DivanshuGeneralStudyPoint.in
  • Home
  • Hindi
  • RPSC
  • _Economy
  • _Constitution
  • _History
  • __Indian History
  • __Right Sidebar
  • _Geography
  • __Indian Geography
  • __Raj Geo
  • Mega Menu
  • Jobs
  • Youtube
  • TET
HomeHistory

जैन धर्म

byDivanshuGS -February 28, 2022
1

Jain Dharm जैन धर्म

  • जैन शब्द संस्कृत भाषा के 'जिन' शब्द से बना है, जिसका अर्थ 'विजेता' होता है अर्थात् जिसने अपनी इंद्रियों को जीत लिया हो।
  • जैन अनुश्रुतियों और परम्पराओं के अनुसार जैन धर्म 24 तीर्थंकर माने गए हैं, परंतु पहले 22 तीर्थंकर की ऐतिहासिकता संदिग्ध है। 
  • जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर एवं संस्थापक ऋषभदेव है और अंतिम 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी।
  • प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव और 22वें तीर्थंकर अरिष्टनेमी का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है।


पार्श्वनाथ

पार्श्वनाथ


  • 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे। इनका जन्म इक्ष्वाकु वंशीय राजा अश्वसेन के घर हुआ था। जैन साहित्य के अनुसार इनका जन्म महावीर से लगभग 250 ईसा पूर्व 8वीं सदी ईसा पूर्व में हुआ था।
  • इनकी माता का नाम वामा था। इनका विवाह कुशस्थल की राजकन्या प्रभावती के साथ हुआ था।
  • 30 वर्ष की अवस्था में वैभव-विलास पूर्ण जीवन का त्याग कर दिया।
  • 83 दिन की घोर तपस्या के बाद सम्मेद पर्वत पर इन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ। 
  • पार्श्वनाथ द्वारा प्रतिपादित मार्ग का अनुसशरण करने वाले अनुयायी 'निर्ग्रन्थ' कहलाये, क्योंकि वे सांसारिक बंधनों यानी ग्रंथियों से विमुक्त हो जाते थे।
  • महावीर स्वामी के माता-पिता भी पार्श्वनाथ के अनुयायी थे।
  • जैन साहित्य में उनकी अनुयायिनी स्थियों का उल्लेख मिलता है।
  • पार्श्वनाथ ने चार सिद्धांतों का प्रतिपादन किया। जो थे- अहिंसा, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना) और अपरिग्रह (धन संचय नहीं करना)।
  • उन्होंने ब्राह्मणों के बहुदेववाद और यज्ञवाद का विरोध किया।
  • वे वेदों की प्रामाणिकता में भी विश्वास नहीं रखते थे।
  • उनका जन्म पर आधारित वर्ण व्यवस्था पर विश्वास नहीं था।
  • उनके मत के अनुसार प्रत्येक मनुष्य मोक्ष का अधिकारी है।

महावीर स्वामी

  • जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर एवं जैन धर्म के वास्तविक संस्थापक महावीर स्वामी थे।

जन्म व मृत्यु

  • कुछ विद्वान इनका जन्म 599 ईसा पूर्व और मृत्यु 527 ईसा पूर्व मानते हैं तो कुछ विद्वान 540 ईसा पूर्व और मृत्यु 468 ईसा पूर्व मानते हैं। उनको निर्वाण की प्राप्ति राजगीर के समीप पावापुरी में हुई।
  • जन्म स्थान: वैशाली के निकट कुण्डग्राम में हुआ। उनका बचपन का नाम वर्द्धमान था।
  • उनके पिता सिद्धार्थ ज्ञातृक कुल के थे जो वज्जि संघ का प्रमुख सस्य था।
  • उनकी माता का नाम त्रिशला, जो विदेहदत्ता वैशाली के लिच्छवि कुल के प्रमुख चेटक की बहन थी।
  • इस प्रकार मातृपक्ष से वे मगध के हर्यंक राजा बिम्बिसार के निकट संबंधी थे।
  • विवाह: कुण्डिन्य गोत्र की कन्या यशोदा के साथ हुआ। उनके एक पुत्री अणोज्जा (प्रियदर्शना) था। उसका विवाह जामालि के साथ हुआ, वह महावीर का प्रथम शिष्य था।
  • कल्पसूत्र से मालूम होता है कि बुद्ध के समान वर्द्धमान के ​बारे में भविष्यवाणी की थी कि वे या तो चक्रवर्ती राजा बनेंगे या फिर महान संन्यासी।
  • वर्द्धमान ने 30 वर्ष की अवस्था में गृह त्याद दिया। उन्होंने अपने बड़े भाई नंदिवर्द्धन की आज्ञा लेकर गृहत्याग दिया।

