महाराणा_प्रताप (1572-97 ई.)


महाराणा प्रताप का जन्म वीर विनोद के अनुसार 15 मई 1539 ई. (मुहणोत नैनसी के अनुसार 4 मई 1540 ई.) को कुंभलगढ़ में हुआ था।
पिताः उदयसिंह
माताः जैवन्ता बाई
प्रताप का बचपन का नामः कीका
उदयसिंह ने अपनी रानी भटयाणी के प्रभाव में आकर प्रताप की जगह जगमाल को उत्तराधिकारी बना गया।
सोनगरा अखैराज ने जगमाल को गद्दी से हटाकर प्रताप को गद्दी पर बैठाया, कृष्णदास ने प्रताप की कमर में राजकीय तलवार बांधी।
उनका 28 फरवरी, 1572 ई. में गोगुन्दा में राज्याभिषेक हुआ और मेवाड़ के शासक बना।
अकबर ने महाराणा प्रताप के संबंध में 1572 ई. से 1576 ई. के बीच चार शिष्ट-मण्डल भेजे, परन्तु वे प्रताप को अधीन लाने में असफल रहे।

अ. 1572 ई. में दरबारी जलाल खां को भेजा जो महाराणा प्रताप को आत्मसमर्पण करवाने में असफल रहा।
ब. जून 1572 ई. में ही आमेर के राजकुमार मानसिंह को भेजा। दोनों की मुलाकात उदयसागर की पाल झीन के पास हुई लेकिन वह भी राणा को अकबर की अधीनता स्वीकार करवाने में असफल रहा।
स. सितम्बर 1573 ई. में राजा भगवन्तदास को भेजा लेकिन वे भी असफल रहे।
द. दिसम्बर 1573 ई. में टोडरमल को भेजा लेकिन वह भी असफल रहा। अंत में अकबर ने युद्ध से महाराणा प्रताप को बंदी बनाने की योजना बनाई तथा मानसिंह को मुख्य सेनापति बनाकर भेजा।

हल्दीघाटी का युद्ध 21 जून 1576 ई. में हुआ। कर्नल टॉड ने इसे थार्मोपल्ली का युद्ध कहा है। इस युद्ध को इतिहासकार खमनौर व गोगुन्दा का युद्ध भी कहते है। इस युद्ध में महाराणा प्रताप की तरफ से लड़ने वाले एक मात्र मुस्लिम सरदार हकीम खां सूरी थे।
पहले मुगल सेना हार रही थी परन्तु मुगल सेना के नेता मिहत्तर खां ने अकबर की आने की झूठी अफवाह फैला दी जिससे मुगलों के सैनिकों में जोश आ गया।
राणा प्रताप का घोड़ा चेतक घायल हो गया, राणा प्रताप युद्ध से भेजा गया। राव बीदा झाला ने राज चिह्न को धारण कर अंतिम दम तक मुगलों से लड़ते हुए वीर गति को प्राप्त हो गए।
अमरकाव्य वंशावली तथा राज-प्रशस्ति के अनुसार प्रताप के युद्ध से बच निकलने के बाद उनके भाई शक्ति सिंह से भेंट हुई।
प्रताप ने लूणां चावण्डिया को परास्त कर 1585 ई. में चावण्ड को अपनी राजधानी बनाई।
19 जनवरी, 1597 ई. को मृत्यु हो गई।

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