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मुगल कालीन स्थापत्य कला

byDivanshuGS -March 20, 2022
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मुगल कालीन स्थापत्य कला  

  • दिल्ली सल्तनत काल में प्रचलित वास्तुकला की ‘भारतीय इस्लामी शैली’ का विकास मुगल काल में हुआ।
  • भारतीय वास्तु पर इस समय फारसी प्रभाव पडा। विद्वानों ने इस मिश्रित शैली को इण्डों परशियन शैली नाम दिया है। इस शैली का जन्म हिन्दू, मुस्लिम, जैन, बौद्ध, राजपूत, ईरानी तथा अरबी-बगदादी वास्तुकला शैलियों के तत्वों के मिश्रण से हुआ।
  • मुगलकाल को उसकी बहुमुखी सांस्कृतिक गतिविधियों के कारण भारतीय इतिहास का ‘द्वितीय क्लासिकी युग’ कहा गया है। मुगलकालीन वास्तुकला में फारस, तुर्की, मध्य एशिया, गुजरात, बंगाल, जौनपुर आदि स्थानों की शैलियों का अनोखा मिश्रण हुआ था।
  • पर्सी ब्राउन ने ‘मुगलकाल’ को भारतीय वास्तुकला का ग्रीष्म काल माना है, जो प्रकाश और उर्वरा का प्रतीक माना जाता है।
  • स्मिथ ने मुगलकालीन वास्तुकला को कला की रानी कहा है।

बाबर 

  • वह हिन्दू शैली में निर्मित ग्वालियर के मानसिंह एवं विक्रमजीत सिंह के महलों से सर्वाधिक प्रभावित था। बाबरनामा में तत्कालीन स्थानीय वास्तुकला में संतुलन या सुडौलपन का अभाव था।
  • बाबर के समय के भवनों में ईरानी प्रभाव अधिक था। अतः बाबर ने अपने निर्माण कार्य में इस बात का विशेष ध्यान रखा कि उसका निर्माण सामंजस्यपूर्ण और पूर्णतः ज्यामितीय हो।
  • आगरा में ज्यामितीय आधार पर आराम बाग का निर्माण करवाया। पानीपत के निकट काबुली बाग में निर्मित एक मस्जिद 1526 ई. रूहेलखण्ड के सम्भल नामक स्थान पर निर्मित जामी मस्जिद 1529 आगरा के पुराने लोदी के किले के भीतर की मस्जिद आदि।
  • पानीपत के मस्जिद की विशेषता उसका ईंटो द्वारा किया गया निर्माण था।

हुमायूं

  • उसने 1533 ई. में ‘दीनपनाह’ ‘धर्म का शरणस्थल’ नामक नगर की नींव डाली। इस नगर जिसे ‘पुराना किला’ के नाम से जाना जाता है, की दीवारें रोडी से निर्मित थीं।
  • हिसार जिले में फतेहाबाद में दो मस्जिदे 1540 ई. में बनाई गई है, फारसी शैली में निर्मित है।

शेरशाह सूरी 

  • शेरशाह का लघुकाल का शासन मध्यकालीन भारतीय वास्तुकला के क्षेत्र में ‘संक्रमणकाल’ माना जाता है। उसने दिल्ली पर कब्जा कर ‘शेरगढ’ या दिल्ली शेरशाही की नींव डाली, आज इस नगर के अवशेषों में ‘लाल दरवाजा’ एवं खूनी दरवाजा देखने को मिलते है।
  • शेरशाह ने दीनपनाह को तुड़वाकर उसके मलवे पर ‘पुराने किले’ का निर्माण करवाया।
  • 1542 ई. में शेरशाह ने इस किले के अन्दर ‘किला-ए-कुहना’ नाम की मस्जिद का निर्माण करवाया और उसी परिसर में शेरमण्डल नामक एक अश्टभुजाकार तीन मंजिला मण्डप का निर्माण करवाया।
  • बिहार के रोहतास नामक स्थान पर उसने एक किले का निर्माण करवाया। अकबर के राज्यकाल के पूर्व हिन्दू-मुस्लिम स्थापत्य कला का सम्भवतः सबसे सुन्दर नमूना शेरशाह का मकबरा है। इसे स्वयं शेरशाह ने सहसराम ‘बिहार’ में झील के बीच ऊंची कुर्सी देकर बनवाया था।
  • इसकी डिजायन मुस्लिम है, लेकिन इसके भीतरी भग में हिन्दू तीसरा ब्रेकेट और पटाई के तीरों के ऊपरी भागों का सुन्दर प्रयोग किया गया है।
  • आलोचकों का मत हैं कि यह मकबरा ‘तुगलक काल की इमारतों के गाम्भीर्य और शाहजहां की महान कृति ताजमहल के स्त्रियोंचित सौन्दर्य के बीच जैसे सम्पर्क स्थापित करता है।’
  • मुख्य कक्ष अष्टकोणीय है, चारों तरफ छतरियों का निर्माण किया गया है।
  • किला-ए- कुन्हां मस्जिद में ‘ऐसी कलात्मक विशेषताएं हैं कि उनके कारण इस उत्तरी भारत की इमारतों में उच्च स्थान दिया जा सकता है।’
  • पर्सी ब्राउन ने शेरशाह के मकबरे को सम्पूर्ण उत्तर भारत की सर्वोत्तम कृति कहा है।
 

