आरएएस मुख्य परीक्षा हल प्रश्न पत्र


मोजड़ी/ मोचड़ी :-

  • चमड़े से बनी तथा रंग-बिरंगी कशीदाकारी युक्त जूतियां मोजड़ी/मोचड़ी कहलाती है। भीनमाल, मोकलसर, जोधपुर की मोजड़ियां प्रसिद्ध है।


मलीर प्रिंट :-

  • बाड़मेर में ज्यामितीय अलंकरणयुक्त प्रिंट जिसमें ललाई लिए हुए कार्यवाही व काले रंग की छपाई होती है।


रमकड़ा उद्योग :-

  • सोप स्टोन को तराशकर खिलौने बनाने की कला को रमकड़ा उद्योग कहते है। डूंगरपुर ज़िले का गलियोकोट इस उद्योग के लिए विख्यात है। यहां बोहरा समाज का उर्स प्रसिद्ध है।


थेवा कला:-

  • प्रतापगढ़ में राजसोनी परिवार द्वारा कांच पर सोने का सूक्ष्म चित्रांकन जिसमें सोने की कारीगरी अत्यन्त बारीक, कमनीय एवं कलात्मक होती है। 


उस्ता कला :-

  • ऊंट की खाल के कूप्पों पर सोने व चांदी से कलात्मक चित्रांकन व नक्काशी को भुनवती का काम कहते हैं। बीकानेर का उस्ता परिवार इसमें सिद्धहस्त है, अतः इसे उस्ता कला भी कहते है।

कैथून :-
  • कोटा जिले का एक कस्बा जो कोटा डोरिया व मसूरिया साड़ियों के लिए प्रसिद्ध है।


मरु विकास कार्यक्रम

  • मरुस्थल को आगे बढ़ने से रोकना एवं मरु क्षेत्र में लोगों की आर्थिक दशा में सुधार के उद्देश्य से केन्द्र प्रवर्तित योजना जो 1977-78 में प्रारंभ और वर्तमान में 16 ज़िलों व 85 विकास खंडों में संचालित है।


जसनाथी सिद्धों का अग्नि नृत्य:-

  • आग के धधकते अंगारों पर किया जाने वाला अग्नि नृत्य का उद्गम बीकानेर ज़िले के कतरियासर गांव में ‘जसनाथी सम्प्रदाय’ के मतानुयायी जाट सिद्ध द्वारा किया जाता है। लकड़ी जलाकर करीब तीन-चार फीट ऊंचा और सात फीट के लगभग लम्बा अंगारों का ढेर लगाया जाता है जिसे ‘धूणा’ कहते हैं, जागरण के समय रात्रि में इस धूणे पर पुरुष नृत्य करते हैं, जिसमें अंगारों से मतीरा फोड़ना, हल जोतना, अंगारे मुंह में डालना आदि करतब दिखाई जाती है। फतै-फतै कहते हुए धूणे पर चलते हैं।


घूमर नृत्य:-

  • राजस्थान के लोक नृत्यों का सिरमौर व राज्य नृत्य है जो स्त्रियों द्वारा मांगलिक अवसरों, त्यौहारों पर किया जाता है। नृत्यांगना के लहंगे का घेर जो वृत्ताकार रूप में फैलता है। इस नृत्य का प्रमुख आकर्षण का स्रोत है। इसमें बार-बार घूमने के साथ हाथों का लचकदार संचालन प्रभावपूर्ण है। 

