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सल्तनत काल के इतिहास को जानने के प्रमुख फारसी स्रोतों के बारे विस्तृत विवरण लिखें?

byDivanshuGS -May 16, 2021
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सल्तनत काल के इतिहास को जानने के प्रमुख स्रोत



अथवा

दिल्ली सल्तनत कालीन ऐतिहासिक स्रोतों की विवेचना कीजिए? 

 

उत्तर-

 

  • दिल्ली सल्तनत काल के इतिहास को जानने के लिए तत्कालीन इतिहासकारों द्वारा लिखे गए फारसी ग्रंथों का काफी महत्व है। इन स्रोतों में समकालीन मुस्लिम इतिहासकारों के फारसी ग्रंथ एवं सुल्तानों द्वारा रचित आत्मकथाएं प्रमुख है। सल्तनतकालीन ऐतिहासिक ग्रंथों से राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक स्थिति के बारे में पर्याप्त जानकारी मिलती है। ये ग्रंथ अरबी तथा फारसी भाषा में लिखे गये थे।

 

सल्तनतकालीन इतिहास को जानने के प्रमुख ऐतिहासिक ग्रन्थ निम्नलिखित हैं -

 

चचनामा

 

  • यह मूल रूप से अरबी भाषा में लिखा गया है। इसमें मुहम्मद-बिन-कासिम से पहले तथा बाद के सिंध के इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है। इसमें अरबों की सिंध विजय के बार में जानकारी मिलती है। फारसी भाषा में इसका अनुवाद मुहम्मद अली कूफी द्वारा किया गया था।

 

तारीख—उल—हिंद

  • इस ग्रंथ की रचना अलबरूनी ने फारसी भाषा में की थी। वह अरबी एवं फारसी भाषाओं का विद्वान था। वही भारत में महमूद गजनवी के समय आया था। वह चिकित्साशास्त्र, धर्म, दर्शन तथा गणित में रूचि रखता था। वह हिन्दू धर्म तथा दर्शन का अच्छा ज्ञाता था।
  • अलबरूनी ने अपने सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ 'तारीख-उल-हिन्द' में महमूद गजनवी के भारत आक्रमण तथा उनके प्रभावों का वर्णन किया है। इस ग्रंथ में महमूद के आक्रमणों तथा तत्कालीन सामाजिक स्थिति के बारे में जानकारी मिलती है।
  • सचाऊ ने इस ग्रंथ का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया।

 

ताज—उल—मासिर

 

  • यह ग्रंथ हसन निजामी द्वारा लिखा गया। वह मुहम्मद गौरी के साथ भारत आया था।
  • इस ग्रंथ से 1191 ई. से 1218 ई. तक के इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है। इसमें विभिन्न् स्थानों मेलों व मनोरंजन का भी वर्णन है तथा सल्तनकालीन सामाजिक, राजनैतिक व्यवस्था के बारे में जानकारी मिलती है।
  • यह ग्रंथ मुख्य रूप से कुतुबुद्दीन ऐबक के काल का वर्णन प्रस्तुत करता है। इसका कुछ भाग गोरी तथा इल्तुतमिश के काल की घटनाओं का वर्णन करता है।

 

तबकात—ए—नासिरी

 

  • इस ग्रंथ की रचना मिनहाज—उस—सिराज की थी। इसमें मुहम्मद गोरी के आक्रमणों से लेकर 1260 ई. तक की प्रमुख राजनैतिक घटनाओं का वर्णन है। लेखक का वर्णन पक्षपातपूर्ण रहा है।
  • उसने गोरी व इल्तुमिश के वंशों का निष्पक्ष वर्णन नहीं किया है तथा बलबन की आंख मूंदकर प्रशंसा की गयी है। 
  • इसके बाद भी यह ऐतिहासिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण ग्रंथ है।
  • इसमें घटनाएं क्रमबद्ध रूप से वर्णित की गयी है तथा इनकी तिथियां सही है। यह गुलाम वंश का इतिहास जानने का महत्वपूर्ण साधन है।
  • फरिश्ता ने इसे 'एक अति उच्चकोटि का ग्रंथ' माना है।
  • रेवर्टी ने इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया है।

 

फुतुह—उस—सलातीन

 

