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राजस्थान में प्रजामण्डल आन्दोलन

byDivanshuGS -March 23, 2018
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राजस्थान में प्रजामण्डल आन्दोलन

  • भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में कांग्रेस और महात्मा गांधी की यही नीति थी कि रियासतों के मामलों में कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाए एवं रियासतों के नेता स्थानीय स्तर पर ही अपनी समस्याओ से निपटे।
  • 1938 में सूभाष चन्द्र बोस की अध्यक्षता में कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन में रियासतों की जनता को अपने-अपने राज्यों में उतरदायी शासन का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए स्वतंत्र संगठन बनाकर आन्दोलन करने और जनजागृति फैलाने का आवाह्न किया गया। इस हेतु सुभाष चन्द्र बोस जोधपुर आये और युवाओं को आन्दोलन करने के लिए प्रेरणा दी।
  • उद्देश्य - “रियासती कुशासन को समाप्त करना व एक उत्तरदायी शासन की स्थापना करना जो प्रजा के प्रति उत्तरदायी हो”।
  • जयपुर प्रजामण्डल - (राजस्थान का प्रथम प्रजामण्डल)
  • सन् 1931 में कपूरचन्द पाटनी एवं श्री जमनालाल बजाज के प्रयासों से जयपुर प्रजामण्डल की स्थापना हुई। जनता के द्वारा इस प्रजामण्डल को अपेक्षित सहयोग नहीं मिला।
  • सन् 1936 में सेठ जमनालाल बजाज के प्रयासों से व श्री हीरालाल शास्त्री के सहयोग से जयपुर राज्य प्रजामण्डल का पुनर्गठन किया गया। जयपुर के श्री चिरंजीलाल मिश्र को उसका अध्यक्ष एवं शास्त्रीजी को उसका मंत्री बनाया गया।
  • सन् 1938 में श्री जमनालाल बजाज जयपुर प्रजामण्डल के अध्यक्ष निर्वाचित किये गये। उनकी अध्यक्षता में जयपुर में 8 व 9 मई को प्रजामण्डल का विशाल अधिवेशन हुआ।
  • प्रजामण्डल के प्रथम अधिवेशन में कस्तूरबा गांधी ने भाग लिया।
  • जयपुर प्रजामण्डल अपने उद्देश्य में सफल हो रहा था, इसलिए जयपुर राज्य ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया और बजाज के जयपुर प्रवेश पर रोक लगा दी।
  • प्रजामण्डल  के सदस्यों ने इसका मुख्यालय आगरा स्थानान्तरित कर लिया।।
  • सन् 1940 में हीरालाल शास्त्री प्रजामण्डल के अध्यक्ष बनें। जिन्होंने पहली बार जयुपर में उतरदायी सरकार की मांग रखी।
  • सितम्बर 1942 में हीरालाल शास्त्री तथा जयपुर के प्रधानमंत्री मिर्जा इस्माइल के मध्य समझौता हो गया, जिसे ‘जेन्टलमेन्स एग्रीमेंट’ कहा गया। इसके प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित थे-
  • जयपुर की जनता द्वितीय विश्व युद्ध में जयपुर की सरकार का सहयोग करेगी।
  • जयपुर की जनता को राजनैतिक अधिकार प्रदान किये जायेंगे।
  • जयपुर में भारत छोड़ो आन्दोलन नहीं चलाया जाएगा।
  • इस निर्णय का विरोध करते हुए प्रजामण्डल के कुछ सदस्यों ने बाबा हरीशचन्द्र तथा रामकरण जोशी के नेतृत्व में जयपुर में 14-15 सितम्बर, 1942 में आजाद मोर्चा की गठन आजाद चौक (चौड़ा रास्ता) पर किया।
