जॉन लॉक

जॉन लॉक


  • जन्मः 1632 ई. में
  • मृत्युः 1704 ई. में
  • स्थानः सोमरसेटशायर, इंग्लैण्ड
  • लॉक अनुभववाद के पिता माने जाते हैं, क्योंकि सर्वप्रथम इन्होंने बुद्धिवाद की मान्यताओं का निषेध कर अनुभववाद की नई नींव रखी।
  • अनुभववाद के अनुसार हमारा समस्त ज्ञान अनुभवजन्य है।
  • इनके अनुसार समस्त ज्ञान प्रत्ययात्मक है तथा सभी प्रत्यय अनुभव द्वारा प्राप्त होते हैं।
  • लॉक के अनुसार ऐसा प्रत्यय नहीं हैं जो जन्मजात हैं क्योंकि -
  1. सामान्यतः माना जाता है कि जन्मजात प्रत्यय अनिवार्य व सार्वभौमिक होते हैं किन्तु अनुभव विशेषों तक सीमित है इसलिए कोई प्रत्यय जन्मजात नहीं होता है।
  2. जन्मजात प्रत्ययों को विश्लेषण द्वारा प्राप्त किया जाता हैं किन्तु लॉक के अनुसार विश्लेषण एक जटिल प्रक्रिया हैं जो अनुभव वृद्धि के साथ ही व्यक्ति मुश्किल से सीख पाता है।
  3. ईश्वर को जन्मजात प्रत्यय माना जाता है किन्तु लॉक के अनुसार सर्वप्रथम ईश्वरीय प्रत्यय सभी मुनष्यों में नहीं पाया जाता, दूसरा सभी व्यक्तियों में इसका आकार-प्रकार भिन्न होता है।
  4. लॉक के अनुसार इन प्रत्ययों का ज्ञान बालकों, मूर्खों, पागलों में क्यों नहीं पाया जाता है।
  • जन्मजात प्रत्यय के समर्थक स्वीकार करते हैं कि ये प्रत्यय सभी मनुष्यों में पाए जाते हैं, किन्तु व्यक्ति उनसे अनभिज्ञ रहता है।
  • लॉक के अनुसार यह असंभव है कि कोई प्रत्यय मनुष्य में हो और वह उससे अनभिज्ञ हो।
  • एक समाज का आचार-नियम दूसरे समाज को मान्य नहीं।
  • ईश्वर-प्रत्यय जन्मजात होता तो नास्तिक क्यों?
  • इस प्रकार देकार्त, स्पिनोजा तथा लाइबनिट्जकी मान्यता का लॉक खण्डन करते हैं।
  • जन्म के समय हमारा मन (आत्मा) एक कोरे कागज, अंधेरे कमरे, साफ-स्लेट (कोरी पट्टी) के समान रहता हैं जिसमें अनुभव की स्याही के ज्ञान (टेबुलारासा) का अंकन होता है। 
  • ज्ञान की रश्मियां जिन वातायन में भीतर प्रवेश करती हैं उन्हें संवेदन तथा स्वसंवेदन कहते हैं।
  • ज्ञान दो प्रकार का है- बाह्य और आंतरिक
  • बाह्य विषयों से उत्पन्न तथा ज्ञानेन्द्रियों से प्राप्त चेतना को ही लॉक संवदेन ज्ञान कहते हैं।
  • दूसरे प्रकार का ज्ञान स्वसंवेदन है। यह आंतरिक जगत् का ज्ञान है। अतः इसे अंतर्निरीक्षण कहते हैं। 
  • अतः जिस प्रकार संवेदन- ज्ञान का साधन, पंच ज्ञानेन्द्रियां हैं, उसी प्रकार स्वसंवेदन - ज्ञान का साधन मन हैं।
  • अनुभव ही ज्ञान का जनक है, संवेदन तथा स्वसंवेदन ही ज्ञान के प्रवेश द्वार पहले खुलता है तथा स्वसंवेदन बाद में अर्थात् क्रम से संवेदन पहले है और स्वसंवेदन - संवेदन - सापेक्ष है।
  • ज्ञान मन या आत्मा का आगंतुक धर्म हैं।

ज्ञान - प्रक्रिया 
  • संवेदन, स्वसंवेदनों के प्रतिबिम्ब प्रत्यय होते हैं। लॉक के अनुसार ज्ञान प्रत्ययों से बनता हैं।
  • प्रत्यय दो प्रकार के होते हैं -
  • सरल और मिश्रित (जटिल) प्रत्यय
  • सरल प्रत्यय बाह्य या आन्तरिक विषय से सद्यःजन्य प्रत्यक्ष से जन्म प्रथम प्रत्यय है तथा इनमें किसी प्रकार का मिश्रण नहीं रहता। 
  • मिश्र प्रत्यय सरल प्रत्ययों के योग से बनते हैं। 
  • आत्मा सरल प्रत्ययों को निष्क्रिय होकर ग्रहण करती है।
  • हमारी बुद्धि सरल प्रत्ययों को सर्वप्रथम ग्रहण करती है, उनका विश्लेषण करती है तथा साम्य और वैषम्य के आधार पर इन्हें भिन्न-भिन्न रूप प्रदान करती है।

मिश्र प्रत्यय
  • मिश्र विज्ञानों के निर्माण में आत्मा को सक्रिय होना पड़ता है।
  • जिस प्रक्रिया से आत्मा सरल विज्ञानों का मिश्र विज्ञान बनाती है, उसकी 6 अवस्थाएं होती हैं।
  • मिश्र प्रत्यय 3 प्रकार के होते हैं -
  1. क. पर्याय (प्रकार) -
  • पर्याय सरल प्रत्ययों के योग से बनते हैं तथा द्रव्याश्रित होते हैं अर्थात् द्रव्य ही पर्याय का आधार हैं अर्थात् पर्याय की सत्ता स्वतंत्र नहीं।
  • उदाहरण- त्रिभुज, कृतज्ञता, हत्या आदि विचार पर्याय है।
पर्याय दो प्रकार के होते हैं - 
  • सरल पर्याय - एक ही प्रकार की विभिन्न वस्तुएं एक ही वर्ग में रखी जायें। जैसे - दर्जन कौडी
  • मिश्र पर्याय  - जिनमें वस्तु के विभिन्न प्रकार हो।
  • जैसे - सौन्दर्य के विचार में रूप, आकृति तथा द्रष्टा का आनंद आदि, पल, घंटा, दिन, पक्ष, मास, वर्ष
  • द्रव्य - सरल प्रत्ययों का योग
  • द्रव्य की सत्ता स्वतंत्र है।
  • द्रव्य गुण का आधार है।
द्रव्य प्रत्यय - 3 प्रकार
  • व्यष्टि रूप - उदाहरण मनुष्य
  • सम्बन्ध पर्याय - किन्हीं दो व्यक्तियों या वस्तुओं में तुलना के आधार पर निर्मित प्रत्यय को सम्बन्ध पर्याय कहते है।
  • सम्बन्ध प्रत्यय सर्वदा दो सम्बन्धियों के बीच रहता है। उदाहरण - पिता-पुत्र, बड़ा-छोटा, कार्य-कारण
  • ये भी पढ़ें - बौद्ध धर्म 


Post a Comment

0 Comments