  • इस ग्रंथ की रचना ख्वाजा अब्दुला मलिक इसामी द्वारा की गई थी। इसामी ने 10 दिसम्बर, 1349 को इस ग्रंथ को लिखना प्रारंभ कर 14 मई, 1350 ई. को समाप्त कर दी।
  • इसमें महमूद गजनवी के वंश के इतिहास से आरंभ करके तुगलक वंश के इतिहास को लिखा है। उसने अपनी रचना में अलाउद्दीन खिलजी का जो वर्णन दिया है वह अधिकतर विश्वनीय है। उसने अलाउद्दीन खिलजी के दक्षिण अभियान का विस्तृत ब्यौरा प्रस्तुत किया है।

 

अमीर खुसरो के ग्रंथ

 

  • अमीर खुसरो मध्यकालीन भारत का प्रसिद्ध विद्वान था। उसका पूरा नाम अबुल हसन यामिन उद्दीन खुसरो था। वह छह सुल्तानों के दरबार में रहा था। उसने बलबन से लेकर मुहम्मद तुगलक तक का इतिहास लिखा है। उसने कई युद्धों में भाग लिया था।

 

उसके द्वारा रचित प्रमुख ग्रंथ इस प्रकार हैं—

 

किरान—उस—सादेन 

 

  • केरानुस्सादैन का अर्थ— दो ग्रहों का मिलन।
  • अमीर खुसरो ने अक्टूबर, 1289 ई. में इसकी रचना पूर्ण की थी। इसमें बंगाल के गवर्नर बुगरा खां तथा उसके पुत्र दिल्ली के सुल्तान मुइज्जुद्दीन कैकुबाद के मध्य हुई एक ऐतिहासिक भेंट का बड़ा ही मार्मिक एवं हृदयस्पर्शी वर्णन किया है।
  • इससे तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। इससे दिल्ली नगर की स्थिति, मुख्य भवन, दरबार का ऐश्वर्य, मद्यपान गाष्ठियों, संगीत तथा नृत्य के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है तथा कैकुबाद व बुगरा खां के चरित्र पर भी प्रकाश पड़ता है। उसने मंगोलों के स्वभाव तथा प्रमुख विशेषताओं का वर्णन भी किया है जिनके द्वारा वह एक बार बंदी बनाया गया था।

 

मिफता—उल—फुतूह

 

  • 1291 ई. में रचित इस ग्रंथ में खुसरो के 'दीवान—ए—घुरात्तुल कमाल' का एक भाग है। इसमें सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी की आरंभिक सैनिक विजयों सफलताओं का वर्णन है।
  • ऐतिहासिक आधार एवं दृष्टिकोण में लिखी गई इस रचना में मलिक छज्जू के विद्रोह के दमन, झाइन की विजय, रणथम्भौर पर सुल्तान के सैनिक अभियान आदि का विस्तृत उल्लेख है। 


देवल रानी तथा खिज्र खां अथवा आशिका

 

  • इस ग्रंथ की रचना खुसरो ने 1316 ई. में की। इसमें अलाउद्दीन के पुत्र खिज्र खां और गुजरात नरेश कर्ण की पुत्री देवल रानी की प्रेमकथा तथा विवाह का वर्णन किया है।
  • इसमें खिज्र खां की हत्या, अलाउद्दीन की बीमारी एवं मलिक काफूर के अत्याचारों का भी वर्णन है। 

 

नूह सिपेहर

 

  • अमीर खुसरो ने इस कृति की रचना 1318 ई. में की ​थी। यह कविता हे जो नौ भागों में विभक्त है, अत: इसका नाम 'नूह सिपेहर' है। इसमें कुल 4509 छंद है।
  • प्रथम सिपेहर में सुल्तान मुबारकशाह की प्रशंसा की गई है एवं उसका देवगिरि पर आक्रमण का भी वर्णन है।
  • द्वितीय में मुबारकशाह द्वारा निर्मित भवनों का उल्लेख है।
  • तृतीय में खुसरो ने अपनी मातृभूमि भारवर्ष की प्रशंसा की है,​ जिसमें उसने यहां की जलवायु, वनस्पति, फल—फूल, निवासियों की चरित्र एवं भारत के रीति—रिवाजों के सुन्दर वर्णन है।
  • चतुर्थ में बादशाह, मलिकों एवं लश्कर के लिए शिक्षा है।
  • पंचम में, भारत की शीत ऋतु का वर्णन है तथा एक आखेट का भी उल्लेख है।
  • छठे में मुबारक के पुत्र मुहम्मद के जन्म का बखान है।
  • सप्तम सिपेहर में, नौरोज तथा बसंत का उल्लेख है।
  • अष्टम में, चौगान अथवा आधुनिक संदर्भ में पोलो के नाम से खेले जाने वाले खेल का वर्णन है तथा नवम एवं अंतिम में, स्वयं खुसरो ने अपनी कविताओं के विषय में लिखा है।

