भारतीय डाक टिकटों पर राजस्थानी कला का वैभव



  • वर्ष 2017 में ‘भारत की समृद्ध विरासत’ विषय पर आधारित 12 खूबसुरत डाक टिकटों का सैट ‘भारत वैभव’ जारी किया था जिससे हर भारतीय भारत की गौरवशाली संस्कृति और विरासत के वैभव से परिचित हो सकें।

  • भारत सरकार द्वारा 1 जनवरी, 2017 को जारी 12 विशेष स्मारक डाक टिकटों की इस श्रृंखला के प्रत्येक टिकट 25 रुपये मूल्य के है जो आकर्षक व बहुरंगी है। इस श्रृंखला में राजस्थान के चार खूबसुरत स्थलों का जगह मिली है।
  • इस श्रृंखला के अन्य 8 डाक टिकटों में विभिन्न राज्यों की विरासत भी शामिल है जैसे- पशमीना कश्मीरी ऊन, छऊ शास्त्रीय नृत्य शैली के मुखौटे, बोधिवृक्ष, सरौता, महाराष्ट्र स्थित कार्ले की चैत्य गुफाएं, तंजावुर चित्रकारी, पिच्चीकारी (पेट्राड्यूरा) और आगरा की मशहूर जरदोजी कालीन का अंकन किया गया है।

  • पहला डाक टिकट जयपुर के आमेर किले के मुख्य महल में स्थित ‘गणेशपोल’ पर आधारित है। इस प्रवेश द्वारा से केवल राजा-महाराजा ही अपने निजी कक्ष में प्रवेश करते थे।
  • गणेशपोल का निर्माण कार्य मुगल तथा सजावटी मेहराब व महीन जालीदार, राजपूत शैली में किया गया है जो अपनी खूबसूरती को बताता है।

  • दूसरा डाक टिकट पर जयपुर के ही सिटी पैलेस के अन्दरुनी अहाते में स्थित चार प्रवेश द्वारों में एक ‘मयूर प्रवेश द्वार’ (पीकॉक गेट) का अंकन है जिसके जरिये चन्द्रमहल में दाखिल हुआ जा सकता है। यह प्रवेश द्वार मयूर के प्रतिरूप से सुसज्जित है और भगवान विष्णु को समर्तित है। सिटी पैलेस 1729 से 1732 ई. के मध्य महाराजा सवाई सिंह द्वितीय ने बनवाया था जो लाल व गुलाबी पत्थरों से बनाया गया था।
  • मुगल व यूरोपियन शैली के मिश्रण से इसका निर्माण विद्यासागर भट्टाचार्य व सैम्युल स्वीनन्टन जैकब की देखरेख में किया गया।
  • तीसरा डाक टिकट भी जयपुर के ही पारम्परिक शिल्प के रूप में विख्यात नीले रंग के मिट्टी क बर्तनों (ब्लू पॉटरी) का अंकन कर जारी किया गया। इसे ब्लू पॉटरी के नाम से इसलिए पुकारा जाता है क्योंकि इस हस्तकला में चित्रकारी नीले रंग का प्रयोग किया जाता है। इन बर्तनों पर उकेरी गई चित्रकारी मुख्यतः फारसी शैली में बूंटेदार होती है। चीनी के एशट्रे, जग, कप-प्लेट, मग्गे, फूलदान और प्यालियों आदि पर यह अंकन 17वीं शताब्दी से किया जा रहा है।




  • 19वीं शताब्दी में जयपुर नरेश सवाई रामसिंह द्वितीय (1835-1880) ने इस कला को प्रोत्साहन दिया व स्थानीय कलाकारों को विशेष ट्रेनिंग के लिए दिल्ली भेजा गया। रामगढ़ पैलेस में लगे फव्वारों पर इस कला को विशेष रूप से दर्शाया गया है।

  • राजमाता गायत्री देवी व कमला देवी चट्टोपाध्याय के प्रोत्साहन से कृपालसिंह शेखावत ने जयपुर व सम्पूर्ण भारत में इस कला को और आगे बढ़ाया। उनके इस योगदान के फलस्वरूप 1974 ई. में शेखावत को ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया। सन् 2002 में इन्हें ‘शिल्पगुरु’ के नाम से अलंकृत किया गया। इनका 15 फरवरी, 2008 को निधन हो गया। 

  • उदयपुर में स्थित बागौर की हवेली की शीशे की खिड़की को दर्शाते हुए चौथा डाक टिकट जारी किया गया। 18वीं सदी में निर्मित इस हवेली में खूबसुरत रंगीन शीशों की सजावट के कार्यों के नायाब नमूने मिलते हैं। 

  • यह हवेली अमरचन्द बड़वा ने बनवाई थी जो 1751 से 1778 तक मेवाड़ के प्रधानमंत्री रहे थे। पिछोला झील के घनघोर घाट पर स्थित इस हवेली में 138 कमरे हैं व कई बॉलकनी व टैरेस भी बनाए गए हैं। 

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