महाराणा प्रताप : राष्ट्रप्रेम और स्वाभिमान का प्रतीक

महाराणा प्रताप
महाराणा प्रताप (1572-97 ई.)

  • इनका जन्म विक्रम संवत 1597 (9 मई 1540 ई.) को कुम्भलगढ़ दुर्ग (कटारगढ़) के बादल महल में हुआ।
  • महाराणा प्रताप का जन्म वीर विनोद के अनुसार 15 मई 1539 ई. (मुहणोत नैनसी के अनुसार 4 मई 1540 ई.) को कुंभलगढ़ में हुआ था।
  • पिताः उदयसिंह
  • माताः जैवन्ता बाई (पाली नरेश अखैराज सोनगरा चौहान की पुत्री)
  • प्रताप का बचपन का नामः कीका
  • विवाह: 1557 ई. में अजब दे पंवार के साथ हुआ जिससे 16 मार्च 1559 ई. में अमरसिंह का जन्म हुआ।
  • उदयसिंह की होली के दिन 28 फरवरी 1572 ई. को गोगुन्दा में मृत्यु हो गई। यहां स्थित महादेव बावड़ी पर 28 फरवरी 1572 ई. को मेवाड़ के सामंतों एवं प्रजा ने प्रतापसिंह का महाराणा के रूप में राज तिलक किया।
  • उदयसिंह द्वारा नामित उत्तराधिकारी जगमाल को मेवाड़ के वरिष्ठ सामंतों ने अपदस्थ कर दिया।
  • उदयसिंह ने अपनी रानी भटयाणी के प्रभाव में आकर प्रताप की जगह जगमाल को उत्तराधिकारी बना गया।
  • सोनगरा अखैराज ने जगमाल को गद्दी से हटाकर प्रताप को गद्दी पर बैठाया, कृष्णदास ने प्रताप की कमर में राजकीय तलवार बांधी। 
  • 1570 ई. में अकबर का नागौर में दरबार लगा जिसमें मेवाड़ के अलावा अधिकतर राजपूतों ने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली। 
  • अकबर ने महाराणा प्रताप के संबंध में 1572 ई. से 1576 ई. के बीच चार शिष्ट-मण्डल भेजे, परन्तु वे प्रताप को अधीन लाने में असफल रहे।
  • अ. पहली बार दरबारी जलाल खां जिसको नवंबर 1572 ई. में महाराणा प्रताप के पास भेजा, जो आत्मसमर्पण करवाने में असफल रहा।
  • ब. जून 1572 ई. में ही आमेर के राजकुमार मानसिंह को भेजा। दोनों की मुलाकात उदयसागर की पाल झील के पास हुई लेकिन वह भी राणा को अकबर की अधीनता स्वीकार करवाने में असफल रहा।
  • स. सितम्बर-अक्टूबर 1573 ई. में राजा भगवन्तदास को भेजा लेकिन वे भी असफल रहे।
  • द. दिसम्बर 1573 ई. में टोडरमल को भेजा लेकिन वह भी असफल रहा। अंत में अकबर ने युद्ध से महाराणा प्रताप को बंदी बनाने की योजना बनाई तथा मानसिंह को मुख्य सेनापति बनाकर भेजा।

  • अकबर ने महाराणा प्रताप के संबंध में 1572 ई. से 1576 ई. के बीच चार शिष्ट-मण्डल भेजे

