इस्लाम का उदय



  • 600-1200 ई. तक के इस्लामी इतिहास के मुख्य स्रोत तवारीख, सिरा, हदीथ और तफसीर है।
  • तवारीखः इसे इतिवृत भी कहा जाता है। इसमें कालक्रमानुसार घटनाओं का विवरण मिलता है।
  • मुहम्मद साहब और अन्य धर्मगुरूओं, खलीफाओं के जीवन-चरित को सिरा कहा जाता है।
  • हदीथ में हजरत मुहम्मद के कार्यो और उनके कथनों का उल्लेख मिलता है।
  • कुरान, जो इस्लाम धर्म का पवित्र ग्रंथ है, पर समय-समय पर टीकाऐं या तफसीर लिखी गई जिनसे मुहम्मद साहब की शिक्षाओं और इस्लाम धर्म के मूल तत्वों के विषय में ज्ञान प्राप्त होता है।
  • कुरान शब्द की व्यत्पत्ति ‘इकरा’ से मानी गई है।
  • कुरान की रचना अरबी भाषा में की गई है। संपूर्ण ग्रंथ में 114 अध्यायों ‘सुराओं’ में विभक्त है। इसमें हजरत मुहम्मद द्वारा 612-632 ई. के बीच मक्का और मदीना में दिए गए संदेशों शताब्दी में संभवतः इन्हें संकलित किया गया। सभी स्रोतों का आधार अखबार ‘आंखों देखा विवरण’
  • मुकदसी का भूगोल पर लिखित अहसानल तकसीम, अलबेरूनी की तहकीक मा लिल हिंद या तहकीके हिंद, फिरदौसी की शाहनामा।
  • उमर ख्याम की रूबाइयात तथा एक हजार एक राते।
  • दस्तावेजी साक्ष्य में सर्वाधिक महत्वपूर्ण गेलिजा दस्तावेज है। 1896 ई. में इन्हें फुस्सात ‘प्राचीन काहिरा’ में स्थित बेन एजरा के महूदी प्रार्थना भवन ‘सिनागॉग’ के एक बंद कमरे से प्राप्त किया गया।
  • दस्तावेज यहूदी-अरबी भाषा में लिखे।
  • गेनिजा दस्तावेज के एक पत्र पर अमिताभ घोश ने इन एन एंटिक लैंड नामक पुस्तक लिखी, इसमें एक भारतीय दास की कहानी है।

इस्लाम के उदय के पूर्व अरब समाज

  • भूमध्यसागर, लालसागर, अरब सागर एवं फारस की खाडी से घिरा हुआ अरब प्रदेश एक प्रायद्वीप के समान था। अरब प्रदेश अनेक कबीलों में बंटा हुआ था।
  • गैर-अरबों को मवाली कहा जाता था।
  • अनेक कबीले खानाबदोश बद्दू थे।
  • मक्का स्थित काबा अरबों का धार्मिक केन्द्र था। काला पत्थर
  • इस्लामी इतिहास में इस्लाम के उदय के पूर्व का काल जाहिलिया युग कहा जाता है।

इस्लाम धर्म का उदय

  • हजरत मुहम्मदः इस्लाम धर्म के संस्थापक, जन्म 570 ई. मक्का
  • कुरैष कबीले के बानूहाशिम वंश में। पिता अब्दुल्ला, माता अमीना।
  • उनकी शिक्षा-दीक्षा की समुचित व्यवस्था नहीं, विधवा खदीजा से 595 में विवाह किया।
  • 611 ई. में एक रात उन्हें मक्का से कुछ दूर स्थित पहाडियों में हेरा की गुफा में सच्चे ज्ञान की अनुभूति हुई।
  • अल्लाह के दूत जिब्रील द्वारा उन्हें अल्लाह का संदेश मिला। कुरान में इस घटना को ‘शक्ति की रात’ कहा जाता है। सत्य ज्ञान की प्राप्ति का उल्लेख उन्होंने सबसे पहले अपने निकटस्थ लोगों- पत्नी खदीजा, मित्र अबूबकर और दामाद अली, से किया।
  • 612 ई. में उन्होंने अपने- आपकों खुदा का रसूल या संदेशवाहक घोषित किया।उन्होंने बतलाया कि ‘‘ खुदा एक है तथा सर्वशक्तिमान है।’’ उसके अलावा और कोई देवता नही है और मैं मुहम्मद उसका रसूल हूं।’’
  • उन्होंने अरब कबीलों में प्रचलित बहुदेववाद, मूर्तिपूजा की घोर आलोचना की। दोजख ‘नरक’, बहिश्त ‘स्वर्ग’

