तकनीक से हारता मानव श्रम


है जिद पर अड़ा क्यूं ,
देख भौतिकता से हारता तू,
सभ्यता का वाहक था जो,
तेरा श्रम अब लगता महंगा,
शायद अपने अस्तित्व के लिए अड़ा रहा तू। 
  • एक दिन हमारे मन में आया कि आज रिक्शा में सवार हो करके जयपुर शहर का भ्रमण कर ऑफिस पहुंचा जाये। पर यह सपना पूरा न हो सका क्योंकि जब मैंने रिक्शा चालक से किराया पूछा तो मैं थोड़ा सा निराशा हो गया क्योंकि उसने 20 रुपये मांगे जो आधुनिक तकनीक के जमाने में मुझे क्या किसी को भी राश नहीं आये? 
  • मेरी निराशा का कारण महंगा किराया नहीं था बल्कि एक हठ और तकनीक से हारते मानव श्रम से थी, जोकि मेरे मन से उठी एक चिन्तनीय सोच मात्र थी। मैं बड़ा कोई पूंजीपति नहीं एक आमजन हूं यदि यही प्रश्न कोई पूंजीपति करता तो शायद मानव श्रम फिर से एक बार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गूंज जाता।
  • एक तो मानव श्रम तकनीक के मुकाबले हर प्रकार से पिछड़ रहा है। इसमें समय अधिक लगता है साथ ही यह महंगी है। पर इसका मतलब यह नहीं इसका इस्तेमाल करना बंद कर दें। 
  • हम दो कारणों से इनका उपयोग कर सकते हैं - 
पहला, तो मानव को रोज़गार मिल जाएगा।
दूसरा, पर्यावरण प्रदूषण में 90 प्रतिशत राहत।
  • यह तथ्य भारत के संदर्भ में बड़ा चिन्तनीय होना चाहिए किन्तु है नहीं, क्योंकि मानव श्रम की उपेक्षा भारत जैसे अधिक आबादी वाले देश में देखने को मिलता है। पाश्चात्य देशों में मानवीय जनसंख्या भारत के मुकाबले बहुत कम है। भारत में जनसंख्या की अधिकता व तकनीक के कारण मानव श्रम की उपेक्षा हो रही है। भारतीय मानव श्रम की उपेक्षा का प्रश्न बड़ा नहीं हो सकता क्योंकि यह पश्चिमी देशों का थोड़े है जो इस मानवीय अधिकार को महत्त्व दिया जाय और वैश्विक मुद्दा बनाया जाय। 
  • एक और बड़े लोग अनेकों प्रकार से लोगों को जागरूक बनाने की अतिवादिता कर रहें हैं कोई अभिनेता रोड़ सेफ्टी के लिए तो कोई शौचालय के लिए आगे आ रहे हैं तो कोई बेटी बचाने के लिए। पर कोई मानव श्रम की रक्षा व उसके पर्यावरण को पहुंचने वाले लाभ के लिए आगे नहीं आ रहे हैं। 
  • आये भी क्यों? 
  • क्या पता भैया कोई वाहन कम्पनी इनके भला करने के चक्कर में उनसे विज्ञापन करवाने के लिए करार ही न करे।
  • सच है वैसे भी ये रिक्शा चालक कब तक संघर्ष करेंगे। क्योंकि कई चालक तो रिक्शा किराये पर लेते हैं तो उन्हें यदि कमाई नहीं हुई तो वे वैसे ही दोबारा रिक्शा न चलाये। और फिर ये अधिक दूरी तक का सफर करते नहीं तो वैसे ही नकार दिये जाते हैं।
  • भारत में बढ़ती बेरोज़गारी बड़ा कारण है जो सबको दिखाई देता है किन्तु मानव श्रम की उपेक्षा होना इसका बड़ा प्रश्न व कारण है। जोकि हमें मिलकर सुलझाना होगा। यही वह कारण है जो भारत को लगातार विकास की राह में पीछे धकेल रहा है। 
  • कभी हमारे वैज्ञानिकों ने यह नहीं सोचा होगा कि भारत की युवा शक्ति (ऊर्जा) क्यूं उपेक्षित है? 
  • क्यों न इस युवा ऊर्जा का सदुपयोग किया जाये तो भारत की आधी समस्याओं का समाधान हो जाये। जैसे - देश में फैल रही अव्यवस्था, बढ़ती बेरोज़गारी, बेरोजगारी और श्रम की उपेक्षा के कारण युवा का अपराधिक गतिविधियों में लिप्त होना। 
  • हमारी सरकार ऊर्जा-ऊर्जा की पुकार करती है, लेकिन युवा ऊर्जा को विकल्प के तौर पर नहीं देखती है। शायद उन युवाओं पर सरकार को विश्वास नहीं या फिर तकनीक से ही आपराधिक गतिविधियों पर नियंत्रण किया जा सकता है।
  • हम तकनीक से आतंकवाद पर विजय पाने चाहते हैं जोकि तब तक संभव नहीं है जब तक युवा श्रम की उपेक्षा होती रहेगी, क्योंकि आतंकवादी भारत में हो रही युवा शक्ति की उपेक्षा को अपने हित में देखता है। 
  • कहते हैं मरता क्या नहीं करता तो ऐसे में वे युवा को अपना हथियार बनाते हैं और भारतीय युवा शक्ति का उपयोग गलत कामों के लिए करते हैं। 
  • हमारी देश की सरकार विदेशों से आधुनिक तकनीक के हथियारों व विमानों का सौदा करती है जिनके भरोसे हम आतंकवाद पर काबू पाना चाहते हैं। ये विमान आये दिन दम तोड़ रहे हैं। कभी सुखोई गश खा रहा तो कभी मिग ढेर हो रहा है।
  • भारत सरकार ने कभी नहीं सोचा होगा कि हम हमारी युवाशक्ति को यदि सीमा पर प्रहरी के रूप में काम ले तो शायद आतंकवाद को हम परास्त कर सकते हैं और देश में फैल रही असामाजिक गतिविधियों पर भी विजय प्राप्त की जा सकती है।
  • खैर, हम तो एक साधारण आदमी है जो सिर्फ दो वक्त की रोटी के लिए हर रोज लड़ाई लड़ते हैं कभी मानव श्रम की उपेक्षित होने से तो कभी मजदूर की उपेक्षा। कभी कर्मचारियों की हड़ताल, तो कभी डॉक्टरों की हड़ताल।
  • हम तो अब क्या कहे बस यही कि मानव बड़ा स्वार्थी जीव है वह अपने स्वार्थ के खातिर दूसरे मानव को नहीं चाहता फिर ये तो भारत सरकार जो पार्टियों से बनती है जिसकी सरकार उसके चाहने वालों की बल्ले-बल्ले। हमारा तो काम सिर्फ ऐसे लोगों के लिए कहना मात्र है क्योंकि वक्त तो हमारे पास भी नहीं, बस हमको दिखा कह दिया।
  • बड़े लोग सिर्फ अपने मुनाफे की ही बातें करते हैं, उन्हें शारीरिक श्रम करने वाले मानव की उन्हें चिंता नहीं। वे मानव द्वारा किये जाने वाले श्रम को उनका शोषण मानते हैं। 
  • हां पर आपसे वादा है यदि वक्त ने साथ दिया तो हम इनके लिए कुछ करेंगे जरूर।

लघु संसद का सच
राकेश सिंह राजपूत

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