भारत छोड़ो आन्दोलन

भारत छोड़ो आन्दोलन

भारत छोड़ो आन्दोलन / अगस्त क्रांति (1942 का विद्रोह) 

भारत छोड़ो आन्दोलन के कारण निम्न थे-


  1. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान तेजी से बढ़ती मुद्रास्फीति तथा खाद्य सामग्री की अत्यन्त कमी।
  2. ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियां, 
  3. जापानियों द्वारा दक्षिण-पूर्व एशिया में अंग्रेजों को पराजित करना, जिससे लोगों में यह विश्वास हो गया था कि युद्ध में अंग्रेजों की पराजय होगी।
  4. क्रिप्स मिशन की असफलता।


  • 14 जुलाई 1942 को वर्धा बैठक में कांग्रेस कार्यकारिणी समिति ने गांधीजी को ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ चलाने की स्वीकृति दे दी।
  • उसी समय गांधीजी ने कहा था, ‘‘अगर कांग्रेस इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करेगी तो मैं देश की बालू से ही कांग्रेस से भी बड़ा आन्दोलन खड़ा कर दूंगा।’’
  • 8 अगस्त को बम्बई के ‘ग्वालिया टैंक मैदान’ में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ, जिसमें गांधीजी के नेतृत्व में ‘भारत छोड़ो प्रस्ताव’ स्वीकृत हो गया। गांधीजी ने ‘आजादी से कम कुछ भी नहीं’’ तथा ‘‘करो या मरो’’ का नारा दिया।
  • 9 अगस्त की सुबह ही समस्त कांग्रेसी नेता गिरफ्तार कर लिये गये।
  • गांधीजी को पूना के आगा खां महल में तथा शेष कांग्रेसी नेताओं को अहमदनगर के किले मे नजरबंद किया गया।
  • नेताओं की गिरफ्तारी पर स्वतः स्फूर्त आन्दोलन देश भर में फैल गया। लोगों ने थाना जलाने, स्टेशन फूँकने, तार काटने जैसी हिंसक कार्यवाहियां की, पर गांधीजी ने आन्दोलन वापिस नहीं लिया।
  • ‘नेशलन हेराल्ड’ और ‘हरिजन’ तो पूरे आन्दोलन के दौरान नहीं छापे।
  • काशी विश्वविद्यालय के छात्रों ने ‘भारत छोड़ो’ का संदेश फैलाने के लिए गांवों में जाने का फैसला किया।
  • देश के विभिन्न हिस्सों में आन्दोलन का एक भूमिगत संगठनात्मक ढांचा भी तैयार हो रहा था।
  • आन्दोलन की बागडोर अच्युतपटवर्धन, अरुणा आसफ अली, राम मनोहर लोहिया, सुचेता कृपलानी, छोटूभाई पुराणिक, बीजू पटनायक, आर.पी. गोयनका और बाद में जेल (हजारीबाग जेल) से निकल भागने के बाद जय प्रकाश नारायण जैसे नेताओं ने फरार रहते हुए संभाल ली थी।
  • राम मनोहर लोहिया, बी.एम. खाकर, नादिमन अब्रवाद प्रिंटर तथा उषा मेहता ने आन्दोलन का रेडियों से गुप्त प्रसारण किया, जिसका केन्द्र प्रारम्भ में नासिक था, लेकिन बाद में बम्बई बन गया। इसका प्रसारण मद्रास तक सुना जा सकता था।
  • 12 नवम्बर 1942 में पुलिस ने इसे खोज निकाला।
  • बिहार के तिरहुत प्रखंड में दो सप्ताह तक कोई सरकार नहीं थी। बिहार के सारन जिले को कुख्यात घोषित कर दिया गया।

गांधीजी का उपवास


  • 10 फरवरी, 1943 से गांधीजी ने जेल में उपवास शुरू कर दिया और घोषणा की कि यह 21 दिनों तक चलेगा।
  • ससरकार की प्रतिष्ठा को सबसे ज्यादा आघात उस वक्त लगा, जब वायसराय की कार्यकारिणी परिषद के तीन सदस्य एम.एस. अणे, एन.आर. सरकार और एच.पी. मोदी ने इस्तीफा दे दिया।

समानांतर सरकारे

बलिया - 

पहली समानान्तर सरकार संयुक्त प्रांत के बलिया जिले में चितू पाण्डेय के नेतृत्व मे बनी। (अगस्त 1942 में)

तामलुक-

बंगाल के मिदनापुर जिले के तामलुक नामक स्थान पर 17 दिसम्बर 1942 को जातीय सरकार (राष्ट्रीय सरकार) का गठन किया गया। उसका अस्तित्व सितंबर 1944 तक रहा। तामलुक मे गांधीवादी रचनात्मक काम और जनांदोलन काफी हुए थे।
जातीय सरकार ने बड़े पैमाने पर तेजी से राहत का काम चलाया, स्कूलों को अनुदान दिए और एक सशस्त्र विद्युत वाहिनी का गठन किया आपस मे समझौता करने के लिए अदालतें बनाई गई। तामलुक की भौगोलिक स्थिति अलग-थलग थी, अतः यहां की स्वाधीन सरकार कुछ अधिक समय तक चल सकी।

सतारा- 

महाराष्ट्र के सतारा में स्थापित समानांतर सरकार सर्वाधिक दीर्घजीवी साबित हई।
नाना पाटिल तथा वाई.बी. चव्हाण इसके प्रमुख नेता थे। सतारा की सरकार 1945 तक कायम रही।
न्यायदान मंडल या जन अदालतें शुरू (रॉबिनहुड) की गई। 
शराबबंदी लागू कर दी तथा ‘गांधी विवाहों’ का आयोजन हुआ।
औंध रियासत के राजा ने - जिसके राज्य का संविधान गांधीजी के द्वारा तैयार किया गया था। 
सरकार ने दमनात्मक कार्यवाही कर इस आन्दोलन को दबा दिया, पर गांधीजी को बीमारी के आधार पर 6 मई, 1944 को रिहा कर दिया गया।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रश्न पढ़े - 

भारत छोड़ो आन्दोलन पर राजनीतिक दलों के दृष्टिकोण का मूल्यांकन

कांग्रेसी मंत्रिमंडलों का त्यागपत्र तथा मुस्लिम लीग का ‘मुक्ति दिवस’....

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