 

खजाइन उल फुतूह अथवा तारीख—ए—अलाई

 

  • खुसरो ने यह ग्रंथ 1311 ई. में लिखा। तारीख—ए—अलाई एक गद्यात्मक रचना है, जिसे 'खजाइन उल फुतूह' भी कहा जाता है। इस ग्रंथ में खुसरो ने अलाउद्दीन की 16 वर्ष की विजयों एवं आर्थिक सुधारों का वर्णन किया है। विशेषत: मलिक काफूर के दक्षिण अभियान के विवरण है। 
  • इसमें उसने अलाउद्दीन के गुणों पर प्रकाश डाला है, दोषों पर नहीं। उसने अलाउद्दीन के राज्यारोहण का वर्णन किया है, किंतु जलालुद्दीन के वध का कोई उल्लेख नहीं किया है। इसके बाद भी यह महत्वपूर्ण ऐतिहासिक ग्रंथ है तथा तत्कालीन सामाजिक एवं सांस्कृतिक स्थिति की जानकारी का महत्वपूर्ण स्रोत है।

 

तुगलकनामा

 

  • यह ग्रंथ खुसरो का अंतिम ऐतिहासिक ग्रंथ है। इसमें खुसरो खां के शासनकाल एवं पतन का तथा तुगलक वंश की स्थापना का वर्णन है।

 

जियाउद्दीन बरनी के ग्रंथ

 

तारीख—ए—फिरोजशाही

  • इस ग्रंथ में बरनी ने सल्तनतकालीन वंश खिलजी और तुगलक काल का आंखों देखा वर्णन लिखा है। उसने इस ग्रंथ के बारे में लिखा कि ''यह एक ठोस रचना है, जिसमें अनेक गुण सम्मिलित हैं। जो इसे इतिहास समझकर पढ़ेगा, उसे राजाओं और मालिकों का वास्तविक वर्णन मिलेगा।''
  • उसने राजनैतिक घटनाओं के अलावा सामाजिक, आर्थिक एवं न्यायिक सुधारों का भी वर्णन किया है। इसमें कवियों, दार्शनिकों तथा संतों की लम्बी सूची दी गयी है।
  • बरनी ने जलालुद्दीन तथा अलाउद्दीन के पतन के कारणों का भी वर्णन किया है। डॉ. ईश्वरीप्रसाद के अनुसार, ''मध्यकालीन इतिहासकारों में बरनी ही अकेला ऐसा व्यक्ति है, जो सत्य पर जोर देता है और चाटुकारिता तथा मिथ्या वर्णन से घृणा करता है।''
  • इस ग्रंथ में बरनी ने बलबन के सिंहासनारोहण से लेकर फिरोज तुगलक के प्रारंभिक 6 वर्षों के शासनकाल तक का विस्तृत वर्णन किया है। इसमें कुतुबुद्दीन मुबारकशाह के शासनकाल का विवरण भी दिया गया है।

 

फतवा—ए—जहांदारी

 

  • बरनी ने इस ग्रंथ की रचना उच्च वर्ग का मार्गदर्शन करने एवं फिरोज के सामने आदर्श उपस्थित करने के लिए की। इसमें शरीयत के अनुसार शासन संचालन के कानूनी पक्ष का वर्णन किया है। इसमें मुस्लिम शासकों के लिए आदर्श राजनीतिक संहिता का वर्णन है।
  • बरनी ने महमूद गजनवी को आदर्श मुस्लिम शासक माना है तथा मुसलमान सुल्तानों को उसका अनुकरण करने के लिए कहा है।
  • बरनी कट्टर मुसलमान था, अत: उसने काफिरों का विनाश करने वाले को आदर्श मुस्लिम शासक माना है।
  • उसने आदर्श शासन के लिए कुशल शासन प्रबंध भी आवश्यक बताया है। यदि बरनी के आदर्श शासक संबंधी विचारों में से उसकी धर्मान्धता को निकाल दिया जाये, तो शासन प्रबंध में आदर्श सिद्ध हो सकते हैं।

 

तारीख—ए—फिरोजशाही

 

