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राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की शक्तियां व कार्य

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की शक्तियां व कार्य

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग

  • दिसम्बर, 1948 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा को स्वीकार करने का भारतीय संविधान के निर्माण पर भारी प्रभाव पड़ा। भारतीय संविधान के निर्माताओं ने समानता, स्वतंत्रता, धर्म, शिक्षा इत्यादि से संबंधित इस प्रकार के कई अधिकारों को संविधान के भाग-3 में शामिल किया और सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों को इन अधिकारों के संरक्षण और प्रवर्तन के लिए परमादेश जारी करने का अधिकार दिय, जिन्हें बुनियादी अधिकार कहते हैं। इस संबंध में सबसे महत्त्वपूर्ण विकास 1993 ई. में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का सृजन था।
  • मानवाधिकारों के बेहतर संरक्षण के लिए भारतीय संसद द्वारा 1993 में मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम पारित किया गया। 
  • 10 जनवरी, 1994 को इस अधिनियम को भारत के राष्ट्रपति की स्वीकृति मिली।
  • अधिनियम की धारा 2(डी) के अनुसार, ‘मानवाधिकार का मतलब व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता और गरिमा से संबंधित अधिकार है जो संविधान द्वारा प्रत्याभूत है अथवा अंतर्राष्ट्रीय प्रतिज्ञा पत्र द्वारा मूर्तरूप दिये गये हैं और भारत में न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय हैं।’

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का संविधान

  • अधिनियम के अध्याय 2 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का संविधान दिया गया है। अधिनियम के खंड में यह प्रावधान है कि केन्द्र सरकार राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन करेगी। 
  • आयोग में कुल आठ सदस्य होंगे। इसके सदस्य इस प्रकार होंगेः-


  1. सर्वोच्च न्यायालय का एक सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश (राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष)
  2. सर्वोच्च न्यायालय का एक सेवारत या सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश
  3. उच्च न्यायालय का एक सेवारत या सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश
  4. मानवाधिकारों के बारे में जानकारी या व्यावहारिक अनुभव रखने वाले दो प्रमुख व्यक्ति और अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जातियों व जनजातियों तथा महिलाओं के लिए गठित राष्ट्रीय आयोगों के सदस्य।
  • आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति एक छह सदस्यीय समिति की संस्तुति पर करते हैं। 

इस छह सदस्यीय समिति में निम्न व्यक्ति शामिल होते हैं:-

  1. प्रधानमंत्री - अध्यक्ष
  2. लोकसभा के अध्यक्ष - सदस्य
  3. भारत सरकार के गृहमंत्री - सदस्य
  4. राज्यसभा में विपक्ष के नेता - सदस्य 
  5. लोकसभा में विपक्ष के नेता - सदस्य
  6. राज्यसभा के उपाध्यक्ष - सदस्य


  • अध्यक्ष और सदस्य 5 साल तक अपने पद पर रहते हैं और उनकी पुनर्नियुक्ति हो सकती है।
  • कोई भी व्यक्ति 70 वर्ष अवस्था तक आयोग का सदस्य रह सकता है। केन्द्र सरकार एक महासचिव की नियुक्ति करेगी जो आयोग का मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में कार्य करेगा। 
  • वह खुद को प्राप्त शक्तियों के अनुरूप अपने कार्यों का अनुपालन करेगा।
  • आयोग का मुख्यालय नई दिल्ली में है। हालांकि आयोग केन्द्र सरकार की पूर्व स्वीकृति लेकर भारत के अन्य स्थानों पर भी अपने कार्यालय खोल सकता है।
  • अधिनियम में यह भी प्रावधान है कि यदि भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित जांच समिति द्वारा यह प्रमाणित हो जाता है कि किसी सदस्य ने दुर्व्यवहार किया है अथवा वह पद के लिए अक्षम है अथवा दोनों आधारों पर भारत का राष्ट्रपति अध्यक्ष या किसी भी सदस्य को आयोग से हटा सकता है।


राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की शक्तियां व कार्य

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की शक्तियां व कार्य इस प्रकार हैं - आयोग का यह कर्त्तव्य होगा कि:


  1. किसी पीड़ित व्यक्ति या उसकी तरफ से किसी भी व्यक्ति द्वारा मानवाधिकार की शिकायत से संबंधित याचिका की जांच करे।
  2. किसी भी न्यायालय के समक्ष लंबित मानवाधिकारों के उल्लंघन से संबंधित किसी मामले की कार्यवाही में उस न्यायालय की अनुमति से हस्तक्षेप करे।
  3. राज्य सरकार के नियंत्रण वाली किसी जेल या किसी भी अन्य संस्था का दौरा करे, जहां लोगों को कैद में रखा जाता है और संवासियों के रहन-सहन की जांच कर अपनी संस्तुतियां दे।
  4. मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए किसी भी प्रवर्तित कानून या संविधान में प्रदत्त सुरक्षा उपायों की समीक्षा करे और आवश्यक उपचारात्मक उपाया सुझाये।


  • आयोग मानवाधिकारों का उल्लंघन रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाने हेतु केन्द्र सरकार अथवा राज्य सरकार को सुझाव देगा। यह भारत के राष्ट्रपति को अपनी वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा, जो इसे संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखने की व्यवस्था करेंगे।
  • मानवाधिकारों के उल्लंघन से संबंधित अपराधों की तीव्र जांच के लिए राज्य सरकारें राज्य स्तर पर मानवाधिकारों आयोगों की स्थापना करेगी।
  • इस प्रकार हम कह सकते हैं कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की स्थापना भारत सरकार का एक साहसी कदम है।
  • सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्र आयोग के पहले अध्यक्ष नियुक्त किये गये थे। उन्होंने आयोग को प्रभावी व सक्रिय बनाने के लिए कई आवश्यक कदम उठाये।

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