रम्मत:-

  • रम्मत बीकानेरी लोकनाट्य की सर्वाधिक लोकप्रिय विधा है इसमें ऐतिहासिक लोकनायकों, महापुरुषों आदि पर काव्यमय एवं समसामयिक विषयों पर व्यंग्यात्मक मंचन किया जाता है जो मनोरंजन के साथ शिक्षाप्रद भी है। जैसलमेर, पोकरण, फलौदी में भी रम्मत खेली जाती है।
  • रम्मत के शुरू होने से पहले रामदेव जी का भजन गाया जाता है तथा इसके मुख्य गीतों का सम्बन्ध चौमासा, वर्षा ऋतु का वर्णन, लावणी एवं गणपति वन्दना से है।
  • खेलार जो संगीत नाट्य को खेलने वाले पात्र होता है। रम्मत शुरू होने से पहले रम्मत के मुख्य कलाकार मंच पर आकर बैठ जाते हैं ताकि दर्शक उन्हें उनकी वेशभूषा और मेकअप में देख सकें।
  • रम्मत के मुख्य वाद्य यंत्र नगाड़ा और ढोलक होते हैं। कोई रंगमंचीय साज-सज्जा नहीं होती, मंच का धरातल थोड़ा सा ऊंचा बनाया जाता है।
  • रम्मत के संवाद विशेष गायकों द्वारा गाये जाते हैं जो मंच पर बैठे होते हैं और मुख्य चरित्र उन गायकों द्वारा गाये जाने वाले संवादों को नृत्य और अभिनय करते हुए स्वयं भी बोलते हैं।


चारबैत:-

  • राजस्थान में टोंक की लोक गायन शैली को चारबैत कहते हैं। इसका एकमात्र केन्द्र टोंक ही है। इसमें गायक परम्परागत वाद्य ढप बजाकर कव्वालों की तरह भावावेश में घुटनों के बल खड़े होकर गीत गाते हैं। इसमें गायन दल प्रतियोगिता में उतरते हैं। 
  • नायक एक-एक बंद गाता है, सहयोगी पुनरावृत्ति करते हैं। यह पठानी मूल की काव्यप्रधान संगीत विधा है। टोंक में नवाब फैजुल्ला खां के समय यह आरम्भ हुई।


किशनगढ़ शैली, आरएएस 1994

  • कला, प्रेम और भक्ति जैसे गुणों का सामंजस्य युक्त कलात्मक दृष्टि से सशक्त, प्रभावशाली और आकर्षित चित्रकला शैली जिसका विकास किशनगढ़ में हुआ। सावंत सिंह (नागरीदास) का शासनकाल इस शैली का स्वर्ण युग था। इसमें बणी-ठणी, राधा-कृष्ण, कृष्ण लीलाओं और आखेट पर अधिक चित्रण हुआ है। 
  • इसमें स्त्री आकृति तन्वगी, पतली कमर, सुराहीदार नयन, लम्बा जामा और पायजामा, उन्नत ललाट युक्त चित्रण है। चांदनी रात की संगीत गोष्ठी प्रमुख चित्रित ग्रन्थ है। बणी-ठणी प्रसिद्ध चित्र है जिसे भारतीय मोनालिसा कहा जाता है।


संत जाम्भोजी 1994

  • नागौर जिले के पीपासर गांव में 1451 ई. को पंवारवंशीय राजपूत परिवार में जाम्भोजी का जन्म हुआ। इन्हें विष्णु का अवतार माना जाता है। इन्होंने 1485 ई. में समराथता, धोरा (सम्भराथल) बीकानेर में विश्नोई (बीस$नौ नियम) सम्प्रदाय की स्थापना की। वे विष्णु की निर्गुण निराकार, ब्रह्म रूप में उपासना पर बल दिया और मोक्ष प्राप्ति के लिये विष्णु नाम, जप, सत्संग और गुरु का मार्गदर्शन बताया। वे विधवा विवाह के समर्थक थे। उन्होंने हिन्दू व मुस्लिम धर्म में व्याप्त आडम्बरों की आलोचना की, जाति व्यवस्था को नकारा, मूर्ति पूजा का भी विरोध किया।
  • इनकी समाधि मुकाम में है। इस सम्प्रदाय की प्रमुख पीठ मुकाम तालवा (नोखा, बीकानेर) में है। 


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