  • इस ग्रंथ की रचना शम्स—ए—सिराज अफीफ ने की थी। वह दीवाने वजारत में कार्यरत था। वह सुल्तान के काफी नजदीक था। जहां बरनी की तारीख—ए—फिरोजशाही समाप्त होती है, वहीं अफीफ की तारीख—ए—फिरोजशाही शुरू होती है।
  • इसमें उसने फिरोज तुगल का 1357 ई. से 1388 ई. तक का इतिहास लिखा है। यह ग्रंथ 90 इकाइयों में बंटा हुआ है। इसमें फिरोज के चरित्र, अभियान, शासन प्रबंध, धार्मिक नीति तथा उसके दरबारियों का विस्तृत वर्णन है। यह ग्रंथ पक्षपातपूर्ण है, क्योंकि उसने फिरोज की अत्यधिक प्रशंसा की है। इसके बावजूद यह हमारी जानकारी का मुख्य स्रोत है। अफीफ के इस ग्रंथ से राजनैतिक घटनाओं के अलावा सामाजिक तथा धार्मिक स्थिति के बारे में भी जानकारी मिलती है। यह कृति बाद के इतिहासकारों के लिए प्रेरक रही है।
  • डॉ. ईश्वरीप्रसाद के अनुसार, ''अफीफ में बरनी जैसी न तो बौद्धिक उपलब्धि है औ र न ही इतिहासकारों की योग्यता, सूझबूझ तथा पैनी दृष्टि ही। अफीफ एक घटना को तिथिक्रम से लिखने वाला सामान्य इतिहासकार है, जिसने प्रशंसात्मक दृष्टि से अपने विचार व्यक्ति किये हैं। वह अत्यंत अतिश्योक्तिपूर्ण शैली में सुल्तान की प्रशंसा करता है। उसमें इतनी अतिश्योक्ति है कि फिरोज के सत्कार्यों के वर्णन को पढ़कर सर हेनरी इलियट ने उसकी तुलना अकबर से कर डाली है।''

 

फुतुहात—ए—फिरोजशाही

 

  • इस ग्रंथ की रचना स्वयं सुल्तान फिरोजशाह तुगलक की थी। इससे उसके शासन प्रबंध तथा धार्मिक नीति की जानकारी मिलती है।

 

किताब—उल—रेहला

 

  • इस ग्रंथ की रचना मोरक्को यात्री इब्नबतूता ने की थी। यह उसका यात्रा वृत्तांत है, जो अरबी भाषा में रचित है। वह भारत में लगभग 14 वर्ष तक रहा था। इस ग्रंथ में उसने मुहम्मद तुगलक के दरबार, उसके नियम, रीति—रिवाजों, परम्पराओं, दास प्रथा एवं स्त्रियों की दशा का सुंदर वर्णन किया है। उसका वर्णन पक्षपात की भावना से मुक्त है।
 

तारीख—ए—मुबारकशाही

 

  • याहिया बिन अहमद सरहिंदी द्वारा रचित यह ग्रंथ सैयद वंश के इतिहास को जानने का एकमात्र समकालीन स्रोत है। उसे सैयद वंश के सुल्तान मुबारकशाह (1421—34 ई.) के संरक्षण प्राप्त था।
  • सर जदुनाथ सरकार याहिया बिन अहमद को शिया मतावलम्बी मानते हैं।
  • लेखक ने यह ग्रंथ 15वीं शताब्दी के प्रारंभ में लिखना आरंभ किया था। उसने मोहम्मद गोरी के राज्यारोहण से लेकर 1434 ई. तक का इतिहास लिखा है।
  • 1400 ई. से 1434 ई. तक का उसका वर्णन प्रामाणिक माना गया है एवं बाद के इतिहासकारों निजामुद्दीन अहमद, बदायूंनी और फरिश्ता ने भी इस काल के लिए उसकी पुस्तक का समुचित प्रयोग किया है।

 

तारीख—ए—दाऊदी

 

  • यह अब्दुल्ला द्वारा रचित माना जाता है जिसमें लोदी और सूर वंश का है। यह पुस्तक जहांगीर के शासन काल में लिखी गई। उपाख्यानों व तिथिक्रम की अस्पष्टता की भरमार के बावजूद भी लोदी इतिहास को इसके बिना जाना नहीं जा सकता। इसकी एक प्रति फना के खुदाबख्श ओरियन्टल पब्लिक लाइब्रेरी में उपलब्ध है।

 

तारीख—ए—सलातीन—ए—अफगान

 

  • इस ग्रंथ की रचना अहमद यादगार ने की। प्रमुखतया यह ग्रंथ दिल्ली के लोदी व सूर शासकों के इतिहास का वर्णन करता है।
  • इसी कारण इसे सुल्तान बहलोल लोदी के समय से आरम्भ किया गया है और हेमू की मृत्यु पर इस ग्रंथ की समाप्ति की गई है।

Tags: 2nd Year History B.A History
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