Type Here to Get Search Results !

गोविन्दगिरि का भगत आन्दोलन

गोविन्दगिरि का भगत आन्दोलन

गोविन्दगिरि का भगत आन्दोलन

  • जन्म: 1858 ई. में डूंगरपुर जिले के बांसिया आहड़ में 
  • गुरु: साधु राजगिरि
  • गोविन्दगिरि ने 1883 ई. में ‘सम्पसभा’ की स्थापना की।
  • उन्होंने मेवाड़, डूंगरपुर, गुजरात, मालवा आदि क्षेत्रों के भील एवं गरासियो का संगठित किया।
  • सम्पसभा का अर्थ आपसी एकता, भाईचारा और प्रेमभाव रखने वाला संगठन था।

‘सम्पसभा’ के प्रमुख नियम:-

  1. मांस खाने की मनाही
  2. शराब पीने का निषेध
  3. चोरी एवं डकैती करने का निषेध
  4. स्वदेशी का प्रयोग तथा अन्याय का प्रतिकार आदि सम्मिलित थे।
  • आपसी झगड़ों को पंचायत में सुलझाने लगे, बच्चे को शिक्षा दिलाने लगे।
  • उन्होंने लाग-बाग न देने, बेगार न करने तथा व्यर्थ के कर न देने की शपथ ली। 
  • 1881 ई. में जब दयानंद सरस्वती उदयपुर गये तो गुरु गोविन्द उनसे मिले तथा उनसे प्रेरणा पाकर गुरु ने आदिवासी सुधार एवं स्वदेशी आंदोलन शुरू किया। 
  • कुरीतियों को दूर करने के लिए भगत आंदोलन एवं स्वदेशी आन्दोलन चलाया।
  • 1903 ई. में गुजरात स्थित मानगढ़ की पहाड़ी पर आदिवासियों का पहला सम्मेलन ‘सम्पसभा’ के अधिवेशन के रूप में आयोजित किया गया।
  • उन्होंने डूंगरपुर के बेडसा आहड़ में धूनी स्थापित की तथा आस-पास के क्षेत्रों के भीलों को आध्यात्मिक शिक्षा देना शुरू कर दिया।
  • बेडसा गोविन्दगिरि की गतिविधियों का केन्द्र बन गया।

मानगढ़ का विराट सम्मेलन

  • 10 नवम्बर, 1913 को गोविन्दगिरि के नेतृत्व में मानगढ़ पहाड़ी पर सम्पसभा का आयोजन हुआ तो मेवाड़ भील कोर, वेलेजली राइफल्स व 7वीं राजपूत रेजीमेंट के सैनिकों ने मानगढ़ पहाड़ी को घेर कर गोलियां बरसाई जिसमें 1500 स्त्री-पुरुष घटना स्थल पर शहीद हो गए।
  • इस घटना को ‘भारत का दूसरा जलियावाला बाग हत्याकांड’ की संज्ञा दी गईं।
  • गिरि एवं उनकी पत्नी को बंदी बनाया गया, जिन्हें मृत्युदण्ड की सजा सुनाई, लेकिन भील प्रतिक्रिया के डर से 20 वर्ष का आजीवन कारावास की सजा सुनाई तथा दस वर्ष पश्चात् इन्हें रिहा कर दिया।
  • इस दम्पत्ति ने अपने जीवन का बाकी समय गुजरात के ‘कम्बोई’ नामक स्थान पर बिताया।

मोतीलाल तेजावत का एकी/भोमट/मातृकुण्डिया आन्दोलन

  • जन्म कोल्यारी (उदयपुर) में 
  • जैन (ओसवाल) परिवार में हुआ।
  • तेजावत ने अत्यधिक करों, बेगार, शोषण एवं सामन्ती जुल्मों के विरुद्ध 1921 ई. में मातृकुण्डिया (चित्तौड़गढ़) में आदिवासियों के लिए ‘एकी आन्दोलन’ चलाया। 
  • इस आन्दोलन के साथ-साथ 1921 तक झाड़ोल, कोलियारी, मादरी एवं मगरा तथा भौमट के भीलों ने एकी कर अंग्रेजों, मेवाड़ राज्य व जागीरदारों की सत्ता को खुली अवहेलप की।
  • एकी आंदोलन का उद्देश्य राज्यों व जागीरदारों द्वारा किए जाने वाले भीलों के सभी प्रकार के शोषण के विरुद्ध संयुक्त रूप से विरोध करना था।
  • जुलाई 1921 में तेजावत ने भीलों का कर बंदी सहित असहयोग आंदोलन आरंभ कर दिया था। 
  • इनके नेतृत्व में नीमड़ा में 1921 ई. में एक विशाल आदिवासी सम्मेलन हुआ जिसमें सेना ने गोलीबारी से 1200 भील शहीद व हजारों घायल हो गए।


Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Below Ad