  • बाद में 1945 में पण्डित नेहरू की प्रेरणा से आजाद मोर्चे का प्रजामण्डल में पुनः विलय हो गया।
  • अंततः 1946 में जयपुर के प्रधानमंत्री के. एम. मुंशी ने जयपुर में उत्तरदायी शासन की स्थापना की घोषणा की तथा प्रजामण्डल के अध्यक्ष देवी शंकर तिवाड़ी को जयपुर राज्य के मंत्रिमण्डल में गैर सरकारी सदस्य के रूप में शामिल किया। इस प्रकार जयपुर राज्य राजस्थान का पहला राज्य बना जिसने अपने मंत्रिमण्डल में गैर सरकारी सदस्य नियुक्त किया।
  • मारवाड़ प्रजामण्डल
  • 1920 में जयनारायण व्यास, भंवर लाल सर्राफ तथा चांदमल सुराणा ने मिलकर मारवाड़ सेवा संघ की स्थापना की।
  • 1924 में इस का नाम बदलकर ‘मारवाड़ हितकारिणी सभा’ कर दिया गया। इस संस्था के द्वारा ‘मारवाड़ की वर्तमान अवस्था’ और ‘पोपाबाई की पोल’ नामक पुस्तिकाएं जारी की गयी।
  • जयनारायण व्यास द्वारा 10 मई, 1931 को मारवाड़ यूथ लीग की स्थापना की गई।
  • 1934 में जयनारायण व्यास, भंवरलाल सरार्फ तथा आनन्दमल सुराणा ने मारवाड़ प्रजामण्डल की स्थापना की। इसका अध्यक्ष भंवर लाल सर्राफ को बनाया गया।
  • आंदोलन के दौरान 1935 में कृष्णा कुमारी का अपहरण कर लिया गया। इसमें राजघराने के किसी व्यक्ति के हाथ होने की शंका थी। इसकी निष्पक्ष जांच के लिए आंदोलन हुआ परन्तु सरकार का रवैया रूखा रहा। परिणामस्वरूप मारवाड़ियों द्वारा कृष्णा दिवस मनाया गया।
  • 1937 में दीपावली के दिन जोधपुर प्रजामंडल एवं सिविल लिबर्टीज यूनियन को अवैध घोषित कर दिया गया। 1938 के कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन के बाद 16 मई, 1938 को मारवाड़ लोक परिषद की स्थापना की गई, जिसका उद्देश्य उत्तरदायी सरकार की स्थापना था।
  • 28 मार्च, 1941 को मारवाड़ में उत्तरदायी शासन दिवस मनाया गया।
  • फरवरी, 1939 में जोधपुर राज्य द्वारा जयनारायण व्यास पर लगाये गये प्रतिबंध हटाने के बाद वे जोधपुर आये। प्रतिबन्ध हटवाने में बीकानेर महाराजा गंगासिंह जी का योगदान था।
  • 26 जून, 1940 को मारवाड़ लोक परिषद एवं मारवाड़ शासन के मध्य समझौता हुआ जिसमें सरकार ने मारवाड़ लोक परिषद को जन प्रतिनिधि सभा के रूप में मान लिया।
  • 26 जनवरी, 1942 को लोक परिषद के तत्वाधान में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। व्यास ने नगरपालिका अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर राज्य में उत्तरदायी शासन की स्थापना हेतु संघर्ष किया।
  • उन्होंने उत्तरदायी शासन के लिए संघर्ष व संघर्ष क्यों? आदि पुस्तिकाएं वितरित करवाई तथा 11 मई से दूसरा सत्याग्रह आंरभ किया गया।
  • बालमुकुन्द बिस्सा का जेल में अव्यवस्था व अन्याय के विरुद्ध भूख हड़ताल करने के कारण स्वास्थय खराब हो जाने से 19 जून, 1942 को मृत्यु हो गई।
  • लोक परिषद के आंदोलन में मारवाड़ की महिलाएं भी महिमा देवी किंकर के नेतृत्व में भूमिका निभा रही थी।
  • 9 अगस्त, 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन के कारण आंदोलन में भी तेजी आ गई। जयनारायण व्यास की पुत्री रमादेवी, अचलेश्वर प्रसाद शर्मा की पत्नी कृष्णा कुमारी आदि के नेतृत्व में महिलाओं ने आन्दोलन को बढ़ाया।