ज्ञान प्राप्ति (कैवल्य):

  • 12 वर्षों की कठोर तपस्या एवं साधाना के पश्चात् 42 वर्ष की आयु में जृम्भिक ग्राम के समीप ऋजुपालिका नदी के तट पर साल वृक्ष के नीचे उन्हें कैवल्य की प्राप्ति हुई।
  • ज्ञान प्राप्ति के बाद वे 'केवलिन्', जिन (विजेता), 'अर्हत्' (योग्य) तथा निर्ग्रन्थ (बंधन रहित) कहलाए।
  • अपनी साधना में अटल रहने तथा अतुल पराक्रम दिखाने के कारण उन्हें 'महावीर' नाम से सम्बोधित किया गया।
  • कैवल्य प्राप्ति के बाद उन्होंने अपने सिद्धांतों का प्रचार-प्रसार प्रारम्भ किया।
  • वैशाली का लिच्छवि सरदार चेटक उनका मामा था तथा जैन धर्म के प्रचार में मुख्य योगदान दिया।
  • राजगृह में उपालि नामक गृहस्थ उनका शिष्य था।
  • महावीर के कुछ अनुयायियों ने उनका विरोध किया।
  • सर्वप्रथम उनके जामाता जामालि ने उनके कैवल्य के चौदहवें वर्ष में एक विद्रोह का नेतृत्व किया। इसके दो वर्ष बाद तीसगुप्त ने उनका विरोध किया। किन्तु शीघ्र ही वे दोनों शांत कर दिए गए।
  • 527/468 ईसा पूर्व के लगभग 72 वर्ष की आयु में राजगृह के समीप स्थित पावा नामक स्थान पर उन्होंने शरीर त्याग दिया।
  • बौद्ध साहित्य में महावीर को निगण्ठ-नाथपुत्त कहा गया है।
  • मक्खलिपुत्त गोशाल नामक संन्यासी से उनकी भेंट नालन्दा में हुई। वह उनका शिष्य बन गया किंतु 6 वर्षों काद उनका साथ छोड़कर उसने 'आजीवक' नामक नए सम्प्रदाय की स्थापना की।
  • जैन ग्रंथ आचारांग सूत्र में महावीर की तपश्चर्या तथा कायाक्लेश का बड़ा ही रोचक वर्णन ​किया गया है।

महावीर की शिक्षाएं

  • महावीर स्वामी ने अपने पूर्वगामी तीर्थंकर पार्श्वनाथ से दो बातों में मतभेद था।
  • पार्श्वनाथ ने भिक्षुओं के लिए केवल चार व्रतों का विधान किया था— अहिंसा, सत्य, अस्तेय तथा अपरिग्रह। परंतु महावीर ने इसमें एक पांचवां व्रत ब्रह्मचर्य भी जोड़ दिया तथा उसका पालन करना अनिवार्य बताया।
  • दूसरा मतभेद यह था कि पार्श्वनाथ ने भिक्षुओं को वस्त्र धारण करने की अनुमति प्रदान की, परंतु महावीर ने उन्हें नग्न रहने का उपदेश दिया।

