बौद्ध धर्म

बुद्ध का बचपन का नाम सिद्धार्थ

  • प्रवर्तक - गौत्तम बुद्ध 
  • बचपन का नाम सिद्धार्थ था।
  • जन्म 563 ई.पू. लुम्बिनी में शाक्य कुल के क्षत्रिय वंश राजा शुद्धोधन के यहां हुआ था। 
  • माता का नाम महामाया था।
  • 16 वर्ष की आयु में यशोधरा से उनका विवाह कर दिया गया।
  • 28वें वर्ष उनके पुत्र राहुल का जन्म हुआ।
  • सांसारिक दुःखों से द्रवित होकर उन्होंने 29वें वर्ष गृहत्याग दिया, जिसे बौद्ध मतावलम्बी ‘महाभिनिष्क्रमण’ कहते है।
  • गृहत्याग के पश्चात् उनके प्रथम दो गुरु अलार और उद्रक थे। 
  • 35 वर्ष की आयु में गया में उरुवेला नामक स्थान पर वटवृक्ष के नीचे निरंजना (पुनपुन) नदी के किनारे समाधिस्थ अवस्था में 49वें दिन उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ और इसके बाद वे ‘महात्मा बुद्ध’ कहलाये।
  • बुद्ध ने वाराणसी के निकट सारनाथ में अपने पांच ब्राह्मण शिष्यों को पालि भाषा में पहली बार उपदेश दिया। यहीं उन्होंने संघ की स्थापना की।
  • उनका प्रथम उपदेश ‘धर्मचक्र प्रवर्तन’ कहलाता है।
  • उन्होंने सर्वाधिक उपदेश श्रावस्ती (कोशल) में दिया था।
  • बुद्ध के प्रसिद्ध अनुयायी शासकों में बिम्बिसार, प्रसेनजित तथा उदयन थे।
  • महात्मा बुद्ध का निधन 483 ई.पू. में 80 वर्ष की आयु में ‘कुशीनगर’ (उत्तर प्रदेश में स्थित) में हुआ। उनकी मृत्यु को बौद्ध परम्परा में ‘महापरिनिर्वाण’ के नाम से जाना जाता है।
बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्य
चार आर्य सत्य -बौद्ध धर्म

  • दुःख - समस्त संसार दुःखमय है।
  • दुःख समुदाय - संसार के समस्त दुःखों का कारण इच्छा या तृष्णा है।
  • दुःख निरोध - इच्छा या तृष्णा को अपने वशीभूत रखकर ही दुःख को खत्म किया जा सकता है।
  • दुःख निरोध गामिनी प्रतिपदा - इसके अंतर्गत दुःख निवारक मार्ग बताये गये हैं। ये आठ मार्ग हें जो अष्टांगिक मार्ग कहे जाते हैं। 
  • बुद्ध ने दुःख निरोध के लिए निम्न ‘अष्टांगिक मार्ग’ का प्रावधान किया -
  • सम्यक् भाषण, सम्यक् कर्म, सम्यक् प्रयत्न, सम्यक् भाव, सम्यक् ध्यान, सम्यक् संकल्प, सम्यक् दृष्टि, सम्यक् निर्वाह।
  • बुद्ध ने सांसारिक दुःखों का निदान हेतु एक और प्रावधान किया, जिसे ‘प्रतीत्य समुत्पाद’ के नाम से जाना जाता है।
  • बुद्ध ने ‘मध्यमप्रतिपदा’ अर्थात् तथागत मार्ग (मध्यम मार्ग) अपनाने की शिक्षा दी थी, जिसके अनुसार न तो अधिक विलास ही करना चाहिए और न ही अधिक संयम।
  • बुद्ध आत्मा और ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं रखते थे।
  • बौद्ध धर्म में वर्ण व्यवस्था की निन्दा की गयी है। बौद्ध मत का दरवाजा स्त्रियों के साथ-साथ सभी जाति के लोगों के लिए खोल दिया गया। 
  • धर्म प्रचार के लिए पालि भाषा का सहारा लिया गया।
  • बौद्ध धर्म के तीन प्रमुख अंग थे - बुद्ध, संघ और धम्म। 
  • सिद्धार्थ को दिखाई देने वाले चार दुःख वृद्धावस्था, रोग, मृत्यु और संन्यासी, (गृहत्याग का कारण) बौद्ध धर्म के ‘चार महाचिह्न’ माने जाते हैं।
  • महात्मा बुद्ध के जीवन की पांच घटनाएं बौद्ध धर्म की प्रतीक मानी जाती है - जन्म (कमल व सांड), गृहत्याग (अश्व), महाबोधि (बोधिवृक्ष), प्रथम उपदेश (धर्मचक्र प्रवर्तन), निर्वाण (पद चिह्न)। 
  • बौद्ध धर्म के सिद्धांत ‘त्रिपिटक’ में संकलित है।
  • बौद्ध धर्म के अनुसार जीवन का चरम लक्ष्य निर्वाण प्राप्ति है।
  • बुद्ध ने निर्वाण प्राप्ति के लिए सदाचार और नैतिकता पर आधारित निम्न शीलों पर सर्वाधिक बल दिया - अहिंसा, सत्य, अस्तेय, व्यभिचार न करना, मद्य का सेवन न करना, असमय भोजन न करना, सुखप्रद बिस्तर पर न सोना, धन संचय न करना, स्त्रियों का संसर्ग न करना।
  • कुषाण काल (प्रथम सदी) में बौद्ध धर्म दो सम्प्रदायों हीनयान और महायान में विभाजित हो गया।
  • गृहस्थ जीवन में ही रहकर बौद्ध मत को मानने वाले लोगों को उपासक कहा जाता था।
  • चीन, श्रीलंका म्यांमार, मध्य एशिया, जापान, कम्बोडिया, वियतनाम में धर्म आज भी बौद्ध धर्म बेहद लोकप्रिय है।
  • कम्बोडिया ने वर्ष 1989 में बौद्ध धर्म को अपना राष्ट्रीय धर्म घोषित किया था। वहां हीनयान सम्प्रदाय बहुत लोकप्रिय है।