  • 21 जून 1947 को हनुवन्त सिंह जोधपुर की गद्दी पर बैठे।
  • 3 मार्च, 1948 को जयनारायण व्यास के प्रधानमंत्रीत्व में एक मिली जुली लोकप्रिय सरकार का गठन किया गया।
  • 30 मार्च, 1949 को जोधपुर रियासत का राजस्थान में विलय हो गया।
  • मेवाड़ प्रजामण्डल
  • स्थापना - 24 अप्रैल, 1938
  • संस्थापक - माणिक्यलाल वर्मा, बलवन्त सिंह मेहता, भूरेलाल बंया
  • अध्यक्ष - बलवन्त सिंह मेहता
  • मेवाड़ सरकार ने प्रजामण्डल पर प्रतिबंधित कर माणिक्यलाल वर्मा के मेवाड़ प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया।
  • वर्मा जी ने मेवाड़ का 'वर्तमान शासन नामक पुस्तक और मेवाड़ प्रजामण्डलः मेवाड़वासियों से एक अपील' नामक पर्चे बंटवाये।
  • भूरेलाल बयां ने गांधी से मिलकर मेवाड़ में व्यक्तिगत सत्याग्रह चलाने का निर्णय लिया। इस कारण मेवाड़ सरकार ने भूरेलाल बयां को गिरफ्तार कर सराड़ा के किले में कैद कर दिया। सराड़ा के किले को मेवाड़ का काला-पानी कहा जाता है।
  • 24 जनवरी, 1939 को माणिक्यलाल वर्मा की पत्नी नारायणी देवी एवं पुत्री को प्रजामंण्डल आंदोलन में भाग लेने के कारण मेवाड़ से निष्कासित कर दिया गया।
  • मेवाड़ के प्रथम सत्याग्रही रमेशचन्द्र व्यास थे।
  • वर्मा जी ने प्रतिबंध के बावजूद भी मेवाड़ में प्रवेश किया। अतः मेवाड़ सरकार ने उनके खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा चलाया और उन्हें कुम्भलगढ़ दुर्ग में कैद कर लिया।
  • मेवाड़ मे भंयकर अकाल पड़ने के कारण प्रजामण्डल ने सत्याग्रह आंदोलन स्थगित कर दिया।
  • इसके बाद प्रजामण्डल ने बेगार एव बलेठ प्रथा के विरुद्ध आंदोलन चलाया फलस्वरूप मेवाड़ सरकार को इन दोनो प्रथाओं पर रोक लगानी पड़ी। प्रजामण्डल की यह पहली नैतिक विजय थी।
  • मेवाड़ के प्रधानमंत्री टी राघवाचारी के द्वारा 1941 में मेवाड़ प्रजामण्डल से प्रतिबंध हटा लिया और 25-26 नवम्बर, 1941 में वर्मा जी की अध्यक्षता में पहला अधिवेशन आयोजित किया गया। इसका उद्घाटन जे. बी. कृपलानी ने किया।
  • कांग्रेस की ओर से विजयालक्ष्मी पंडित ने भाग लिया। इस अधिवेशन में मोहनलाल सुखाड़िया भी मौजूद थे। सुखाड़िया 1954-1971 तक सबसे लंबे समय तक राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे। इसके अलावा आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, व तमिलनाडु के राज्यपाल रहे।
  • प्रजामण्डल ने भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। इस कारण मेवाड़ सरकार ने प्रजामण्डल को गैर-कानूनी घोषित कर दिया।
  • 31 दिसम्बर, 1945 एवं 1 जनवरी, 1946 को उदयपुर के सलेटिया मैदान में अखिल भारतीय देशी लोक राज्य परिषद का छठा अधिवेशन पं. जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में हुआ जिसमें प्रस्ताव पारित कर देशी रियासतो के शासकों से उत्तरदायी सरकार की स्थापना की अपील की गई।
