DivanshuGeneralStudyPoint.in
  • Home
  • Hindi
  • RPSC
  • _Economy
  • _Constitution
  • _History
  • __Indian History
  • __Right Sidebar
  • _Geography
  • __Indian Geography
  • __Raj Geo
  • Mega Menu
  • Jobs
  • Youtube
  • TET
HomeHistory

गुप्त काल में आर्थिक उन्नति

byDivanshuGS -August 26, 2018
0

आर्थिक जीवन:-

  • गुप्त काल में आर्थिक जीवन समृद्ध हुआ। विस्तृत साम्राज्य एवं सुयोग्य प्रशासन के कारण आर्थिक जीवन के सभी पक्षों-कृषि, पशुपालन, उद्योग एवं शिल्प तथा व्यापार-वाणिज्य में अभूतपूर्व उन्नति हुई। 
अ. कृषि - 
  • स्मृतियों, बृहत्संहिता, अमरकोश आदि से गुप्तकालीन कृषि के बारे में जानकारी मिलती है। हल में लोहे के फाल का प्रयोग किया जाता था। बृहत्संहिता में बीजों की गुणवत्ता बढ़ाने एवं धरती की उर्वरा शक्ति में वृद्धि करने के तरीकों का उल्लेख किया गया है। कृषक अधिकांशतः वर्षा पर निर्भर होते थे, लेकिन गुप्त सम्राटों की ओर से प्रजा को सिंचाई की सुविधाएँ प्रदान करने का प्रयास किया गया। 

सुदर्शन झील का पुनरुद्धार करवाया

  • स्कन्दगुप्त के जूनागढ़ अभिलेख ने अनुसार उसने गिरिनार पर्वत पर स्थित सुदर्शन झील का पुनरुद्धार करवाया। यह कार्य उसके सौराष्ट्र के गवर्नर पर्णदत्त के पुत्र चक्रपालित ने करवाया था। 
  • सिंचाई में रहट या घटी यंत्र का प्रयोग होता था। 
  • अमरकोष में उपज की विभिन्न वस्तुओं के नाम मिलते हैं- गेहूँ, धान, ज्वार, ईख, बाजरा, मटर, दाल, तिल, सरसों, अलसी, अदरक, कालीमिर्च आदि। बृहत्संहिता में तीन फसलों का उल्लेख है।
  •  एक फसल श्रावण के महीने में तैयार होती थी, दूसरी बसंत में और तीसरी चैत्र या बैसाख में तैयार होती थी। 
  • ह्वेनसांग के अनुसार पश्चिमोत्तर भारत में ईख व गेहूँ तथा मगध एवं उसके पूर्वी क्षेत्रों में चावल की पैदावार होती थी। 
  • अमरसिंह ने अपने ग्रंथ अमरकोष में 12 प्रकार की भूमि का उल्लेख किया है। इस समय प्रचलन में करीब 5 प्रकार की भूमि का उल्लेख मिलता है- क्षेत्र भूमि, वास्तु भूमि, चारागाह भूमि, सिल व अप्रहत भूमि इत्यादि। 
ब. पशुपालन - 
  • पशुपालन जीविका का एक अन्य प्रमुख साधन था। कामन्दकीय नीतिसार के अनुसार गोपालन वैश्य का पेशा है। 
  • अमरकोश में पालतू पशु के रूप में गाय के अतिरिक्त घोड़े, भैंस, ऊँट, बकरी, भेड़, गधा, कुत्ता, बिल्ली आदि को गिनाया गया है। बैल हल चलाने और सामान ढोने के काम आता था।

