लोक-कला
प्रिय परीक्षार्थियों,
- राजस्थान में आयोजित होने वाली लगभग सभी परीक्षाओं में लोककला टॉपिक से एक-दो प्रश्न अवश्य आते हैं।
- क्या किसी टॉपिक को याद करने के लिए ट्रिक आवश्यक है। क्या आपकी मैमोरी इतनी कमजोर है कि आपको ट्रिक की जरूरत पड़े। दोस्तों अब परीक्षा का स्टैण्डर्ड बदल गया है। ट्रिक नहीं अब गहराई से परीक्षा की तैयारी की आवश्यकता है।
- अब राजस्थान की विभिन्न परीक्षाओं में प्रश्नों का तरीका बिल्कुल बदल गया है और कई संस्थान व पब्लिकेशन पुराने तर्ज पर ही परीक्षा की तैयारी करवाते हैं। जोकि सफलता की दृष्टि से काफी कमजोर है।
- हमारी सलाह है कि बाजार में काफी लेखकों व पब्लिकेशनों की अच्छी पुस्तक उपलब्ध है आपको चाहिए कि किसी एक या दो पुस्तकों से विस्तृत अध्ययन करें। एक-दो बार उन्हीं पुस्तकों को पढ़ने व साथ ही अपने हस्तलिखित नोट्स भी बना लें ताकि रिवीजन के समय आपको ज्यादा समय नहीं लगेगा।
- अगर आप खुद हस्तलिखित नोट्स बनाओगे तो निश्चित ही आप अपने तरीके से ट्रिक निकाल पाओगे जोकि हर तरीके के प्रश्न को हल करने में कारगर सिद्ध होगी।
- बढ़ती प्रतिस्पर्धा में आपके रटने की नहीं, बल्कि खुद को कम पर सही दिशा की जरूरत है यानि जो भी पढ़ों लम्बे समय तक याद रहे।
- और यह सत्य भी है कि लिखकर पढ़ा लम्बे समय तक याद रहता है।
- हम आपके लिए परीक्षा की दृष्टि से विषय-वस्तु के साथ परीक्षाओं में पूछे प्रश्नों के अनुसा टॉपिक का विस्तृत अध्ययन उपलब्ध करवायेंगे।
- अब जो परीक्षा में प्रश्न पूछने का क्रम है वह इस प्रकार है-
प्रश्न -
- निम्न में से कौन सा कथन सही है?
- निम्न तथ्यों को ध्यानपूर्वक पढ़े और सही उत्तर चुने?
- निम्न में से कौनसा कथन असत्य है?
- ऐसे में हम कई बार ऑबजेक्ट को देखकर ही उत्तर दे देते हैं जो कि गलत है।
लोककला
फड़ चित्रण (पेंटिंग)
- उपलब्ध साक्ष्यों के मुताबिक फड़ चित्रण का उदय मेवाड़ राज्य में 700 वर्ष पूर्व माना जाता है।
- कपड़े परर प्रचलित लोक गाथाओं का चित्रण को पुरातन पट्ट चित्रण कहते हैं। इस पुरातन पट्ट चित्रण को राजस्थानी भाषा में फड़ कहते हैं।
- फड़ चित्रण में एक साथ लोक नाट्य, गायन, वादन, मौखिक साहित्य, चित्रकला तथा लोकधर्म का अनूठा मिश्रण देखने को मिलता है।
- फड़ चित्रण के माध्यम से किसी लोक देवताओं व लोक नायकों की कथा जो उनके के जीवन में घटित घटनाओं हुईं, को चित्रित किया जाता है। जिनमें प्रमुख है - पाबूजी, रामदेवजी, देवनारायणजी, भगवान कृष्ण एवं दुर्गा माता।
- फड़ की लम्बाई अधिक और चौड़ाई कम होती है।
- फड़ का वाचन भोपे करते हैं।
- फड़ ठण्डी करना - जब फड़ फट जाती है या जीर्णशीर्ण हो जाती है तो उसे पुष्कर झील में विसर्जित कर देने की क्रिया है।
- भीलवाड़ा जिले का शाहपुरा फड़ चित्रण के लिए विश्व प्रसिद्ध है।
- श्रीलाल जोशी ने इस कला को राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याती दिलवाई है।
- श्री दुर्गालाल को 1967 में व शांतिलाल को 1993 में राष्ट्रपति पदक से सम्मानित किया गया था।
पाबूजी की फड़
- ‘प्लेग रक्षक व ऊंटों के रक्षक देवता’ पाबूजी की फड़ रावण हत्था वाद्ययंत्र के साथ भोपा वाचन करता है। ये नायक या आयड़ी जाति के भोपा-भोपिन होते हैं।
- फड़ का वाचन रात को होता है।
- यह सर्वाधिक लोकप्रिय फड़ है।
- इसमें मुंह के आगे भाला व पाबू जी की घोड़ी केसर कालमी को काले रंग से चित्रित किया जाता है।
प्रश्न - ‘पाबूजी की फड़’ चित्र का सम्बन्ध किससे है?
अ. केरल ब. राजस्थान
स. गुजरात द. बिहार
उत्तर - ब
देवनारायणजी की फड़
- गुर्जर जाति के भोपों द्वारा जंतर वाद्ययंत्र पर इस फड़ का वाचन किया जाता है। यह वाचन लोगों में मनौती पूर्ण होने पर करवाया जाता है।
- यह सबसे लम्बी गाथा वाली तथा सबसे अधिक चित्रांकन वाली सबसे पुरानी फड़ है।
- देवनारायणजी के फड़ सबसे लम्बी फड़ है।
- जिस पर इनका जीवनवृत्त लोकशैली के चित्रों में वर्ण व्यंजना एवं विन्यास के साथ चित्रित किया जाता है।
- देवनारायणजी की फड़ में चित्रांकन में ‘सर्प’ का चित्र होता है तथा इनकी घोड़ी ‘लीलागर’ को हरे रंग से चित्रित किया जाता है।
- वाचन रात को होता है।
- देवनारायणजी की फड़ पर भारत सरकार ने 1992 में डाक टिकट जारी किया है।
रामदेवजी की फड़
- इसे चौथमल जोशी द्वारा बनाया गया।
- इसका वाचन कामड़ जाति के भोपे करते हैं।
- इसे रावणहत्था वाद्य यंत्र के साथ गया जाता है।
भैंसासुर की फड़
- इस फड़ का वाचन नहीं किया जाता है। इसे बावरी या बागरी जाति के लोग रखते हैं।
अमिताभ की फड़
- भारतीय सिनेमा के सुपरस्टार अमिताभ बच्चन की फड़ को मारवाड़ के भोपा रामलाल एवं भोपी पतासी ने एक डॉक्यूमेंट्री में लोकदेवता के रूप में प्रदर्शित किया है।
- फड़ चित्र लोक गाथाओं का चित्रण है। जिसे भोपा एवं भोपी द्वारा वाद्ययंत्र द्वारा कहानी को गाकर बताया जाता है।
- शांति लाल जोशी को शाहपुरा शैली की फड़ चित्रकारी के लिए कई सम्मान मिल चुके हैं। वर्ष 1991 में राष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्मा के हाथों पुरस्कृत हो चुके हैं। उन्हें इसी साल कलाश्री की उपाधि से सम्मानित किया गया।
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