अहिंसा-

  • जैन धर्म का प्रमुख सिद्धांत है जिसमें सभी प्रकार की अहिंसा के पालन पर बल दिया गया है अर्थात किसी भी जीव की हत्या न करना।
  • सत्य- सदैव सत्य बोलने पर जोर दिया गया है।
  • अस्तेय- चोरी नहीं करनी चाहिए।
  • अपरिग्रह- इसमें किसी भी प्रकार की सम्पत्ति एकत्रित न करने पर जोर दिया गया है क्योंकि सम्पत्ति से मोह और आसक्ति का उदय होता है।
  • ब्रह्मचर्य- इस व्रत के अंतर्गत भिक्षु को निम्नलिखित निर्देश दिए गए हैं।
  • किसी स्त्री से बातें न करना।
  • किसी स्त्री को न देखना।
  • किसी स्त्री के संसर्ग की बात कभी न सोचना।
  • शुद्ध एवं अल्प भोजन ग्रहण करना।
  • ऐसे घर में न जाना जहां कोई स्त्री अकेली रहती हो।
  • महावीर ने गृहस्थों के लिए उपर्युक्त व्रतों को सरल ढंग से पालन करने का विधान प्रस्तुत किया। इसी कारण गृहस्थ जीवन के सम्बन्ध में इन्हें 'अणुव्रत' कहा गया है। इनमें अतिवादिता एवं कठोरता का अभाव है।

अनेकान्तवाद अथवा स्याद् वाद

  • बुद्ध के समान महावीर ने भी वेदों की अपौरुषेयता स्वीकार करने से इन्कार कर दिया तथा धार्मिक एवं सामाजिक रूढ़ियों और पाखण्डों का विरोध किया।
  • उन्होंने आत्मवादियों तथा नास्तिकों के एकान्तिक मतों को छोड़कर बीच का मार्ग अपनाया जिसे 'अनेकान्तवाद' अथवा 'स्याद् वाद' कहा गया है।
  • स्याद् वाद जिसे सप्तभंगीनय भी कहा जाता है ज्ञान की सापेक्षता का सिद्धांत है।
  • जैनियों के अनुसार सांसारिक वस्तुओं के विषय में हमारे सभी निर्णय सापेक्ष्य एवं सीमित होते हैं।
  • न तो हम किसी को पूर्णरूपेण स्वीकार कर सकते हैं और न अस्वीकार ही।
  • ये दोनों अतियां हैं। अत: हमें प्रत्येक निर्णय के पूर्व 'स्यात्' (शायद) लगाना चाहिए।

इसके सात प्रकार बताए गये हैं-

1. स्यात् यह वस्तु है।

2. स्यात् यह नहीं है

3. स्यात् यह है भी और नहीं भी है

4. स्यात् यह अव्यक्त है

5. स्यात् यह है तथा अव्यक्त है

6. स्यात् यह नहीं है और अव्य​क्त है

7. स्यात् यह है, नहीं है और अव्यक्त है

  • इस मत के अनुसार किसी वस्तु के अनेक धर्म (पहलू) होते हैं तथा व्यक्ति अपनी सीमित बुद्धि द्वारा केवल कुछ ही धर्मों को जान सकता है।
  • पूर्ण ज्ञान तो 'केवलिन्' के लिये ही संभव है। अत: उनका कहना था कि सभी विचार अंशत: सत्य होते हैं।
  • समस्त विश्व जीव और अजीव नामक दो नित्य एवं स्वतंत्र तत्वों से मिलकर बना है।
  • जीव चेतन तत्व है जबकि अजीव अचेतन जड़ तत्व है।
  • यहां जीव से तात्पर्य उपनिषदों की सार्वभौम आत्मा से न होकर मनुष्य की व्यक्तिगत आत्मा से है।
  • उनके मतानुसार आत्मायें अनेक होती हैं।
  • चैतन्य आत्मा का स्वाभाविक गुण है। वे सृष्टि के कण-कण में जीवों का वास मानते हैं। इसी कारण उन्होने अहिंसा पर विशेष बल दिया है।
  • अजीव का विभाजन 5 भागों में किया गया है-
  • पुद्गल, काल, आकाश, धर्म तथा अधर्म।
  • यहां धर्म तथा अधर्म गति और स्थिति सूचक है।
  • पुद्गल से तात्पर्य उस तत्व से है जिसका संयोग तथथ विभाजन किया जा सके। इसका सबसे छोटा भाग 'अणु' कहा जाता है।
  • अणुओं में जीव निवास करते हैं। समस्त भौतिक पदार्थ अणुओं के ही संयोग से निर्मित होता है।
  • स्पर्श, रस, गन्ध तथा वर्ण ये पुद्गल के गुण है जो समस्त पदार्थों में दिखाई देते हैं।
  • महावीर पुनर्जन्म तथा कर्मवाद में भी विश्वास करते थे परंतु ईश्वर के अस्तित्व में उनका विश्वास नहीं था। 
  • जीवन का चरम लक्ष्य कैवल्य (मोक्ष) की प्राप्ति है।
  • कर्म बन्धन का कारण है। यहां कर्म को सूक्ष्मतत्व भूततत्व के रूप में माना गया है जो जीव में प्रवेश कर उसे नीचे संसार की ओर खींच लाता है। 
  • क्रोध, लोभ, मान, माया आदि हमारी कुप्रवृत्तियां (कषाय) है जो अज्ञान के कारण उत्पन्न होती है। इस प्रकार जैन मत बौद्ध तथा वेदांत के ही समान अज्ञान को ही बन्धन का कारण मानता है। इसके कारण कर्म जीव की ओर आकर्षित होने लगता है। इसे 'आस्रव' कहते हैं। 
  • कर्म का जीव के साथ संयुक्त हो जाना बन्धन है। 
  • प्रत्येक जीव अपने पूर्व संचित कर्मों के अनुसार ही शरीर धारण करता है। 