  • 8 मई, 1946 को मेवाड़ सरकार ने ठाकुर गोपालसिंह की अध्यक्षता में संविधान निर्मात्री समिति का गठन किया।
  • 3 मार्च, 1947 को मेवाड़ के भावी संविधान की रूपरेखा की घोषणा की गई।
  • 23 मई, 1947 को मेवाड़ के वैधानिक सलाहकार के. एम. मुंशी द्वारा संवैधानिक सुधारों की नई योजना प्रस्तुत की गई।
  • 6 मई, 1948 को महाराणा ने अंतरिम सरकार बनाने एवं विधानसभा निर्वाचन की घोषणा की। परन्तु एकीकरण के तीसरे चरण में 18 अप्रैल, 1948 को उदयपुर का राजस्थान में विलय कर दिया गया।
  • बीकानेर प्रजामण्डल
  • 1907 में स्वामी गोपालदास ने बीकानेर में सर्वहितकारिणी सभा की स्थापना की।
  • 26 जनवरी, 1930 को कांग्रेस के लाहोर अधिवेशन से प्रेरणा लेकर स्वामी गोपालदास तथा चन्द्रमल गहड़ ने बीकानेर राज्य के चुरु में धर्मस्तुप पर तिरंगा झंडा फहराया। इन दोनों ने बीकानेर राज्य की आलोचना करते हुए ‘बीकानेर एक दिग्दर्शन’ नामक पुस्तिका जारी की। बाद में महाराजा गंगासिंह ने स्वामी गोपाल दास और चन्द्रमल गहड़ पर बीकानेर षंडयत्र केस के तहत मुकदमा चलाया।
  • बीकानेर प्रजामण्डल की स्थापना कलकत्ता में 4 अक्टुबर, 1936 को की गयी।
  • प्रथम अध्यक्ष - मंघाराम वैद्य (बीकानेर में आजादी के आंदोलन का जनक)
  • बीकानेर प्रजामण्डल को अस्तित्व में आने से पहले ही समाप्त कर दिया गया, इसलिए इसके लिए भ्रूण हत्या शब्द का प्रयोग किया जाता है।
  • 22 जुलाई, 1942 में रघुवरदयाल शर्मा के द्वारा बीकानेर राज्य प्रजा परिषद नामक संगठन की स्थापना की।
  • 20 जून, 1946 को प्रजामण्डल का रायसिंह नगर अधिवेशन आयोजित हुआ, जिस पर बीकानेर की शाही सेना ने गोलाबारी की जिसमें बीरबल शहीद हो गए।
  • अंततः 1947 में महाराजा सार्दुलसिंह ने उतरदायी शासन की स्थापना की घोषणा की।
  • अलवर प्रजामण्डल
  • अलवर क्षेत्र में जन जागृति लाने का श्रेय हरिनारायण शर्मा को है। शर्मा ने यह कार्य आदिवासी संघ व वाल्मीकि संघ नामक संस्थाओं के माध्यम से किया।
  • स्थापना - 1938
  • सबसे महत्त्वपूर्ण भुमिका - हरिनारायण शर्मा और कुंजबिहारी मोदी
  • प्रथम अध्यक्ष - हरिनारायण शर्मा
  • प्रथम अधिवेशन - जनवरी, 1944
  • अध्यक्षता- भवानी शंकर शर्मा
  • जैसलमेर प्रजामण्डल
  • 1932 में रघुनाथ सिंह मेहता ने जैसलमेर में माहेश्वेरी युवक मण्डल की स्थापना की। इस समय जैसलमेर के शासक जवाहरसिंह थे जो अंत्यत क्रुर, निरंकुश प्रवृति के थे।
  • जवाहर के निरकुंश प्रशासन के विरूद्ध आवाज उठाने वाला प्रथम व्यक्ति सागरमल गोपा था, जिसने 1940 में जैसलमेर प्रशासन की आलोचना करते हुए ‘आजादी के दिवाने’ तथा ‘जैसलमेर का गुंडाराज’ नामक पुस्तिकाएं प्रकाशित की।
  • 22 मई, 1941 को सागरमल गोपा को 6 साल का कारावास मिला। जेल में उसे जेलर गुमान सिंह ने अनेक शारिरिक यातनाएं दी। 3 अप्रैल, 1946 को जेल में सागरमल गोपा को जला कर मार डाला गया।
  • सागरमल गोपा हत्याकांड के अत्यधिक विरोध के कारण जैसलमेर सरकार ने जयनारायण व्यास के कहने पर गोपाल स्वरुप पाठक आयोग का गठन किया। इस आयोग ने इस घटना को आत्महत्या की संज्ञा दी।