इस्लाम की  शिक्षाऐं

  • मुहम्मद साहब की शिक्षा और उपदेश इस्लाम धर्म के मूल तत्व है।
  • इस्लाम धर्म के प्रमुख सिद्धांत निम्नलिखित है-
  1. एकेश्वरवाद पर बल
  2. समानता पर बल
  3. मूर्तिपूजा निषेध
  4. आत्मा की अमरता का सिद्धांत
  5. पैगंबर
  6. नैतिकता में आस्थाः इस्लाम के अनुयायियों के लिए नैतिकता के नियमों का पालन करना आवश्यक । ये नियम थेः
  • क. शहादाः प्रत्येक मुसलमान के लिए यह स्वीकार करना आवश्यक था कि अल्लाह एक मात्र ईश्वर हैं और मुहम्मद अल्लाह के रसूल है। ‘‘ला-इलाहा इल लल्लाह मुहम्मद-उर-रसूल अल्लाह’’
  • ख. नमाजः प्रतिदिन पांच बार एवं शुक्रवार को सार्वजनिक मस्जिद में नमाज पढनी चाहिए
  • ग. रोजाः प्रत्येक मुसलमान को वर्ष में रमजान के महीने में उपवास करना
  • घ. जकातः प्रत्येक मुसलमान को अपनी आमदनी का ढाई प्रतिशत गरीबों और अनाथों को दान में देना चाहिए।
  • ड. हजः जीवन में कम-से- कम एक बार मक्का की धर्मयात्रा अवश्य करनी चाहिए।
  • इस्लाम धर्म ने दार्शनिकता के स्थान पर व्यावहारिकता पर बल दिया।
  • प्रेम और एहिहकता का संदेश दिया। गुलामों और स्त्रियों के साथ दयालुतापूर्ण व्यवहार करने एवं बालहत्या, बालविवाह, बहुविवाह की प्रथा को त्यागने का उपदेश मुहम्मद साहब ने दिया।
  • सूदखोरी प्रतिबंधित बताया।

मक्का से मदीना

  • मक्कावासियों पर मुहम्मद साहब की शिक्षा का व्यापक प्रभाव पडा। निहित स्वार्थी वर्गो ने मुहम्मद साहब का विरोध करना आरंभ किया। इसके दो मुख्य कारण थेः
  • 1. मक्का में बहुदेववाद एवं मूर्तिपूजा प्रचलित थी। मुहम्मद साहब के उपदेशों को इस वर्ग ने अपनी धार्मिक भावना एवं परम्पराओं पर आघात मानकर इस्लाम का विरोध करना आरंभ किया।
  • 2. मक्का के तीर्थस्थल होने के कारण यहां बराबर तीर्थ यात्री आया करते थे। वे मक्का के काबा एवं अन्य बुतों पर चढावा भी चढाते थें।
  • 622 ई. मक्का छोड़कर अपने अनुयायियों के साथ नए नगर मदीना में शरण लेनी पड़ी। इस्लामी इतिहास में इस घटना को हिजरा या हिजरत कहा जाता है।
  • मक्का से मदीना आने वाले मुसलमानों को मुहाजिर और मदीना के मुसलमानों को अंसार या सहायक कहा जाता है।
  • मुहम्मद साहब के मदीना आगमन (622 ई.) से मुसलमानों का हिजरी संवत आरंभ होता है। यह चंद्र संवत हैं। यह सौर वर्ष से 11 दिन कम होता है। इसमें 354 दिनों का एक वर्ष और उनतीस अथवा तीस दिनों के बारह महीने होते हैं।
  • हिजरी संवत का व्यवहार खलीफा उमर के समय से आरंभ हुआ।

मदीना से पुनः मक्काः-

  • मुहम्मद साहब ने मदीना में एक राजनीतिक संगठन की स्थापना की जिससे उनके अनुयायियों को आंतरिक सुरक्षा मिली।
  • मुहम्मद साहब मक्का को अपने धार्मिक-राजनीतिक प्रभाव में लाना चाहते थे वे 629 ई. में मदीना से पुनः मक्का गए।
  • उन्होंने मक्कावासियों से एक समझौता किया। इसके अनुसार मक्का को तीर्थ केन्द्र के रूप में मान्यता दी गई। काबा के पवित्र काले पत्थर की पूजा की अनुमति दी गई, परंतु अन्य बुतो को हटा दिया गया।
  • धार्मिक प्रचार के दौरान ईसाइयों एवं यहूदियों का विरोध दबा दिया गया तथा उन्हें ‘जजिया’ देना पड़ा
  • मदीना नवोदित इस्लाम राज्य की राजधानी और मक्का उसका धार्मिक केन्द्र बन गया।
  • मृत्युः 632 ई. में


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