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प्रमुख धर्म सुधारक

byDivanshuGS -May 18, 2017
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  • 14वीं शताब्दी से ही सुधारवादियों का यूरोपीय धार्मिक मंच पर आगमन हो गया था। उन्होंने चर्च के संगठन के दोषों एवं पादरी जीवन में विद्यमान अनैतिकता का विरोध किया तथा परिवर्तन की मांग की। प्रारम्भिक सुधारकों ने आगे चलकर मार्टिन लूथर जैसे सुधारकों के लिए सशक्त पृष्ठभूमि तैयार की।


जान वाइक्लिफ 1320-84

- वाइक्लिफ ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय का एक प्राध्यापक था उसने कैथोलिक धर्म की बहुत सी परम्पराओं तथा चर्च के क्रियाकलापों की आलोचना की। उसने घोषित किया, ‘‘ पोप पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि नही है तथा भ्रष्ट एवं विवेकहीन पादरियों द्वारा दिये जाने वाले धार्मिक उपेदश व्यर्थ है।’’
- उसका कहना था कि प्रत्येक ईसाई को बाइबिल के सिद्धान्तों के अनुसार काम करना चाहिए और इसके लिए चर्च या पादरियों के मार्ग निर्देशन की आवश्यकता नहीं है।
- कैथोलिक चर्च की भाषा अब तक लैटिन थी, जिसे आम लोग नही समझते थे। वह जन भाषाओं में धर्मग्रंथों के अनुवाद के पक्ष में था।
- उसने मांग की कि चर्च की विपुल धन-सम्पत्ति पर राज्य को अधिकार कर लेना चाहिए। उसके विचार एक सीमा तक क्रांतिकारी थे, जिन्हें रूढिवादी धर्माधिकारी सहन नही कर पाये।
- उस पर धर्मद्रोह का आरोप लगाया गया परन्तु सामान्य जनता में उसकी लोकप्रियता से डर कर वे उसके विरूद्ध कोई सख्त कार्यवाही नही कर पाये।
- 1384 ई. में जब उसकी मृत्यु हुई, तब पादरियों ने उसके मृत शरीर को कब्रिस्तान से निकलवाकर गन्दी जगह फिंकवा दिया।
- उसे ‘द मार्निंग स्टार ऑफ रिफार्मेशन’ कहा गया। उसके अनुयायी ‘लोलाडर्स’ कहलाते थे।

जॉन हस 1369-1415 ई.

- हस बोहेमिया ‘चेक’ का निवासी था और प्राग विश्वविद्यालय में प्रोफेसर था। उसके विचारों पर वाइक्लिफ का गहरा प्रभाव था। उसकी मान्यता थी कि एक सामान्य ईसाई, बाइबिल के अध्ययन से ही मुक्ति का मार्ग खोज सकता है और इसके लिए चर्च आदि के सहयोग की आवश्यकता नही है। वह पोप के पतित जीवन तथा चर्च की कुरीतियों का कटु आलोचक था।
- चर्च की निन्दा और नास्तिकता का प्रसार रोकने के आरोप में उसे जिन्दा जला दिया था।

सेवोनारोला  1452-88 

- वह फ्लोरेंस नगर का विद्वान पादरी तथा राजनीतिज्ञ था। उसने पोप के राजसी ठाठ की आलोचना की तथा चर्च के क्रिया कलापों में सुधार पर जोर दिया।
- तत्कालीन पोप एलेक्जेण्डर षष्टम् ने उसे अपने विचारों का प्रचार बंद करने का आदेश दिया, जिसका उसने पालन नही किया। इस पर चर्च ने उसे चर्च की महान् परिषद् के सम्मुख स्पष्टीकरण के लिए बुलाया और चर्च की निंदा करने के आरोप में भी जिंदा जला दिया गया, उसके शव की राख ले जाकर नदी में फेंक दी।

इरेस्मस 1466-1536

- हॉलैण्डवासी इरेस्मस विचारों की गहनता एवं सुन्दर लेखन शैली के कारण शीघ्र ही यूरोप का विख्यात विद्वान बन गया। 1511 ई. में उसने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘द प्रेज ऑफ फॉली’/ मूर्खता की प्रशंसा लिखी।
- इस पुस्तक के द्वारा उसने लोगों का ध्यान सहज ही चर्च की बुराइयों की ओर खींचा। इसमें भिक्षुओं की अज्ञानता एवं उनके सहज विश्वास की आलोचना की गयी। प्रहसनों एवं उपहासों के माध्यम से पोप की कहीं अधिक खिल्ली उडाई।
- इरेस्मस ने ईसाई धर्म के मूल सिद्धान्तों के प्रचार हेतु ‘न्यू टेस्टामेन्ट’ का 1516 ई. में नया संस्करण निकाल कर धर्म की उत्पत्ति की व्याख्या की।

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