स्मृति ग्रन्थ

मनुस्मृति के प्रसिद्ध भाष्यकार


स्मृतियां 

  • धर्मसूत्र साहित्य से कालान्तर में स्मृति ग्रंथों का विकास होने के कारण इन्हें 'धर्मशास्त्र' की संज्ञा भी दी जाती है। 
  • ईसा पूर्व द्वितीय शताब्दी से लेकर पूर्व मध्य काल तक विभिन्न स्मृति ग्रंथों की रचना की गयी। कुछ प्रमुख स्मृति ग्रंथों के नाम निम्नवत् हैं - मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति, विष्णु स्मृति, कात्यायन स्मृति, बृहस्पति, पाराशर, गौतम, वशिष्ठ देवल स्मृति आदि। 
  • इनमें मनुस्मृति (शुंगकाल - ई. पू. द्वितीय शती में रचित) सर्वाधिक प्राचीन तथा प्रामाणिक माना जाता है। 
  • शेष स्मृतियां गुप्तकालीन (पांचवी शताब्दी ई.) हैं। 
  • मनुष्य के पूरे जीवन से सम्बन्धित अनेक किया-कलापों के बारे में असंख्य विधि-निषेधों की जानकारी इन स्मृतियों में मिलती हैं।
  • विष्णु स्मृति के अतिरिक्त शेष स्मृतियाँ श्लोकों में लिखी गयी हैं और इनकी भाषा लौकिक संस्कृत है। 
  • नारद स्मृति से गुप्त वंश के संदर्भ में जानकारी मिलती है।
  • मनुस्मृति के प्रसिद्ध भाष्यकार मेघातिथि, गोविन्दराज भारूचि तथा कुल्लूक भट्ट और याज्ञवल्क्य स्मृति के टीकाकार विश्वरूप, अपरार्क, विज्ञानेश्वर (मिताक्षरा के रचियता) इत्यादि हैं।
  • स्मृतियों में विभिन्न वर्णों, राजाओं और पदाधिकारियों के कर्तव्यों का विधान, चोरी, आक्रमण, हत्या, व्यभिचार आदि हेतु दंडविधान तथा सम्पत्ति अर्जन, विक्रय और उत्तराधिकार के नियम भी दिए गये हैं। 


मनुस्मृति के प्रमुख टीकाकार एवं उनके द्वारा लिखित ग्रंथ:

  1. मेधातिथिमनुस्मृति भाष्य
  2. गोविन्दराज — मन्वाशयानसारिणी टीका
  3. कुल्लुक भट्ट — मन्वर्थ मुक्तावली
  4. नारायण — मन्वर्थ विवृत्ति टीका
  5. राघवानन्द — मन्वर्थ चंद्रिका टीका


          याज्ञवल्क्य स्मृति की टीका

          1. विश्वरूप — याज्ञवल्क्य भाष्य
          2. विज्ञानेश्वर — मिताक्षरा
          3. अपरार्क — अपरार्क याज्ञ धर्मशास्त्र

          • बंगाल के वे धर्मशास्त्रकार, जिन्हें 'त्रिदेव' कहा गया है — जिमूतवाहन, शलपाणि, रघुनन्दन
          • दायभाग— जिमूतवाहन द्वारा विरचित प्रसिद्ध ग्रंथ है जिसमें सांपत्यिक अधिकारों का विपद विवेचन हुआ है। 


          मुख्य निबन्धकार एवं रचनाएं 

          1. देवण्णभट्ट — स्मृति चन्द्रिका
          2. श्री दत्त उपाध्याय — आचारादर्श
          3. माध्वाचार्य — पाराशर माधवीय
          4. जीमूतवाहन — दाय भाग
          5. रघुनन्दन — स्मृति तत्व


          महाकाव्य

          • महाकाव्यों का रचनाकाल चौथी शती ई.पू. से चौथी ईस्वी के मध्य माना गया है।

          रामायण 

          • रामायण वाल्मीकि कृत महाकाव्य रामायण (संस्कृत भाषा) में 6000 श्लोक थे, जो कालान्तर 12000 हुए और फिर 24000 हो गये इसे 'चतुर्विंशति साहस्री संहिता' भी कहा जाता है।
          • इसकी रचना संभवत: ई.पू. पांचवी शती में हुई।
          • यह महाकाव्य सात काण्डों में विभक्त हैं— 
          • बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, युद्धकाण्ड (लंकाकाण्ड) तथा उत्तरकाण्ड।
          • बालकांड तथा उत्तरकाण्ड के अधिकांश भागों को प्रक्षिप्त माना जाता है।
          • रामायण द्वारा उस समय की राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक स्थिति का ज्ञान होता है।
          • रामकथा पर आधारित ग्रंथों का अनुवाद सर्वप्रथम भारत से बाहर चीन में किया गया।
          • भुशण्डि रामायण को आदिरामायण कहा जाता है।


          महाभारत

          • महर्षि व्यास द्वारा रचित महाभारत महाकाव्य रामायण से वृहद् है। 
          • महाभारत संभवत: 10वीं सदी ई.पू. से चौथी सदी ईस्वी तक की स्थिति का आभास देता है।
          • इसमें मूलत: 8000 श्लोक थे और इसका नाम 'जय संहिता' (विजय संबंधी ग्रंथ) था।
          • बादम में श्लोकों की संख्या 24000 होने के पश्चात् यह वैदिक जन भरत के वंशजों की कथा होने के कारण 'भारत' कहलाया।
          • कालांतर में इसमें एक लाख श्लोक हो गये और यह 'शतसाहस्री संहिता'  या 'महाभारत' कहलाने लगा।
          • इसमें कथोपकथाएं, वर्णन और उपदेश शामिल है।
          • इसमें मूलकथा कौरवों और पांडवों के युद्ध की है जो उत्तर वैदिक काल की हो सकती है।
          • वर्णनांश का संबंध वेदोत्तर काल से तथा उपदेशात्मक अंश का संबंध मौर्योत्तर और गुप्तकाल से हो सकता है। 
          • महाभारत में कुल 18 पर्व (अध्याय) है। जिनके नाम है—
          • आदि पर्व, सभा पर्व, वन पर्व, विराट पर्व, उद्योग पर्व, भीष्म पर्व, द्रोण पर्व, कर्ण पर्व, श्ल्प पर्व, सौप्तिक, स्त्री, शांति पर्व, अनुशासन, अश्वमेघ, आश्रमवासी, मौसल, महाप्रस्थानिक और स्वर्गारोहण पर्व आदि।
          • हरिवंश महाभारत का परिशिष्ट (खिल पर्व) है, जिसमें कृष्ण वंश की कथा वर्णित है।
          • मनुस्मृति को मानव धर्मशास्त्र भी कहा जाता है। इसमें 12 अध्याय व 2674 श्लोक हैं।
          • इसे सही अर्थों में भारत की प्रथम विधि संहिता माना गया है।


          पुराणों के लक्षण


          सर्ग- सृष्टि का निर्माण

          प्रतिसर्ग — प्रलय के बाद पुनर्सृष्टि

          वंश — देवताओं व ​ऋषियों के वंश

          मनवंतर — 4 महायुग जिसमें कृत (सत), त्रेता, द्वापर और कलियुग

          वंशानुचरित — कलयुग के ऐतिहासिक राजाओं का वर्णन

          कलयुग का प्रारंभ परीक्षित नामक शासक से माना गया है। जिसका प्राचीनतम उल्लेख अथर्ववेद में हुआ है। 


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