बौद्ध संगीतियां
क्रम
समय  
स्थान
अध्यक्ष
शासक

कार्य

पहली 
483 ई.पू.
राजगृह (सप्तपर्णि गुफा)
महाकस्सप
अजातशत्रु, हर्यंक वंश
बुद्ध के उपदेशों को सुत्त एवं विनय पिटकों में संकलित किया गया।

द्वितीय 
383 ई.पू.
वैशाली 
सबाकमीर
कालाशोक, शिशुनाग वंश
अनुशासन को लेकर मतभेद के समाधान के लिए बौद्ध धर्म स्थाविर और महासंघिक दो भागों में बंट गया।
तृतीय 
250 ई.पू.
पाटलिपुत्र
मोग्गलिपुत्त तिस्स
अशोक
अभिधम्म पिटक की रचना, संघ भेद रोकने के लिए नियम बनाये गये।
चतुर्थ  
प्रथम शताब्दी
कश्मीर (कुण्डलवन)
वसुमित्र व उपाध्यक्ष अश्वघोष
कनिष्क
विभाषाशास्त्रनामक टीका संकलित। बौद्ध मत दो संप्रदायों हीनयान एवं महायान में बंट गया।

                                                                                

बौद्ध धर्म का साहित्य  -

  • त्रिपिटक - पालि भाषा में

1- विनयपिटक - 

  • इसमें बौद्ध संघ के नियम, आचार-विचार आदि दिये गये हैं। यह उपालि द्वारा संकलित किया गया है। इसके चार भाग हैः
  • पातिमोक्खः - इसमें अनुशासन संबंधी एवं प्रायश्चित संबंधी नियम है।
  • सुत्त विभंगः - इसके दो भाग - महाविभंग तथा भिक्खुनी विभंग है। महाविभंग में भिक्षुओं के नियम एवं भिक्खुनी विभंग में भिक्षुणियों के नियम दिये गये हैं।
  • खन्धकः इसके भाग महावग्ग एंव चुल्लवग्ग है।
  • परिवार

2- सुत्त पिटकः-

  • इसमे बुद्ध द्वारा दिये गये उपदेश एवं प्रवचन है। इसके पांच भाग हैः
  • दीघ्घ निकाय
  • मज्झिम निकाय
  • अंगुत्तर निकाय
  • संयुक्त निकाय
  • खुद्दक निकाय - इसमें धम्मपद और जातक कथाएं वर्णित है।

3- अभिधम्म पिटकः -

  • इसमें बौद्ध की दार्शनिक विवेचना है। इसमें 7 ग्रंथ हैः
  • धम्म संगणि विभंग, धातु कथा, पुग्गल, पंचति, कथावत्थु, यमक और पट्टठान।
  • इसमें सबसे प्रसिद्ध मोग्गलिपुत्त तिस्स द्वारा रचित ग्रंथ कथावत्थु है।


बौद्ध धर्म के प्रसिद्ध स्मारकः-


स्मारक           
स्थान
तीन तल गुफा
एलोरा
मरणासन्न बुद्ध की मूर्ति
कुशीनगर
श्मशान स्तूप
कुशीनगर
बोधि वृक्ष की मूर्ति 
ग्यारसपुर
बुद्ध की सबसे ऊंची मूर्ति (अब नहीं)      
बामियान
रंगमहल गुफा
बाघ
भूमि स्पर्श मुद्रा में बुद्ध मूर्ति     
सिरपुर एवं रत्नगिरि

बुद्ध के जीवन से संबंधित प्रतीक चिह्न एवं घटनाएं :-
जन्म              
कमल एवं सांड
ज्ञान   
बोधि वृक्ष
महापरिनिर्वाण 
स्तूप
गृहत्याग
महाभिनिष्क्रमणअश्व
मृत्यु   
महापरिनिर्वाण
निर्वाण 
पद-चिह्न
प्रथम उपदेश
धम्म चक्र परिवर्तन
         

बौद्ध धर्म की प्रमुख शब्दावली
                                                                                                                  
  • प्रवज्या:- बौद्ध संघ में प्रवेश लेना
  • श्रामणेतर:- प्रवज्या लेने वाला व्यक्ति
  • शिक्षापद:- जो श्रामणेतर इन शीलों की शिक्षा प्राप्त कर लेते थे वे शिक्षापद कहलाते थे।
  • उपोसथ:- भिक्षुओं द्वारा की जाने वाली धर्म-चर्चा उपोसथ कहलाती थी।


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