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गुप्तकालीन समाज

उत्तरी भारत का इतिहास 300-650 ई.

 

1. समाजिक स्थितिः

  • गुप्तकालीन समाज परंपरागत चार वर्णो में विभक्त था। 
  • अर्थशास्त्र में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्रों के लिए अलग-अलग बस्तियों का विधान किया था, वराहमिहिर ने बृहत्संहिता में भी चारों वर्णो के लिए विभिन्न बस्तियों की व्यवस्था की है।
  • न्याय-व्यवस्था में वर्ण-भेद पूर्णतः बने रहे न्याय संहिताओं में कहा गया है कि ब्राह्मण की परीक्षा तुला सें, क्षत्रिय की अग्नि से, वैश्य की जल से व शूद्र की विष से की जानी चाहिए। 
  • कात्यायानः किसी मुकद्दमें में अभियुक्त के विरूद्ध गवाही वही दे सकता है जो जाति में उसके समान हो।
  • नारद ने साक्ष्य देने की पुरानी वर्णमूलभेदक व्यवस्था के विरूद्ध कहा है कि सभी वर्णों के साक्षी किए जाते थे।
  • दंड व्यवस्था भी वर्ण पर आधारित थी। महाभारत के शांतिपर्व में कहा गया है कि यदि कोई क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र, ब्राह्मण की हत्या करे तो उसे देश निकाला दिया जाए।
  • नारद ने चोरी करने पर ब्राह्मण का अपराध सबसे अधिक और शूद्र का अपराध सबसे कम माना जाएगा। 
  • ब्राह्मण वंश: वाकाटक तथा कदंब
  • गुप्तवंश के राजा और मालवा के शूद्र राजाओं की चर्चा इस काल में मिलती है। सौराष्ट्र, अवन्ति और मालवा के शूद्र राजाओं की चर्चा इस काल में मिलती है।
  • ब्राह्मणों ने अन्य वर्णो के कार्य भी अपना लिये थे। मानवय गोत्र में उत्पन्न मयूरशर्मन नामक एक ब्राह्मण अपने गुरु के साथ वेदों का अध्ययन करने और शिक्षा प्राप्त करने कांची गया। परन्तु वहां एक अश्वारोही सैनिक से झगड़ा होने पर उसने शक्ति का प्रयोग कर कांची के पल्लव राजा के राज्य के एक प्रदेश पर अधिकार कर लिया। अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित कर उसने कदंब वंश की स्थापना की। उसने 18 अश्वमेध यज्ञ किये।
  • ब्राह्मण इन्द्रविष्णु का पुत्र मातृविष्णु भी ‘महाराज’ पद को प्राप्त करने में सफल हुआ था। गुप्तों का सामंत था।
  • ह्वेनसांग के समय उज्जैन, जिहोती और महेश्वरपुर के राजा ब्राह्मण ने भी योद्धा कर्म अपनाया और वाकाटक वंश की स्थापना की। 
  • मृच्छकटिकं में कहा गया हैं कि ब्राह्मण और शूद्र एक ही कुंए पर पानी भरते थे। वैश्य वर्ण के कर्म कृषि और व्यवसाय थे गुप्त युग में उन्हें ‘वणिक’, श्रेष्ठी और सार्थवाह भी कहा गया है।
  • अमरकोष में कृषक के पर्याय वैश्य वर्ग में गिनाए गए है। बौधायन में वैश्यों की अवस्था शूद्रों के समान दर्शायी गई। मनु ने शूद्र की सेवावृत्ति पर बहुत अधिक बल दिया था।


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