  • जैसलमेर प्रजामण्डल की स्थापना - 15 दिसम्बर, 1945
  • अध्यक्ष - मीठालाल व्यास
  • कोटा प्रजामण्डल
  • हाड़ौती प्रजामण्डल -
  • स्थापना - 1934
  • संस्थापक - पं. नयनूराम शर्मा एवं प्रभुलाल विजय।
  • अध्यक्ष - पं. नयनूराम शर्मा
  • यह प्रजामण्डल अधिक समय तक प्रभावी नहीं रहा।
  • पुनगर्ठन - कोटा प्रजामण्डल
  • स्थापना - 1939
  • संस्थापक - पं. नयनूराम शर्मा, अभिन्न हरि, तनसुखलाल मित्तल
  • अध्यक्ष - पं नयनूराम शर्मा
  • 14 अक्टूबर, 1939 को शर्मा जी के नेतृत्व में मांगरोल (बांरा) में प्रजामण्डल का प्रथम अधिवेशन राजस्थान मे हुआ।
  • 14 अक्टूबर, 1941 को शर्मा जी की हत्या कर दी गई तब अभिन्न हरि अध्यक्ष बने।
  • कोटा महाराव भीमसिंह ने उत्तरदायी शासन की घोषणा की।
  • बूंदी प्रजामण्डल
  • स्थापना - 1931 में
  • संस्थापक अध्यक्ष - कांतिलाल जैन
  • बूंदी के राव बहादुर सिंह ने उत्तरदायी शासन की घोषणा की।
  • भरतपुर प्रजामण्डल
  • भरतपुर में जनजागृति लाने का श्रेय महाराजा किशन सिंह के उदार शासन को जाता है।
  • 1928 में मेकेंजी को रियासत का दीवान बना दिया। मैकेंजी की दमनकारी नीति, पुलिस अत्याचार के विरोध में 1928 में भरतपुर राज्य प्रजा संघ की स्थापना की गई।
  • स्थापना - 1938 में
  • संस्थापक - किशनलाल जोशी
  • अध्यक्ष - गोपीलाल यादव
  • 25 अक्टुबर 1939 को प्रजामण्डल का नाम बदलकर भरतपुर प्रजा परिषद रख दिया गया।
  • भारत छोड़ो आंदोलन प्रांरभ होने के बाद 10 अगस्त, 1942 को भरतपुर में हड़ताल रखी गयी। महिला सत्याग्रहियों का नेतृत्व श्रीमती सरस्वती बोहरा कर रही थी।
  • 22 अक्टुबर, 1942 को भरतपुर महाराजा ने श्री ब्रज प्रजा प्रतिनिधि समिति नामक जन व्यवस्थापिका सभा का गठन किया।
  • 3 अक्टुबर, 1947 को भरतपुर के महाराजा ने लोकप्रिय सरकार के गठन घोषणा की।
  • जुगल किशोर चतुर्वेदी - दूसरा जवाहरलाल नेहरू और राजस्थान का नेहरू
  • गोकुल वर्मा - शेेर-ऐ-भरतपुर के नाम से प्रसिद्ध
  • धौलपुर प्रजामण्डल
  • धौलपुर क्षेत्र में जन जागृति लाने का श्रेय यमुना प्रसाद वर्मा को है।
  • 1934 में धौलपुर में ज्वाला प्रसाद जिज्ञासु तथा इंदुलाल जौहरी द्वारा नागरी प्रचारिणी सभा की स्थापना की गयी।
  • इन दोनों के प्रयासों से 1938 मे धौलपुर प्रजामण्डल की स्थापना हुई। इसका प्रथम अध्यक्ष कृष्णदत्त पालीवाल को बनाया गया।
  • तसीमों गांव में उत्साही लोगों ने नीम के पेड़ पर 11 अप्रैल, 1947 को तिरंगा झंडा फहरा दिया, जिन पर शाही गोलाबारी हुई, जिसमें छत्रसिंह परमार और पंचम सिंह कुशवाहा शहीद हो गये।
  • करौली प्रजामण्डल
  • स्थापना - अप्रैल, 1939
  • संस्थापक - त्रिलोक चन्द माथुर, चिरंजी लाल मिश्र
  • अध्यक्ष - त्रिलोक चन्द माथुर
  • डूंगरपुर प्रजामण्डल
  • स्थापना - 1944
  • संस्थापक - भोगीलाल पंड्या, शिवलाल कोटड़िया
  • अध्यक्ष - भागीलाल पंड्या
  • डूंगरपुर में 1942 में महात्मा गांधी के 'करो या मरो' के संदेश का प्रचार भोगीलाल पंड्या, गोरीशंकर उपाध्याय, हरिदेव जोशी ने किया।