मोक्ष के लिए तीन साधन आवश्यक 

1. सम्यक् दर्शन 

  • जैन तीर्थंकरों और उनके उपेदशों में दृढ़ विश्वास ही सम्यक् दर्शन या श्रद्धा है। 
  • इसके 8 अंग बताये गये हैं— सन्देह से दूर रहना, 
  • सांसारिक सुखों की इच्छा का त्याग करना, 
  • शरीर के मोहराग से दूर रहना, 
  • भ्रामक मार्ग पर न चलना, 
  • अधूरे विश्वासों से विचलित न होना, 
  • सही विश्वासों पर अटल रहना, 
  • सबके प्रति प्रेम का भाव रखना, 
  • जैन सिद्धान्तों को सर्वश्रेष्ठ समझना। 
  • इनके अतिरिक्त लौकिक अन्धविश्वासों, पाखण्डों आदि से दूर रहने का भी निर्देश किया गया है।

2. सम्यक् ज्ञान- 

  • जैन धर्म एवं उसके सिद्धान्तों का ज्ञान ही सम्यक् ज्ञान है। 
  • सम्यक् ज्ञान के 5 प्रकार बताये गये हैं— 
  • मति अर्थात् इन्द्रियों द्वारा प्राप्त ज्ञान, 
  • श्रुति अर्थात् सुनकर प्राप्त किया गया ज्ञान, 
  • अवधि अर्थात् कहीं रखी हुयी। किसी भी वस्तु का दिव्य अथवा अलौकिक ज्ञान, 
  • मनःपर्याय अर्थात् अन्य व्यक्तियों के मन की बातें जान लेने का ज्ञान तथा 
  • कैवल्य अर्थात् पूर्ण ज्ञान जो केवल तीर्थंकरों को प्राप्त है।

3. सम्यक् चरित्र - 

  • जो कुछ भी जाना जा चुका है और सही माना जा चुका है उसे कार्यरूप में परिणत करना ही सम्यक् चरित्र है। 
  • इसके अन्तर्गत भिक्षुओं के लिये 5 महाव्रत तथा गृहस्थों के लिये 5 अणुव्रत बताये गये हैं। साथ ही सच्चरित्रता एवं सदाचरण पर विशेष वल दिया गया है।
  • इन तीनों को जैन धर्म में 'त्रिरत्न' की संज्ञा दी जाती है। 
  • त्रिरत्नों का अनुसरण करने से कर्मों का जीव की ओर बहाव रुक जाता है जिसे 'संवर' कहते हैं। 
  • इसके बाद पहले से जीव में व्याप्त कर्म समाप्त होने लगते हैं। इस अवस्था को 'निर्जरा' कहा गया है। 
  • जब जीव से कर्म का अवशेष बिल्कुल समाप्त हो जाता है तब वह मोक्ष की प्राप्ति कर लेता है। 
  • इस प्रकार कर्म का जीव से संयोग बन्धन है तथा वियोग ही मुक्ति है। 
  • महावीर ने मोक्ष के लिये कठोर तपश्चर्या एवं क्लेश पर भी बल दिया। मोक्ष के पश्चात् जीव आवागमन के चक्र से छुटकारा पा जाता है तथा वह अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त वीर्य तथा अनन्त सुख की प्राप्ति कर लेता है। इन्हें जैन शास्त्रों में 'अनन्त चतुष्ट्य' की संज्ञा प्रदान की गयी है।
  • इस प्रकार महावीर की शिक्षायें पूर्णतया नैतिक थीं जिनका उद्देश्य आत्मा की पूर्णता था।