अकबर कालीन इमारतें 

  • अकबर के शासन काल के निर्माण कार्यो में हिन्दू-मुस्लिम शैलियों का व्यापक समन्वय दिखता है।
  • अबुल फजल ने अकबर के विषय में कहा हैं कि ‘सम्राट सुन्दर इमारतों की योजना बनाता है और अपने मस्तिष्क एवं हृदय के विचार को पत्थर और गारें के रूप दे देता है।’
  • अकबर ने तत्कालीन कला शैलियों की हर बारीकी को समझा और अपने कलाकारों को इमारतें बनाने के लिए नये-नये विचार दिये।
  • उसके आदेशों पर आगरा, फतेहपुर सीकरी, लाहौर, इलाहाबाद, अटक और अन्य स्थानों में जो इमारतें बली उन पर उसके व्यक्तित्व की छाप अंकित है। उसे हिन्दू-मुस्लिम शैली अथवा भारत की राष्ट्रीय स्थापत्य कला शैली कहा जा सकता है।

हुमायूं का मकबरा

  • अकबर के शासनकाल की सबसे पहली इमारत दिल्ली का हुमायूं का मकबरा है। यह अकबर की सौतेली मां हाजी बेगम ‘बेगा बेगम’ की देखरेख में 1565 ई. में बना था।
  • हाजी बेगम ईरानी ‘फारसी’ आदर्शो से प्रभावित थी औरी इसका वास्तुकार एवं प्रधान कारीगर मीरक मिर्जा गियास भी ईरानी था, इसलिए यह अकबर के विचारों से अप्रभावित ही रहा।
  • यही कारण हैं कि इस मकबरे की शैली ईरानी हैं। ‘कुछ फूली हुई-सी आकृति का उठी गर्दन पर बना, इसका दुहरा गुम्बद समरकन्द के तैमूर और बीबी खानम के मकबरे के गुम्बद जैसा लगता हैं।’
  • यह गुम्बद भारत में अपनी तरह का सबसे पहला गुम्बद है। इसकी शैली दमस्कस की 11वीं सदी के अन्त में निर्मित उमैयर मस्जिद की शैली ही है। यह मकबरा ज्यामितीय चतुर्भुज आकार के बने उद्यान के मध्य एक उंचे चबूतरे पर स्थित है। यह ‘चार-बाग’ पद्धति में बना प्रथम स्थापत्य स्मारक था। वैसे भारत में पहला बाग युक्त मकबरा सिकंदर लोदी का मकबरा था।
  • इस मकबरे को ‘ताजमहल का पूर्वगामी’ कहा गया है। इसे एक ‘वफादार बीबी की महबूबाना पेशकश’ कहा जाता है। ईरानी प्रभाव के साथ-साथ मकबरे में हिन्दू शैली की ‘पंचरथ’ से भी प्रेरणा ली गई है।
  • इस मकबरे की विशेषता ‘संगमरमर से निर्मित इसका विशाल गुम्बद एवं द्विगुम्बदीय' प्रणाली थी। मकबरा तराशे गये लाल रंग के पत्थरों द्वारा निर्मित है। यह मुगलकालीन एकमात्र मकबरा हैं जिसमें मुगलवंश के सर्वाधिक लोग दफनायें गये है। जिनमें हाजीबेगम, हमीदा बानू बेगम, हुमायूं की छोटी बेगम, दाराशिकोह, जहांदारशाह, फर्रूखसियर, रफीउरद्दरजात, रफीउद्दौला और आलमगीर द्वितीय।
  • दिल्ली के अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह ‘जफर’ और उसके तीन शहजादों को अंग्रेज लेफ्टीनेंट हडसन ने 1857 में मकबरे से गिरफ्तार किया था।

जहांगीरी महल

  • यह ग्वालियर के राजा मानसिंह के महल की नकल पर बना है। ‘जहांगीरी महल’ अकबर का सर्वोत्कृष्ट निर्माण कार्य है। इस महल के चारों कोनों में 4 बड़ी छतरियां हैं। महल पूर्णतः हिन्दू शैली में बना है इसमें संगमरमर का कम प्रयोग हुआ है। कड़ियां तथा तोड़े का प्रयोग इसकी विशेषता है।
  • इस महल के सामने लॉन में प्याले के आकार का एक हौज बना हुआ है, जिस पर फारसी भाषा आयतें खुदी है।
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