स. उद्योग एवं शिल्प -
  • गुप्तकालीन उद्योगों एवं शिल्पों में जहां एक ओर विशेषज्ञता का विकास दिखाई देता है, वहीं दूसरी ओर प्रौद्योगिकी या तकनीकी कौशल में अद्भुत प्रगति दृष्टिगोचर होती है। 
  • इस काल में धातु-शिल्प, वस्त्र-निर्माण, शिल्प साथ ही पाषाण-शिल्प, हाथीदाँत का काम आदि उद्योगों में विशेष प्रगति हुई। आभूषण, हाथीदाँत, धातुकर्म, बर्तन, जहाज उद्योग विकसित हुए। 
  • गुप्तकाल में धातु-शिल्प के क्षेत्र में विशेष उन्नति हुई। इस काल में धातुविज्ञान के क्षेत्र में हुई अद्भुत प्रगति का एक भव्य उदाहरण मैहरोली (दिल्ली) का लौह-स्तम्भ है जो इतनी शताब्दियों बाद भी बिना जंग लगे हुए, अक्षत खड़ा है। 
  • गुप्तकालीन ताम्रशिल्प का एक श्रेष्ठ उदाहरण तांबे की विशालकाय बुद्ध की मूर्ति है जो सुलतानगंज ( जिला भागलपुर, बिहार ) से मिली थी और इस समय इंग्लैण्ड के बर्मिंघम के संग्रहालय में है। 
  • गुप्तकालीन धातुकर्म का सर्वोत्तम रूप इस काल के सिक्कों में देखा जा सकता है। इस काल के ताम्रपत्रों पर लगी हुई मुहरें भी धातुशिल्प की श्रेष्ठ उदाहरण है। 
  • गुप्तकाल की सहस्त्रों स्वर्णमुद्रायें प्राप्त हुई है, जो विशुद्ध भी हैं तथा कलात्मक भी। गुप्तकाल की आर्थिक सम्पन्नता, कलात्मक सौन्दर्यसृष्टि तथा तकनीकी कौशल का वे ज्वंलत उदाहरण है। 
  • गुप्त सम्राटों में सर्वप्रथम चन्द्रगुप्त प्रथम ने सिक्के प्रचलित किये। चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय सोने के अतिरिक्त चांदी एवं तांबे का भी मुद्राओं के लिए प्रयोग किया गया। कुमारगुप्त प्रथम ने सर्वाधिक सिक्कों का प्रचलन किया। इन स्वर्ण मुद्राओं को अभिलेखों में ‘दीनार’ कहा गया है। 
  • फाह्यान ने बताया कि गुप्तकाल में साधारण जनता दैनिक जीवन के विनिमय में वस्तुओं के आदान-प्रदान या फिर कौड़ियों से काम चलाती थी।

स. वस्त्र - 

  • निर्माण भी गुप्तकाल का एक प्रमुख उद्योग था। ‘अमरकोश’ में उसका उल्लेख आता है। गुप्तकाल में धनी व्यक्तियों के लिए बहुत बारीक कपड़ा बनाया जाता था। इसी गं्रथ में रेशम का कपड़ा बुनने की पूरी प्रक्रिया का विवेचन है।
  •  भारत के उत्तर-दक्षिण व्यापार में वस्त्रों का प्रमुख स्थान था तथा विदेशी बाजारों में भी भारतीय वस्त्रों की बहुत मांग थी। रेशमी वस्त्र, मलमल, लिलन, ऊनी व सूती वस्त्रों की विदेशों में अधिक मांग थी। 
  • गुप्तकाल में आभूषण बनाने का शिल्प भी उन्नत अवस्था में था। आभूषण बनाने के लिए स्वर्ण एवं रजत के अलावा विभिन्न प्रकार के रत्नों का भी बहुलता से प्रयोग किया जाता था। 
  • ‘बृहत्संहिता’ में 22 प्रकार के रत्नों का उल्लेख है। साहित्यिक साक्ष्य बताते हैं कि गुप्तकाल में काष्ठ-शिल्प भी विकसित अवस्था में था। इलाहाबाद के निकट भीत नामक स्थल पर गुप्तकालीन हाथीदाँत की बनी दो मुहरें प्राप्त हुई है।

द. श्रेणी संगठन -

  • शिल्पी, उद्यमी तथा व्यापारी संगठित थे और उन्होंने अपने-अपने संघ बना रखे थे। इन संघों को ‘श्रेणी’, ‘निगम’ अथवा ‘गण’ कहा जाता था। ये श्रेणियां व्यावसायिक उद्यम एंव निर्माण के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती थी। 
  • अपने व्यवसायों के संचालन के लिए उनके अपने नियम और कोष थे। वे आधुनिक बैंकों की भाँति काम करते थे। ये ऋण ब्याज पर देते थे और निधियाँ ब्याज पर अपने पास रखते थे। व्यापार व उद्योग श्रेणियों में संगठित थे। श्रेणियों में वस्त्रोद्योग, बैंकिंग आदि का कार्य प्रमुख था। 
  • ‘श्रेणियाँ’ आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न होती थीं और सामाजिक दृष्टि से उपयोगी कार्य भी करती थी, जैसे सभागृहों, यात्रियों के लिए पीने योग्य पानी की सुविधाओं से युक्त विश्रामगृह, जलाशयों, उद्यानों, मन्दिरों आदि का निर्माण। 
  • मन्दसौर के एक कुमारगुप्त-कालीन लेख से ज्ञात होता है कि दशपुर (मन्दसौर) में तन्तुवाहों (जुलाहों) की एक श्रेणी थी जिसने सूर्य-मन्दिर की स्थापना की थी। 
  • श्रेणियाँ अपने आन्तरिक मामलों में पूर्ण स्वतंत्र होती थीं। 
  • श्रेणी के प्रधान को ‘ज्येष्ठक’ कहा जाता था। यह पद आनुवांशिक होता था। 
  • नालन्दा एवं वैशाली से गुप्तकालीन श्रेणियों, सार्ववाहों एवं कुलिकों की मुहरें प्राप्त हुई है। 
  • गुप्तकाल में श्रेणी से बड़ी संस्था होती थी, जिसकी शिल्प श्रेणियाँ सदस्य होती थीं, उसे निगम कहा जाता था अर्थात् व्यापारिक समितियों को निगम कहते थे। 
  • प्रत्येक शिल्पियों की अलग-अलग श्रेणियाँ होती थीं। 
  • ये श्रेणियाँ अपने कानून एवं परम्परा की अवहेलना करने वालों को सजा देने का अधिकार रखती थीं। व्यापारिक कारवाँ का नेतृत्व करने वाला सार्थवाह कहलाता था। निगम का प्रधान ‘श्रेष्ठि’ कहलाता था।

