जैव प्रौद्योगिकी

जैव प्रौद्योगिकी व इसके विविध उपयोग

  • जीवाणुओं, छोटे जंतुओं तथा पादपों की सहायता से वस्तुओं के उत्पादन की प्रक्रिया जैव प्रौद्योगिकी अथवा जैव तकनीक कहलाती है।
  • इसके अंतर्गत मुख्य रूप से डीएनए तकनीक, कोशिका एवं ऊतक तंत्र, रोग प्रतिरक्षण, एंजाइम विज्ञान, जैव अभियांत्रिकी, टीका उत्पादन, जैव उर्वरक, जैविक गैस, परखनली शिशु अंग प्रत्यारोपण, क्लोनिंग तथा कुछ अन्य क्षेत्र एवं विधाएं आती है।


  • जैव प्रौद्योगिकी के दो रूप है- आनुवंशिक जैव प्रौद्योगिकी एवं गैर आनुवंशिक जैव प्रौद्योगिकी।
  • आनुवंशिक जैव प्रौद्योगिकी में जीनों का स्थानांतरण एक जीव से दूसरे जीव में कर दिया जाता है जबकि गैर आनुवंशिक जैव प्रौद्योगिकी में संपूर्ण कोशिकाओं, ऊतक या एकरूप जैविक के साथ संपादन होता है। वर्तमान में गैर आनुवंशिक प्रौद्योगिकी का उपयोग अधिक प्रचलन में है।
जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने चार जैव प्रौद्योगिकी मिशन चलाये है:-
  • संक्रामक रोगों के लिए नयी पीढी के वैक्सीन का विकास जिसका उद्देश्य नयी पीढ़ी के वैक्सीन विकसित करना है, जैसे- रीकम्बीनेंट हैजा तथा रेबीज वैक्सीन, टिशू कल्चर पर आधारित जेईवी वैक्सीन, पेप्टाइड आधारित मलेरिया वैक्सीन आदि।
  • जड़ी-बूटी संबंधी उत्पादों के विकास के लिए जैव प्रौद्योगिकी प्रयत्न।
  • कॉफी को बेहतर बनाने के लिए जैव प्रौद्योगिकी का नेटवर्क कार्यक्रम।
  • जीनोम के अनुसंधान के लिए दर्पण (एकदम मूल के जैसा प्रति) स्थल बनाना।



जैव प्रौद्योगिकी की उपयोगिता

  • जैव प्रौद्योगिकी विभिन्न क्षेत्रों में मानव समुदाय एवं पर्यावरण के लिए सहायक एवं उपयोगी साबित हुई है। इस तकनीक के विभिन्न क्षेत्रों में प्रमुख उपयोग निम्न है-

जैव प्रौद्योगिकी और मानव स्वास्थ्यः-

  • जैव प्रौद्योगिकी मूल रूप से जैविक तंत्रों-सूक्ष्म जीवों, पौधों और प्राणियों की मदद से मानव के लिए लाभकारी वस्तुओं के उत्पादन की प्रक्रिया है।
  • इसके उपयोग से एंटीबायोटिक्स, विटामिन, टीके, एंजाइम, हार्मोन आदि के निर्माण के साथ ही प्रदूशण नियंत्रण, जीवाणुओं के माध्यम से विशाक्त अपवर्ज्य पदार्थो का विघटन, नये ईधन आदि का उत्पादन संभव है।
  • मानव स्वास्थ्य रक्षा के क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी की महत्वपूर्ण भूमिका है। स्वास्थ्य की निगरानी प्रणाली में मुख्य रूप से रोगों के षीघ्र निवारण और तपेदिक, हैजा, हेपेटाइटिस, कैंसर, आनुवंशिक विकृति आदि रोगों के निवारण के लिए रोग-प्रतिरोधी चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान पर ध्यान केन्द्रित किया गया है।
  • एचआईवी-1 तथा एचआईवी-2 का पता लगाने के लिए सिंथेटिक पेप्टाइड की एलिजा किट, रक्त में एचआईवी-1 और 2 का पता लगाने के लिए सिमेरिक मोनोक्लोनल अभिकर्मक और वेस्टर्न इम्यूनोब्लॉट विकसित किये गये है। इसके अतिरिक्त टायफाइड, टी.बी., हेपेटाइटिस ‘ए’, बी और सी, सेरेब्रल मालेरिया आदि के लिए इम्यूनोएसेज और मोलेक्यूलर परीक्षण तकनीक विकसित की गयी है।
  • गर्भावस्था की समस्याएं, फायलेरिया, मियादी बुखार, मलेरिया तथा ब्लड ग्रुपिंग सिरम के उपचार की पद्धतियां विकसित की गयी है।
  • डीएनए रिकॉम्बीनेंट तकनीक से इंसुलिन के उत्पादन में विविधता आने की संभावना है। तपेदिक केन्द्र नई दिल्ली; अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली; केन्द्रीय औशधि अनुसंधान केन्द्र, लखनऊ में तपेदिक के निदान के लिए पीसीआर आधारित प्रणाली संयुक्त रूप से विकसित की गई है।
  • सूक्ष्मजीव प्रौद्योगिकी संस्थान, चंडीगढ द्वारा प्रतिरक्षा-मॉडुलक ‘लेप्रोवेक’ का विकास किया गया है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी, पुणे और सेंटर फॉर बायोकेमिकल टेक्नोलॉजी, नई दिल्ली में क्रमशः हेपेटाइटिस ‘ए’ के लिए एंटी-आई.जी.एम. एलिसा किट तथा एस्परजेलेसिस के लिए एंटीबॉडी पता लगाने का किट विकसित किया गया है। 
  • अतिसार के लिए ‘केंडीडेट’ वैक्सीन स्टेªन का पेटेंट करा लिया गया है। इसके अतिरिक्त् बीमारियों के समाधान के लिए ‘जीन थैरेपी’ विकसित की जा रही है।


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