  • पुनवाड़ा काण्ड ( मई, 1947) - डूंगरपुर सेवा समिति के द्वारा यहां शिक्षण कराया जा रहा था। पुनवाड़ा में अध्ययापक शिवराम भील को रियासती सरकार के सैनिकों द्वारा पीटा गया तथा उसे उठाकर ले गए।
  • रास्तापाल काण्ड (जून 1947) - डूंगरपुर के रास्तापाल नामक स्थान पर सेंगाभाई व नानजी खांट नामक अध्यापकों के द्वारा शिक्षण कार्य कराया जा रहा था। यहां पर सेंगा भाई को रसियों से बांधकर ट्रक से घसीटा गया। 13 वर्षीय कालीबाई विद्यार्थी ने अपने गुरु सेंगा भाई के लिए प्राणो का त्याग कर दिया। कालीबाई का दाह संस्कार गेवसागर झील तट के समीप सुरपुर नामक स्थान पर किया गया।
  • बांसवाड़ा प्रजामण्डल
  • स्थापना - 27 मई, 1945
  • संस्थापक - धूल जी भाई, भुपेन्द्र नाथ त्रिवेदी,
  • अध्यक्ष - भुपेन्द्र नाथ त्रिवेदी
  • चिमनालाल मालोत ने 1930 में राजनैतिक चेतना प्रसार के उद्देश्य से शांतसेवा कुटीर की स्थापना करी।
  • श्रीमती विजया बहिन भावसार के नेतृत्व में गठित महिला मण्डल प्रजामण्डल का सहयोगी संगठन था।
  • फरवरी, 1948 में बांसवाड़ा का प्रथम लोकप्रिय मंत्रिमंडल व रियासत में उत्तरदायी शासन की स्थापना हुई।
  • प्रतापगढ़ प्रजामण्डल
  • संस्थापक - चुन्नीलाल प्रभाकर, अमृतलाल पायक
  • स्थापना - 1945
  • अध्यक्ष - कांतिलाल जैन
  • शाहपुरा प्रजामण्डल
  • स्थापना - 1938
  • संस्थापक - रमेचन्द्र ओझा, लादूराम व्यास
  • अध्यक्ष - रमेशचन्द्र ओझा
  • शाहपुरा में जनजागृति लाने का श्रेय महारावल उम्मेद सिंह को जाता है।
  • शाहपुरा प्रथम देशी व एकमात्र राजपूताना रियासत थी, जहां सर्वप्रथम जनतांत्रिक व पूर्ण उत्तरदायी शासन की स्थापना हुई।
  • गोकुललाल असावा के नेतृत्व में 1946 में शाहपुरा के महारावल उम्मेद सिंह ने संविधान निर्मात्री सभा का गठन किया।
  • सिरोही प्रजामण्डल
  • स्थापना - 1934 (राज्य से बाहर बम्बई में)
  • संस्थापक - सिरोही के नवयुवको ने (यह अधिक समय तक प्रभावी नहीं रहा)
  • पुर्नगठन - 23 जनवरी, 1939
  • संस्थापक अध्यक्ष - गोकुलभाई भट्ट (राजस्थान का गांधी
  • मुख्यमंत्री सिरोही ने किसानो की तकलीफों की जांच कराने के लिए 25 अगस्त, 1939 को कल्टीवेटर्स इन्क्वायरी कमेटी की नियुक्ति की।
  • प्रजामण्डल की ओर से 3 सितंबर, 1939 को पूरे सिरोही राज्य में विरोध दिवस मनाया गया।
  • झालावाड़ प्रजामण्डल
  • स्थापना - 25 नंवबर, 1946 में
  • संस्थापक - मांगीलाल भव्य, कन्हैयालाल मित्तल, मकबुल आलम
  • यह राजस्थान का अंतिम प्रजामण्डल था।
  • यह एकमात्र प्रजामण्डल था जिसे वहां के शासक नरेश हरिशचन्द्र के द्वारा  किया गया।
  • किशनगढ़ प्रजामण्डल
  • स्थापना - 1939
  • संस्थापक - कांतीलाल चौथाणी, महमूद व जमालशाह
  • अध्यक्ष - जमालशाह
  • कुशलगढ़ प्रजामण्डल
  • स्थापना - अप्रैल, 1942
  • संस्थापक - भंवर लाल निगम, श्री जोशी
  • अध्यक्ष - भंवर लाल निगम


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