च. गुप्तकाल में व्यापार एवं उद्योग -
आन्तरिक व्यापार - 
  • गुप्तकाल में व्यापार एवं वाणिज्य अपने चरम् उत्कर्ष पर था। आंतरिक व्यापार सड़कों और नदियों के द्वारा किया जाता था। 
  • गुप्तकाल में दीर्घ राजनीतिक स्थिरता एवं शान्ति की स्थिति तथा गुप्तकालीन नरेशों द्वारा प्रचुर मात्रा में प्रचलित स्वर्ण मुद्राओं ने व्यापार के विकास में बहुत सहयोग दिया। आन्तरिक व्यापार की प्रमुख वस्तुओं में दैनिक उपयोग की लगभग सभी वस्तुएँ शामिल थीं जिन्हें नगरों एवं ग्रामों के बाजारों में मुख्यतः बेचा जाता था जबकि विलासितापूर्ण वस्तुओं में दूरस्थ प्रदेशों से लाई गई वस्तुएँ शामिल थीं। 
  • सार्थ भ्रमणशील व्यापारी थे, जिनका नगरीय जीवन में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान था। 
  • नारद एवं बृहस्पति की स्मृतियों में क्रेताओं और विक्रेताओं के समान हितों की रक्षा के लिए अनेक नियम-विनियम मिलते हैं। गुप्तकाल में मार्गों से यात्रा सुरक्षित एवं निरापद थी। 
  • चीनी यात्री फाह्यान ने भारत में अपनी यात्रा के दौरान कहीं असुरक्षा महसूस नहीं की। 
  • उज्जैन, भड़ौच, प्रतिष्ठान, विदिशा, प्रयाग, पाटलिपुत्र, वैशाली, ताम्रलिप्ति, मथुरा, अहिच्छत्र, कौशम्बी आदि महत्त्वपूर्ण व्यापारिक नगर थे। इन सब में उज्जैन सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण व्यापारिक स्थल था क्योंकि देश के हर कोने से मार्ग उज्जैन की ओर आते थे।
  • पेशावर, मथुरा, उज्जैन, पैठान मुख्य व्यापारिक एवं औद्योगिक केन्द्र थे। 
विदेशी व्यापार - 
  • भारतीय बन्दरगाहों का बाहर के अनेक देशों से स्थायी सामुद्रिक संबंध बना हुआ था। ये देश थे- चीन, श्रीलंका, फारस, अरब, इथोपिया, बैजन्टाइन (रोमन) साम्राज्य तथा हिन्द महासागर के द्वीप। 
  • गुप्तकाल में चीन के साथ भारत के विदेशी व्यापार में अत्यधिक वृद्धि हुई। चीन का रेशम जो ‘चीनांशुक’ के नाम से प्रसिद्ध था, भारत के बाजारों में अत्यधिक लोकप्रिय था। 
  • रोमन साम्राज्य के पतन से कमजोर हुआ पश्चिमी विदेशी व्यापार में पुनः वहाँ बैजन्टाइन साम्राज्य की स्थापना के बाद वृद्धि हुई। यहां निर्यात की जाने वाली वस्तुओं में रेशम व मसाले प्रमुख थे। 
  • भृगुकच्छ (भड़ौच) पश्चिमी समुद्रतट पर स्थित एक प्रसिद्ध बन्दरगाह था। 
  • कैम्बे, सोपार व कल्याण बन्दरगाह थे। पूर्वी तट पर स्थित बन्दरगाहों में घंटशाला, कदूरा तथा गंगा के मुहाने पर ताम्रलिप्ति स्थित था। 
  • ताम्रलिप्ति पूर्वी भारत में होने वाले सामुद्रिक व्यापार का यह सबसे बड़ा केन्द्र था। चीन, इण्डोनेशिया तथा श्रीलंका के व्यापारिक जहाज यहाँ आते-जाते थे। 
  • रघुवंश एवं दशकुमारचरित में ताम्रलिप्ति से होने वाले समृद्ध सामुद्रिक व्यापार के उल्लेख है। इस तथ्य को अस्वीकार नहीं किया जा सकता कि गुप्त साम्राज्य एशिया का प्रमुख केन्द्र स्थल था एवं विश्व के सामुद्रिक देशों में वह सर्वप्रमुख सामुद्रिक शक्ति के रूप में प्रसिद्ध था। 
  • भारत में चीन से रेशम, इथोपिया से हांथीदाँत व अरब ईरान तथा बेक्ट्रिया से घोड़ों का आयात होता था। दक्षिण पूर्वी एशिया, चीन व पश्चिम से ताम्रलिप्ति, भड़ौच आदि बन्दरगाहों से व्यापार होता था। 
  • मसाले, मोती, वस्त्र, हाथीदांत, नील का निर्यात एवं धातु, चिनाशंकु, घोड़ो आदि का आयात किया जाता था। 
छ. राजस्व के स्रोत -
  • गुप्तकाल में भू राजस्व राजकीय आय का प्रमुख स्रोत था। साहित्य में निम्न प्रकार के करों का उल्लेख मिलता है - 
  • भाग - राजा का भूमि के उत्पादन से प्राप्त होने वाला 1/6 हिस्सा। 
  • भोग - राजा को हर दिन फल-फूल, सब्जियों के रूप में दिया जाने वाला कर। 
  • उपरिकर एवं उद्रंग - ये एक प्रकार के भूमि कर थे।
  • गुप्तकाल में भूमिकर की अदायगी नकद (हिरण्य) व अन्न (मेय) दोनों रूपों में की जा सकती थी, इस समय भूमि, रत्न, खाने एवं नमक आदि राजस्व के अन्य महत्त्वपूर्ण स्रोत थे। 
  • भू राजस्व कुल उत्पादन का 1/4 से 1/6 भाग तक होता था। 
Tags: History
  • Facebook
  • Twitter
You may like these posts
Post a Comment (0)
Previous Post Next Post
Responsive Advertisement

