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रूसो 1712-1778


  • रूसो एक रोमांटिक व्यक्ति था, उसने स्वतंत्रता और समानता का विचार प्रस्तुत किया। उसने सामान्य इच्छा और जनता में निहित प्रभुसत्ता का विचार प्रस्तुत किया।
  • उसने व्यक्ति के नैसर्गिक गुणों के सहज विकास को महत्त्व दिया, अपनी पुस्तक ‘एमिले’ में इसके लिए शिक्षा को अनिवार्य बताया।
  • ‘सोशल कान्ट्रैक्ट’ में उसने राज्य की उत्पत्ति की एक परिकल्पना प्रस्तुत की। उसके अनुसार मनुष्य पहले प्राकृतिक अवस्था में रहता था और वह आदिम परन्तु निर्मल था। एक जंगली किन्तु सरल समाज में सभी लोगों ने सबके हित में अपने-अपने अधिकारों का परित्याग कर एक समवेत शक्ति गठित करने के लिए समझौता किया और राज्य का जन्म हुआ। इस राज्य में सामान्य इच्छा ही प्रभु इच्छा थी। उसने घोषित किया कि जनता की इच्छा ही किसी सरकार को वैध बनाती है।
  • उसने प्राकृतिक स्थिति की ओर लौटने की बात कहकर समाज की कृत्रिमता पर प्रहार किया। ‘मनुष्य जन्म से स्वतंत्र है लेकिन प्रत्येक स्थान पर बंधनों में बंधा रहता है।’, कहकर उसने एक साथ मनुष्य में स्वतंत्रता की लालसा जगाई और बंधनों से मुक्त होने की प्रेरणा दी।
  • रूसो की आलोचना करते हुए कहा जा सकता है कि उसने मनुष्य की प्रगति को नकारा और मनुष्य को पशु बना देना चाहा। वह कल्पना लोक में रहता था और उसे यथार्थ की कोई पहचान नहीं थी। जो भी हो उसने एक रूढ़िवादी समाज को उद्वेलित तो कर ही दिया था। यद्यपि उसने क्रांति के विचार और तत्कालीन व्यवस्था का विकल्प नहीं प्रस्तुत किया तथापि तत्कालीन संस्थाओं को नकार कर उसने परिवर्तन की इच्छा और संभावना स्पष्ट की।
  • उसकी आस्था का केन्द्र मानव था, इसलिए स्वतंत्रता, समानता और भ्रातृत्व जैसे सिद्धांत उसकी लेखनी से प्रकट हो सके।
  • रोब्सपीयर तो उसे मसीहा और सोशल कान्ट्रैक्ट को पवित्र ग्रंथ मानता था।
  • नेपोलियन कहा करता था - ‘रूसो बहुत बुरा था, उसी ने क्रांति को आसन्न किया।’

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