राजस्थान में हुए प्रमुख जौहर एवं साके Johar evm sake

  • राजपूताना में प्राचीन काल में जब युद्ध हुआ करते थे तो राजपूत वीरांगनाओं द्वारा अग्निकुंड या पानी में कूदकर जान दे देना जौहर कहलाता है।
  • इसी प्रकार राजपूत वीर केसरिया रंग के वस्त्र पहनकर युद्धभूमि में ही वीरगति को प्राप्त हो जाना केसरिया कहलाता है। 
  • जब जौहर और केसरिया दोनों एक साथ होते हैं, तब उसे साका कहते हैं। 
  • जब कभी जौहर व केसरिया में से कोई एक ही हो, तब उसे अर्द्ध साका कहते हैं।

क्यो होते थे साका व जौहर


  • मध्यकालीन राजस्थान में जब तुर्क और मुगलों के आक्रमण हुए तब राजपूतों ने इसके प्रतिउत्तर में कड़ा प्रतिरोध किया। राजपूत प्रारम्भ से ही अपने स्वाभिमान और वीरता के लिए प्रसिद्ध रहे हैं। उन्होंने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणोत्सर्ग करने में हिचकिचाहट महसूस नहीं की। 
  • यही नहीं राजपूताने की वीरांगनाएं भी अपनी आनबान की रक्षा के लिए प्रसिद्ध रही है। वे अपने सतीत्व की रक्षा के लिए अग्नि व जल में कूदकर जान दे देना ही उचित समझती थी। क्योंकि कोई भी विदेशी आक्रमणकारी पराजित राजाओं की प्रजा व महिलाओं के साथ जबरदस्ती करते थे। इससे बचने के लिए वे रानियों के साथ जौहर कर लेती थी।

प्रमुख साके:-


रणथम्भौर का साका -


  • यह राजस्थान का पहला साका था। 1301 ई. में हम्मीर देव चौहान के समय दिल्ली सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण कर दिया। इस पर आक्रमण का कारण हम्मीर देव की शरणागत की रक्षा करने की हठधर्मिता थी जो उन्होंने खिलजी के विरोधी को शरण दी थी। राजपूतों ने केसरिया पहना तो महिलाओं ने जल जौहर किया।

मेवाड़ के प्रमुख साके


  • चित्तौड़गढ़ का पहला साका 1303 ई. में हुआ जो दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय हुआ था। इस समय यहां का शासक रावल रत्नसिंह था। अलाउद्दीन ने धोखे से रत्नसिंह को कैद कर लिया और बदले में रानी पद्मिनी को मांगा लेकिन राजपूत वीरों ने केसरिया बाना पहनकर वीरता पूर्वक लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए और रानी ने 1600 महिलाओं के साथ जौहर कर लिया। खिलजी ने दुर्ग का नाम खिज्राबाद रख दिया।
  • 1534 ई. में चित्तौड़गढ़ का दूसरा साका गुजरात के शासक बहादुरशाह के आक्रमण पर हुआ। इस समय राजमाता कर्मावती ने जौहर किया।
  • 1567-68 ई. में मुगल बादशाह अकबर के समय उदयसिंह यहां का शासक था। इसमें जयमल राठौड़ और पत्ता वीरगति को प्राप्त हुए तथा राजपूत वीरांगनाओं ने जौहर किया।

जैसलमेर के प्रमुख साके

  • जैसलमेर में पहला साका अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय हुआ था। जैसलमेर के शासक रावल मूलराज व कुंवर रतनसी वीरगति को प्राप्त हुए एवं वीरांगनाओं ने जौहर किया।

दूसरा साका - 

  • फिरोजशाह तुगलक के समय हुआ।
  • इस समय रावल दूदा व त्रिलोकसी के नेतृत्व में राजपूत ने युद्ध लड़ा

तीसरा साका -

  • यह अर्द्ध साका था जो 1550 ई. में कंधार के अमीर अली पठान के आक्रमण के समय रावल लूणकरण अन्य वीर योद्धओं के साथ वीरगति को प्राप्त हुए।

सिवाना दुर्ग के साके -

पहला साका 1309 ई. में 

  • अलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण किया। इसे जीतकर इसका नाम खैराबाद रखा।
  • शासक सातलदेव था जो वीरगति को प्राप्त हुआ।



दूसरा साका -


  • अकबर के समय में हुआ।
  • शासक कल्लाजी वीरगति को प्राप्त हुए 
  • वीरांगनाओं ने जौहर किया।

जालोर का साका

  • 1311-12 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने जालोर पर आक्रमण कर दिया जिसके प्रतिरोध में जालोर के शासक कान्हड़देव चौहान व उनके पुत्र वीरमदेव ने बड़ी बहादुर के साथ प्रतिरोध किया और वीरगति को प्राप्त हुए। राजपूत वीरांगनाओं ने जौहर किया। 
  • अलाउद्दीन ने दुर्ग को जीतकर उसका नाम जलालाबाद रख दिया। 
  • इसका घटना का वर्णन पद्मनाभ द्वारा रचित कान्हड़देव प्रबंध नामक ग्रंथ में मिलता है।

गागरोन के साके

पहला साका 1423 ई. में 

  • मांडू के सुल्तान अलपखां गौरी (होशंगशाह) ने आक्रमण किया।
  • गागरोन के शासक अचलदास खींची ने प्रतिरोध किया।
  • इसका वर्णन शिवदास गाढण ने अचलदास ‘खींची री वचनिका’ में किया।

दूसरा साका 1444 ई. में

  • मांडू शासक सुल्तान महमूद खिलजी ने आक्रमण किया।
  • गागरोन का शासक पल्हणसी खींची था
  • वीरांगनाओं ने जौहर किया।
  • महमूद खिलजी ने गागरोन का नाम मुस्तफाबाद रखा था।


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