Tags: History Indian History Philosophy
  • Facebook
  • Twitter
You may like these posts

1 Comments

  1. AnonymousFebruary 28, 2022 at 1:20 PM

    जैन धर्म पर बहुत उपयोगी विषय वस्तु है। बहुत अच्छा

    ReplyDelete
    Replies
      Reply
Add comment
Load more...
Post a Comment
Previous Post Next Post
Responsive Advertisement

Popular Posts

Hindi

हिंदी निबन्ध का उद्भव और विकास

प्रधानमंत्री ने राजस्थान की विभिन्न पंचायतों को किया पुरस्कृत

हड़प्पा किस नदी के किनारे स्थित है

Geography

Comments

Main Tags

  • Aaj Ka Itihas
  • Bal Vikas
  • Computer
  • Earn Money

Categories

  • BSTC (2)
  • Bharat_UNESCO (1)
  • Exam Alert (26)

Tags

  • Biology
  • Haryana SSC
  • RAS Main Exam
  • RSMSSB
  • ras pre

Featured post

सातवाहन वंश का कौन-सा शासक व्यापार और जलयात्रा का प्रेमी था?

DivanshuGS- February 15, 2025

Categories

  • 1st grade (29)
  • 2nd Grade Hindi (6)
  • 2nd Grade SST (31)
  • Bal Vikas (1)
  • Current Affairs (128)
  • JPSC (5)

Online टेस्ट दें और परखें अपना सामान्य ज्ञान

DivanshuGeneralStudyPoint.in

टेस्ट में भाग लेने के लिए क्लिक करें

आगामी परीक्षाओं का सिलेबस पढ़ें

  • 2nd Grade Teacher S St
  • राजस्थान पुलिस कॉन्स्टेबल भर्ती एवं सिलेबस
  • भूगोल के महत्वपूर्ण टॉपिक
  • RAS 2023 सिलेबस
  • संगणक COMPUTER के पदों पर सीधी भर्ती परीक्षा SYLLABUS
  • REET के महत्वपूर्ण टॉपिक और हल प्रश्नपत्र
  • 2nd Grade हिन्दी साहित्य
  • ग्राम विकास अधिकारी सीधी भर्ती 2021
  • विद्युत विभाग: Technical Helper-III सिलेबस
  • राजस्थान कृषि पर्यवेक्षक सीधी भर्ती परीक्षा-2021 का विस्तृत सिलेबस
  • इतिहास
  • अर्थशास्त्र Economy
  • विज्ञान के महत्वपूर्ण टॉपिक एवं वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  • छत्तीसगढ़ राज्य सेवा प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा सिलेबस
DivanshuGeneralStudyPoint.in

About Us

विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए भारत एवं विश्व का सामान्य अध्ययन, विभिन्न राज्यों में होने वाली प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए स्थानीय इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र, करेंट अफेयर्स आदि की उपयोगी विषय वस्तु उपलब्ध करवाना ताकि परीक्षार्थी ias, ras, teacher, ctet, 1st grade अध्यापक, रेलवे, एसएससी आदि के लिए मुफ्त तैयारी कर सके।

Design by - Blogger Templates
  • Home
  • About
  • Contact Us
  • RTL Version

Our website uses cookies to improve your experience. Learn more

Ok

Contact Form