर


प्रारंभिक जीवन व राज्याभिषेक
  • जहाँगीर का जन्म अगस्त 1569 ई. में शेख सलीम चिश्ती के आशीर्वाद से अकबर की पत्नी मरियम उज्जमानी से हुआ था, इसलिये इसका नाम सलीम रखा गया।
  • अक्टूबर 1605 ई. में अकबर की मृत्यु के पश्चात् सलीम, ‘नूरुद्दीन मुहम्मद जहाँगीर बादशाह गाजी’ की उपाधि से मुगल साम्राज्य का शासक बना।
  • जहाँगीर का राज्यारोहण विवादास्पद ढ़ग से हुआ था। अकबर के दरबार के कुछ सामंत जहाँगीर की जगह पर उसके बड़े बेटे राजकुमार खुसरो को सम्राट बनाने के पक्ष में थे। उनमें राजा मानसिंह और मिर्जा अजीज कोका प्रमुख थे।
  • मानसिंह और मिर्जा अजीज कोका के दल की संख्या कम होने के कारण शहजादा सलीम उत्तराधिकारी चुन लिया गया। अपनी मृत्यु के पूर्व स्वयं अकबर ने सलीम के सिर पर शाही ताज रखकर उसको राज्य का उत्तराधिकारी माना।

जहाँगीर के प्रारंभिक कार्य
जहाँगीर ने सर्वप्रथम अपनी नीति की घोषणा प्रसिद्ध नियमों (दस्तूर-उल-अमल) में की, ये नियम निम्नलिखित थे-

  1. करों (जकात, तमगा आदि) का निषेध
  2. आम रास्ते पर डकैती तथा चोरी के संबंध में नियम
  3. मृत व्यक्तियों की संपत्ति उसके उत्तराधिकारी के अभाव में सार्वजनिक निर्माण कार्य, यथा- भवनों, कुओं, तालाबों आदि के निर्माण पर खर्च किया जाए
  4. मदिरा तथा सभी प्रकार के मादक द्रव्यों की बिक्री का निषेध
  5. अपराधियों के घरों की कुर्की तथा उनके नाक और कान काटे जाने पर निषेध
  6. संपत्ति पर बलपूर्वक अधिकार करने का निषेध
  7. अस्पतालों का निर्माण तथा रोगियों की देखभाल के लिये वैद्यों की नियुक्ति
  8. सप्ताह में दो दिन गुरुवार (जहाँगीर के राज्याभिषेक का दिन) एवं रविवार (अकबर का जन्मदिन) को पशुहत्या पर पूर्ण प्रतिबंध
  9. सड़कों के किनारे सराय, मस्जिद एवं कुओं का निर्माण
  10. मनसबों तथा जागीरों का सामान्य प्रमाणीकरण
  11. आइमा (मदद-ए-माश) भूमि का प्रमाणीकरण
  12. दुर्गों तथा प्रत्येक प्रकार के बंदीगृहों के सभी बंदियों को क्षमादान।
  • जहाँगीर ने आगरा के किले की शाह बुर्ज के मध्य एक न्याय की जंजीर लगवाई ताकि दुःखी जनता अपनी शिकायतों को सम्राट के सम्मुख रख सके।
  • इस प्रकार जहाँगीर ने अपनी आरंभिक समस्याओं (राज्याभिषेक के समय) को हल करते हुए शुरुआती कार्यकाल में ही प्रशासनिक सुधार किये, जिससे प्रजा का उसके प्रति स्नेह बना रहे। जहाँगीर को एक समृद्ध एवं विशाल साम्राज्य अपने पिता के द्वारा मिला हुआ था।

शहजादा खुसरो का विद्रोह (1606 ई.) 
  • जहाँगीर के गद्दी पर बैठने के पश्चात् शहजादा खुसरो (जिसको राजा मानसिंह और मिर्जा अजीज कोका का समर्थन प्राप्त था) ने विद्रोह कर दिया।
  • जहाँगीर के राज्याभिषेक के समय खुसरो के विद्रोह को दबाते हुए उसे आगरा के किले में बंदी बनाकर रखा गया था। कालांतर में वह अपनी चतुराई के कारण आगरा के किले से भागने में सफल रहा। तत्पश्चात अपने कुछ समथर्कों के साथ खुसरो ने पुनः विद्रोह कर दिया। सिख गुरु अर्जुन देव ने भी समर्थन किया।
  • बादशाह जहाँगीर ने सिखों के पाँचवें गुरु अर्जुन देव को शहजादा खुसरो को समर्थन देने के कारण मौत के घाट उतार दिया। इसी वजह से सिखों और मुगलों के मध्य अत्यंत कड़वाहट पैदा हो गई।
  • खुर्रम के साथ दक्षिण अभियान के समय खुसरो की हत्या कर दी गई। बाद में इसका शव इलाहाबाद में लाकर दफना दिया गया।
नूरजहाँ
  • नूरजहाँ, जहाँगीर की पत्नी थी। इन दोनों का विवाह 1611 ई. में हुआ था। विवाह के बाद उसे ‘नूरमहल’ की उपाधि प्राप्त हुई। बाद में यह उपाधि ‘नूरजहाँ’ (संसार की रोशनी) कर दी गई।
  • नूरजहाँ के बचपन का नाम मेहरुन्निसा था। उसका पिता ग्यास बेग पर्शिया का निवासी था। जहाँगीर ने ग्यास बेग को ‘एत्मादुद्दौला’ की उपाधि प्रदान की।
  • जहाँगीर के शासनकाल में नूरजहाँ गुट का प्रभाव था जिसमें उसके (नूरजहाँ) पिता एत्मादुद्दौला, माता अस्मत बेगम, भाई आसफ खाँ तथा शहजादा खुर्रम सम्मिलित थे।
  • नूरजहाँ ने जहाँगीर के एक पुत्र शहरयार के साथ अपनी पुत्री लाडली बेगम (जो उसके पहले पति शेर अफगान की पुत्री थी) का विवाह किया तथा शहरयार को अपने गुट में खुर्रम की जगह प्रोत्साहित किया।
  • नूरजहाँ, जहाँगीर के साथ झरोखा दर्शन देती थी। सिक्कों पर बादशाह के साथ उसका भी नाम अंकित होता था।
  • माना जाता है कि शाही आदेशों पर बादशाह के साथ नूरजहाँ के भी हस्ताक्षर होते थे।

राजनैतिक अभियान

  1. मेवाड़ अभियान 1605-1615 ई.

  • 1605 से 1615 ई. के मध्य मेवाड़ में निरंतर सैनिक अभियान कराए गए।

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