भारत की पर्वतीय रेल



  • भारत की पर्वतीय रेलवे के तीन रेलमार्ग को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल किया गया है। 
  • दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे, नीलगिरि पर्वतीय रेलवे और कालका-शिमला रेलवे को क्रमशः 1999, 2005 एवं 2008 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल का दर्जा प्रदान किया गया था।
  • भारत की पर्वतीय रेल पर्यटन के लिए काफी उपयोगी है देशी व विदेशी पर्यटकों को अपनी सुन्दरता से मनमोह कर बुलाती है। 
  • भारत की पर्वतीय रेलवे को विकसित करने का क्रम ब्रिटिश काल में ही किया जा चुका था। यह रेलवे तंत्र दुर्गम पहाड़ियों में स्थापित करने में आने वाली समस्या के लिए साहसिक और सरल इंजीनियरिंग समाधान का एक प्रतीक हैं।


दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे



  • इसे ‘टॉय ट्रेन’ के नाम से भी जाना जाता है।
  • दार्जिलिंग को हिल स्टेशनों की रानी और भारत के प्रमुख चाय उगाने वाले क्षेत्रों में से एक माना जाता है।
  • यहां पर दार्जिलिंग हिमालयी रेलवे, भारत में पर्वतीय क्षेत्र में पहली यात्री रेल सेवा का रोमांचक उदाहरण है, जोकि नैरो गेज पर चलती है।
  • सन् 1878 ई. में पूर्वी बंगाल रेलवे ने सिलीगुडी से स्टीम रेलवे के लिए एक विस्तृत प्रस्ताव प्रस्तुत किया, जो पहले से ही कलकत्ता से दार्जिलिंग तक जुड़ा हुआ था। इसे सरकारी अनुमोदन प्राप्त हुआ।
  • इस ट्रेन की शुरूआत 1881 में दार्जिलिंग स्टीम ट्रामवे कम्पनी द्वारा की गई थी तथा इस कंपनी का नाम बदलकर दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे कर दिया गया।
  • भारत सरकार द्वारा इस कंपनी को 20 अक्टूबर, 1948 को अधिग्रहित कर लिया गया था।
  • न्यू जलपाईगुड़ी से दार्जिलिंग तक (पश्चिम बंगाल) 87.48 किलोमीटर की दूरी तय की।
  • घूम स्टेशन इस रेलवे का सबसे ऊंचा स्टेशन है जिसकी ऊंचाई 7,407 फीट है। 
  • यह भारत का सबसे ऊंचा रेलवे स्टेशन है।
  • यह भारत की पहली पर्वतीय रेलवे है जिसे यूनेस्को द्वारा 1999 में विश्व विरासत स्थल की सूची में शामिल किया था।


नीलगिरि पर्वत रेलवे

  • दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य में ‘ब्लू माउंटेन्स’ के नाम से प्रसिद्ध नीलिगिरी पर्वतों में स्थित मेट्टुपालयम से ऊटी के बीच 45.88 किमी लंबी मीटर-गेज सिंगल-ट्रैक रेलवे मार्ग है।
  • इसकी शुरूआत ब्रिटिश शासन काल 1908 में की गई थी। 
  • शुरूआत में इसका संचालन मद्रास रेलवे द्वारा किया जाता था।
  • यह रेल नवगठित सलेम मण्डल के अधिकार क्षेत्र में आता है। 
  • यह भारत का एकमात्र ‘रैक रेलवे’ है। इस रेलमार्ग पर अल्टरनेट बिटिंग सिस्टम , जिसे आमतौर पर ‘रैक एंड पिनियन’ के रूप में जाना जाता है, के साथ भाप इंजनों का उपयोग किया जाता है।
  • इस रेलमार्ग पर ऊपर की ओर यात्रा करने के दौरान 290 मिनट यानि लगगभ 5 घंटे का समय लगता है जबकि ढलान पर यात्रा करने के दौरान 215 मिनट का समय लगता है।
  • जुलाई 2005 ई. में यूनेस्को ने नीलगिरी पर्वतीय रेल को विश्व धरोहर की सूची में शामिल किया गया है।

कालका शिमला रेलवे

  • कालका-शिमला रेलवे हिमाचल प्रदेश (उत्तर-पश्चिमी भारत) के हिमालयी तलहटी में स्थित है। 
  • ब्रिटिश शासन कालीन ग्रीष्म राजधानी शिमला (1864 ई. में) को जोड़ने के लिए 1898 में शुरू किया गया था। 
  • कालका-शिमला रेलवे का निर्माण कार्य दिल्ली-अंबाला-कालका रेलवे कंपनी द्वारा 2 फीट (610 मिमी) की छोटी लाइन वाली पटरियों के साथ 1898 में शुरू किया गया था। यह लाइन 7234 फीट (2,205 मीटर) की ऊंचाई पर स्थित है।
  • 96.6 किमी लंबी, सिंगल ट्रैक रेलवे द्वारा सुरम्य हिमालय के दर्शन कराती हुई जाती है, क्योंकि यह सुरंगों और मल्टी-आर्क गैलेरी पुल से गुजरती है।
  • इस रेलमार्ग को 9 नवंबर, 1903 को यातायात के लिए खोल दिया गया था।
  • भारतीय युद्ध विभाग द्वारा निर्धारित मानंदड़ो का पालन करते हुए सन् 1905 में इस लाइन को 2 फीट 6 इंच (नैरो गेज) का कर दिया गया। 
  • इस सेक्शन पर 103 सुरंग होने के कारण शिमला में आखिरी सुरंग को 103 नंबर सुरंग नाम दिया गया है। इसी कारण इस सुरंग के ठीक ऊपर बने बस स्टॉप को भी अंग्रेजों के जमाने से ही “103 स्टेशन” के नाम से जाना जाता है।
  • भारत में इस परियोजना का उद्धाटन भारत के वायसराय ‘लॉर्ड कर्जन’ द्वारा किया गया था।
  • 24 जुलाई, 2008 में यूनेस्को द्वारा इसे विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया गया।


Post a Comment

0 Comments