  • ये चारों शिष्टमंडल प्रताप को समझाने में असफल रहे तो अकबर ने प्रताप को युद्ध में बंदी बनाने की योजना बनाई। 
  • बंदी बनाने की योजना अजमेर में स्थित किले में बनाई गई जिसमें आज संग्रहालय स्थित है तथा अंग्रेजों के समय का शस्त्रागार होने के कारण इसे मैगजीन भी कहते हैं।
  • अकबर ने मानसिंह को इस युद्ध का मुख्य सेनापति बनाया तथा मानसिंह का सहयोगी आसफ खान को नियुक्त किया गया।
  • मानसिंह 3 अप्रैल 1576 ई. को शाही सेना लेकर अजमेर से रवाना हुआ। उसने पहला पड़ाव मांडलगढ़ में डाला, 2 माह तक वहीं पर रहा उसके बाद वह आगे नाथद्वारा से लगे हुए खमनौर के मोलेला नामक गांव के पास अपना पड़ाव डाला। 
  • महाराणा प्रताप ने गोगुंदा और खमनौर की पहाड़ियों के मध्य स्थित हल्दीघाटी नामक तंग घाटी में अपना पड़ाव डाला।
  • हल्दीघाटी का युद्ध 18 जून 1576 ई. में हुआ। कर्नल टॉड ने इसे थार्मोपल्ली का युद्ध कहा है। इस युद्ध को इतिहासकार खमनौर व गोगुन्दा का युद्ध भी कहते है। 
  • राजपूतों ने मुगलों पर पहला आक्रमण इतना आक्रामक किया कि मुगल सैनिक चारों ओर जान बचाकर भागें। इस प्रथम चरण के युद्ध में महाराणा प्रताप की तरफ से लड़ने वाले एक मात्र मुस्लिम सरदार हकीम खां सूरी का नेतृत्व सफल रहा था।
  • पहले मुगल सेना हार रही थी परन्तु मुगल सेना के आरक्षित सेना के नेता मिहत्तर खां ने अकबर की आने की झूठी अफवाह फैला दी जिससे मुगलों के सैनिकों में जोश आ गया।
  • राजपूत भी पहले मोर्चें में सफल होने के बाद बनास नदी के किनारे वाले मैदान में जिसे ‘रक्तताल’ कहते हैं में आ जमें। 
  • इस युद्ध में राणा की ओर से पूणा व रामप्रसाद हाथी और मुगलों की ओर से गजमुक्ता व गजराज के मध्य युद्ध हुआ। रामप्रसाद हाथी के महावत के मारे जाने के कारण हाथी मुगलों के हाथ लग गया। इसका नाम अकबर ने पीरप्रसाद रखा।
  • मानसिंह मरदाना नामक हाथी पर सवार था।
  • मुगलों की शाही सेना ने प्रताप को चारों ओर से घेर लिया। बड़ी सादड़ी का झाला मन्ना सेना को चीरते हुए राणा के पास पहुंचा और महाराणा से निवेदन किया कि ‘आप राज चिह्न उतार कर मुझे दे दीजिए और आप इस समय युद्ध के मैदान से चले जाएं इसी में मेवाड़ की भलाई है।
  • चेतक की घायल होने की स्थिति को देखकर राणा ने वैसा ही किया। राजचिह्न के बदलते ही सैकड़ों तलवार झाला मन्ना पर टूट पड़ी। झाला मन्ना इन प्रहारों का भरपूर सामना करते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ।
  • महाराणा प्रताप का स्वामीभक्त घोड़ा चेतक बलीचा गांव में स्थित एक छोटा नाला पार करते हुए परलोक सिधार गया। इसी जगह ‘बलीचा गांव’ में चेतक की छतरी बनी हुई है।
  • ‘ओ नीला घोड़ा रा असवार’ शब्द राणा ने सुनें। प्रताप ने सिर उठाकर देखा तो सामने उसके भाई शक्तिसिंह को पाया। शक्तिसिंह ने अपनी करनी पर लज्जित होकर बड़े भाई के चरण पकड़ कर क्षमा याचना की, महाराणा प्रताप ने उन्हें गले लगाया और क्षमा कर दिया। इसकी जानकारी ‘अमरकाव्य वंशावली ग्रंथ व राजप्रशस्ति’ से मिलती है। जिसकी रचना संस्कृत भाषा में रणछोड़ भट्ट नामक विद्वान ने की।
  • फरवरी 1577 ई. में स्वयं अकबर और अक्टूबर 1577 ई. से लेकर नवम्बर 1579 ई. तक शाहबाज खान का तीन बार लगातार मेवाड़ अभियान करना अकबर का अपना उद्देश्य पूरा करने के प्रयास थे, वे भी असफल रहे। 
  • महाराणा प्रताप कोल्यारी गांव कमलनाथ पर्वत के निकट ‘आवरगढ़’ में अपनी अस्थायी राजधानी स्थापित करना एक विजेता का होना सिद्ध करना है।
  • 1580 ई. में अकबर ने अब्दुल रहीम खानखाना को प्रताप के विरूद्ध युद्ध करने भेजा। अब्दुल रहीम के साथ उसका परिवार भी आया जिसे उसने शेरपुर में छोड़ा। अमरसिंह ने मौका पाकर शेरपुर पर आक्रमण कर अब्दुल रहीम खानखाना के परिवार को बंदी बना लिया। महाराणा इससे नाराज हुए और उन्होंने अमरसिंह को अब्दुल रहीम के परिवार को सम्मानपूर्वक वापस छोड़कर आने को कहा। 
  • मुगल सम्राट अकबर ने 5 दिसम्बर, 1584 ई. को आमेर के भारमल के छोटे पुत्र जगन्नाथ कछवाहा को प्रताप के विरुद्ध भेजा। वह भी सफलता नहीं पा सका अपितु उसकी मांडलगढ़ में मृत्यु हो गई। 
  • प्रताप ने 1585 ई. के लगभग मेवाड़ के पश्चिमी-दक्षिणी भाग जोकि छप्पन के नाम से प्रसिद्ध था, के लूणा चावण्डियां को पराजित कर चावंड को अपनी आपातकालीन राजधानी बनाया। चावंड 1585 ई. से अगले 28 वर्षों तक मेवाड़ की राजधानी रही। यहीं पर महाराणा प्रताप ने चामुंडा माता का मंदिर बनवाया।
  • धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाते हुए महाराणा प्रताप के चोट लगी, जिसके कारण 19 जनवरी, 1597 ई. को उनकी ‘चावंड’ में मृत्यु हो गई।
  • चावंड से 11 मील दूर बांडोली गांव के निकट बहने वाले नाले के तट पर महाराणा का दाह संस्कार किया गया। 
  • खेजड़ बांध के किनारे 8 खंभों की छतरी आज भी हमें उस महान योद्धा की याद दिलाती है।
  • प्रताप की मृत्यु का समाचार अकबर के कानों तक पहुंचा तो उसे भी बड़ा दुख हुआ। इस स्थिति का वर्णन अकबर के दरबार में उपस्थित दुरसा आढा ने इस प्रकार किया, 

‘अस लेगो अणदाग पाग लेगो अणनामी गहलोत 
राण जीती गयो दसण मूंद रसणा उसी, 
नीसास मूक मरिया नयण तो मृत शाह प्रतापसी’

  • इसका तात्पर्य था कि राणा प्रताप तेरी मृत्यु पर बादशाह ने दांत में जीभ दबाई और निःश्वास से आंसू टपकाए क्योंकि तूने अपने घोड़े को नहीं दगवाया और अपनी पगड़ी को किसी के सामने नहीं झुकाया वास्तव में तू सब तरह से जीत गया।
  • कर्नल जेम्स टॉड ने हल्दीघाटी को मेवाड की थर्मोपल्ली और दिवेर को ‘मेवाड़ का मैराथन’ कहा है।


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