प्रायद्वीपीय पठारी प्रदेश का संक्षिप्त वर्णन करते हुए इसके महत्त्व पर प्रकाश डालिए?



  • प्रायद्वीपीय पठार 16 लाख वर्ग किमी. में फैला भारत का सबसे प्राचीन भू-भाग है। त्रिभुजाकार आकृति वाला यह प्रदेश उत्तर में गंगा-सतलज के मैदान तथा शेष दिशाओं में समुद्र से घिरा है। प्रायद्वीपीय पठारी प्रदेश गोंडवाना भूमि का एक अंग है। इस पठार की समुद्र तल से ऊंचाई लगभग 600 मीटर है। प्राकृतिक दृष्टि से इसकी उत्तरी सीमा अरावली, कैमूर तथा राजमहल पहाड़ियों द्वारा निर्मित होती है। पूरब में पूर्वी घाट तथा पश्चिम में पश्चिमी घाट इसकी सीमा है।
  • कन्याकुमारी दक्षिण में इसका अंतिम सिरा है। यह पठार इसमें बहने वाली कई नदियों के कारण कई छोटे-छोटे पठारों में बंटा हुआ है जो निम्नलिखित हैं -

मालवा का पठार -

  • यह लावा से बना काली मिट्टी का मैदान है, जिसकी ढाल गंगा की ओर है। इस पर बेतवा, काली सिंध, चंबल, माही आदि नदियां प्रवाहित होती है, जो आगे चलकर यमुना नदी में मिल जाती है। इन नदियों का मध्यवर्ती भाग काली मिट्टी के जमाव के कारण काफी उपजाऊ है।

बुंदेलखंड का पठार -

  • मालवा पठार के उत्तरी व उत्तर-पूर्वी भाग को बुंदेलखंड का पठार कहते हैं। यह पठार उत्तर में यमुना के मैदान के निकट समाप्त हो जाता है। 
  • चंबल व यमुना नदियों द्वारा बीहड़ खड्ड के निर्माण के कारण यह पठार असमतल और बंजर है। ग्वालियर तथा विंध्याचल श्रेणी के मध्य फैला यह पठार लगभग 300 से 600 मीटर की ऊंचाइ्र पर स्थित है।

छोटानागपुर का पठार -

  • यह पठार बिहार व झारखंड के गया, हजारीबाग और रांची आदि क्षेत्रों में फैला हुआ है। 
  • इसकी औसत ऊंचाई लगभग 700 मीटर है। महानदी, स्वर्णरेखा, सोन और दामोदर आदि इस पठार की मुख्य नदियां हैं।
  • इस पठार की उत्तरी सीमा राजमहल पहाड़ियां है। यह पठार कई भागों में बंटा हुआ है। 
  • दामोदर के उत्तर में हजारीबाग तथा कोडरमा पठार एवं दखिण में रांची का पठार स्थित है। 
  • खनिज पदार्थों की दृष्टि से यह पठार काफी धनी है। यहां बॉक्साइट, अभ्रक और कोयला आदि प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। 
  • इसके अतिरिक्त टंगस्टन, क्रोमाइट, चूना-पत्थर, क्वाटर््ज, तांबा आदि भी उपलब्ध हैं। यहां पर सागवान, शीशम, साल, जामुन, सेमल व बांस आदि बहुतायत में पाये जाते हैं।

मेघालय का पठार -

  • यह प्रायद्वीपीय पठार का पूर्व की ओर निकला हुआ भाग है, जो गंगा और ब्रह्मपुत्र द्वारा लायी गयी जलोढ़ मिट्टी से आच्छादित है और बहुत से छोटे-छोटे भागों में बंटा है, जिनमें गारो, खासी और जयंतिया पहाड़ियां प्रमुख है। इस पठार में घने जंगल पाये जाते हैं। इसका उत्तरी भाग मिकिर और रेग्मा पहाड़ियों के नमा से जाना जाता है। यहां अवस्थित खासी पहाड़ियों के दक्षिण में चेरापूंजी स्थित है।

दक्कन का पठार -


  • नर्मदा और महानदी के दक्षिण में पाये जाने वाले पठारों में दक्कन का पठार प्रमुख है। इसे महाराष्ट्र पठार भी कहा जाता है। 5 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत यह पठार पूरब में अमरकंटक व सरगुजा, पश्चिम में कच्छ, दक्षिण में बेलगांव तथा दक्षिण-पूर्व में राजमुंदरी को घेरे हुए है। 
  • इसके अंतर्गत महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश राज्यों के भू-भाग आते हैं। यह बेसाल्ट चट्टानों से निर्मित है, जिसमें लावा की गहराई 2000 मीटर तक पाई जाती है। यह गहराई पश्चिम से पूरब की ओर कम होती जाती है। 
  • कच्छ में इसकी गहराई 760 मीटर है, जबकि नागपुर के निकट यह गहराई केवल 15 मीटर रह जाती है। इस पर गोदावरी और उसकी सहायक नदियां प्रवाहित होती है। प्राचीन, कठोर एवं रूपांतरित धारवाड़ चट्टानों का सर्वाधिक विस्तार इस पठार पर ही है।
  • गोंडवाना काल की प्रमुख चट्टानें हैं - आग्नेय, बलुआ पत्थर, चूने की चट्टानें तथा कोयला। खनिज पदार्थों की दृष्टि से यह पठार अत्यंत उपयोगी है। यहां पर लोहा, सोना, मैंगनीज, बॉक्साइट, मैग्नेसाइट और अभ्रक आदि खनिज प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं।

प्रायद्वीपीय पठार का महत्त्व निम्न बिन्दुओं से ज्ञात होता है- 

  1. इस पठार पर प्रचुर मात्रा में धातुओं एवं अधातुओं के अयस्क पाये जाते हैं, जिनकी सबसे अधिक सांन्द्रता छोटानागपुर पठार में है।
  2. इस पठार की बेसाल्टिक चट्टानें काली मिट्टी को जन्म देती हैं, जो अत्यधिक उपजाऊ है और इस पर मुख्यतः कपास और गन्ने की खेती होती है।
  3. पठार पर स्थित नदियों द्वारा पर्याप्त मात्रा में जल विद्युत का उत्पादन किया जा सकता है।
  4. विंध्याचल पर्वत उत्तरी और दक्षिणी भारत के बीच प्राकृतिक वाटरशेड का कार्य करता है, जिसके कारण दक्षिण भारत को इसका विशिष्ट अनोखा हरा-भरा स्वरूप प्राप्त हो सका है।


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