Popular Posts

Hindi

हिंदी निबन्ध का उद्भव और विकास

प्रधानमंत्री ने राजस्थान की विभिन्न पंचायतों को किया पुरस्कृत

हड़प्पा किस नदी के किनारे स्थित है

Geography

Comments

Main Tags

  • Aaj Ka Itihas
  • Bal Vikas
  • Computer
  • Earn Money

Categories

  • BSTC (2)
  • Bharat_UNESCO (1)
  • Exam Alert (26)

Tags

  • Biology
  • Haryana SSC
  • RAS Main Exam
  • RSMSSB
  • ras pre

Featured post

सातवाहन वंश का कौन-सा शासक व्यापार और जलयात्रा का प्रेमी था?

DivanshuGS- February 15, 2025

Categories

  • 1st grade (29)
  • 2nd Grade Hindi (6)
  • 2nd Grade SST (31)
  • Bal Vikas (1)
  • Current Affairs (128)
  • JPSC (5)

Online टेस्ट दें और परखें अपना सामान्य ज्ञान

DivanshuGeneralStudyPoint.in

टेस्ट में भाग लेने के लिए क्लिक करें

आगामी परीक्षाओं का सिलेबस पढ़ें

  • 2nd Grade Teacher S St
  • राजस्थान पुलिस कॉन्स्टेबल भर्ती एवं सिलेबस
  • भूगोल के महत्वपूर्ण टॉपिक
  • RAS 2023 सिलेबस
  • संगणक COMPUTER के पदों पर सीधी भर्ती परीक्षा SYLLABUS
  • REET के महत्वपूर्ण टॉपिक और हल प्रश्नपत्र
  • 2nd Grade हिन्दी साहित्य
  • ग्राम विकास अधिकारी सीधी भर्ती 2021
  • विद्युत विभाग: Technical Helper-III सिलेबस
  • राजस्थान कृषि पर्यवेक्षक सीधी भर्ती परीक्षा-2021 का विस्तृत सिलेबस
  • इतिहास
  • अर्थशास्त्र Economy
  • विज्ञान के महत्वपूर्ण टॉपिक एवं वस्तुनिष्ठ प्रश्न
  • छत्तीसगढ़ राज्य सेवा प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा सिलेबस
DivanshuGeneralStudyPoint.in

About Us

विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए भारत एवं विश्व का सामान्य अध्ययन, विभिन्न राज्यों में होने वाली प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए स्थानीय इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र, करेंट अफेयर्स आदि की उपयोगी विषय वस्तु उपलब्ध करवाना ताकि परीक्षार्थी ias, ras, teacher, ctet, 1st grade अध्यापक, रेलवे, एसएससी आदि के लिए मुफ्त तैयारी कर सके।

Design by - Blogger Templates
  • Home
  • About
  • Contact Us
  • RTL Version

Our website uses cookies to improve your experience. Learn more

Ok

Contact Form