वायुदाब व वायुदाब की पेटियों

वायुदाब की पेटियां

  • धरातलीय या सागरीय क्षेत्रफल की एक निश्चित इकाई पर वायुमण्डल की समस्त परतों का पड़ने वाला दवाब ही वायुदाब है।
  • प्रति इकाई क्षेत्रफल पर वायु के स्तम्भ के भार को वायुदाब कहा जाता है।
  • मापन वायुदाबमापी यंत्र या बैरोमीटर की सहायता से व इकाई मिलीबार है।
  • एक मिलीबार एक वर्ग सेन्टी क्षेत्रफल के एक ग्राम भार के बल के बराबर होता है।
  • समुद्रतल पर वायुदाब सर्वाधिक होता है।
  • समुद्रतल पर सामान्य वायुदाब लगभग 76 सेमी. या 1013.25 मिलीबार के बराबर होता है।
  • ऊंचाई के साथ वायुदाब में प्रति 200 मीटर (600फीट) पर 3.4 मिलीबार या 1 फीट की दर से घटता है। 
  • सामान्य रूप से 1800 फीट की ऊंचाई पर वायुदाब का लगभग 50 प्रतिशत भाग होता है।
  • तापमान एवं वायुदाब में विपरीत संबंध होता है अर्थात् जब ताप अधिक तो वायुदाब कम और जब ताप कम तो दाब अधिक होता है।
समदाब रेखा (आइसोबार)
  • किसी मानचित्र पर समुद्रतल के बराबर घटाये हुए वायुदाब से तुलनात्मक रूप में समान वायुदाब वाले स्थानों को मिलाकर खींची जाने वाली रेखा समदाब रेखा या आइसोबार  कहलाती है।
दाब प्रवणता
  • किन्हीं भी दो समदाब रेखाओं की पारस्परिक दूरियां वायुदाब में अंतर की दिशा एवं उसकी दर को दर्शाती है, जिसे दाब प्रवणता कहते हैं।
  • पास-पास स्थित समदाब रेखाएं तीव्र दाब-प्रवणता की सूचक होती है। जबकि दूर-दूर स्थित समदाब रेखाएं मन्द दाब-प्रवणता की सूचक है।
  • वायुदाब पर हवा के घनत्व, तापमान, जलवायु की मात्रा तथा गुरुत्वाकर्षण शक्ति का प्रभाव पड़ता है। इन सभी तत्वों के परिवर्तनशील होने के कारण ऊंचाई एवं वायुदाब के बीच कोई सीधा आनुपातिक सम्बन्ध नहीं पाया जाता है।
  • धरातल पर वायुदाब का सर्वप्रथम अनुभव 1650 में ऑटोवान गैरिक ने किया था।

धरातल पर वायुदाब की पेटियों का वितरण:-
  • वायुदाब के क्षैतिज वितरण को देखने पर धरातल पर वायुदाब की 4 स्पष्ट पेटियां पायी जाती है -

भूमध्यरेखीय निम्न वायुदाब की पेटी -
  • इसका विस्तार भूमध्य रेखा के दोनों ओर  50 अक्षांशों के बीच निम्न वायुदाब की पेटी का विस्तार पाया जाता है, लेकिन स्थिति भी स्थायी न होकर परिवर्तनशील होती हैं, क्योंकि सूर्य के उत्तरायण एवं दक्षिणायन होने के कारण इस पेटी में ऋतुवत स्थानान्तरण एवं खिसकाव होता रहता है।
  • भूमध्य रेखा पर वर्ष भर सूर्य के लम्बवत चमकने के कारण यहां सदैव उच्च तापमान की दशा पायी जाती है। जिसके कारण हवा गतिशील होकर ऊपर उठती है तथा उसमें प्रसार होता है। फलस्वरूप सदैव निम्न वायुदाब रहता है। 
  • इस प्रकार वायुमंडल में संवहन धाराएं उत्पन्न हो जाती है। इस क्षेत्र में धरातल पर पवनों में गतिकम होने के कारण शांत क्षेत्र या डोलड्रम कहा जाता है।
  • यह तापजन्य पेटी है।
परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण प्रश्न पढ़ें:-

उपोष्ण कटिबंधीय उच्च वायुदाब की पेटियां -
  • भूमध्य रेखा से 300-350 अक्षांशों पर दोनों गोलार्द्धों में उच्च वायुदाब की पेटियों की उपस्थिति पायी जाती है। 
  • इस पेटी का उच्च दाब तापमान से सम्बन्धित न होकर पृथ्वी की दैनिक गति तथा वायु के दबाव से सम्बन्धित है। विषुवत रेखा तथा उपध्रुवीय निम्न वायुदाब पेटियों की वायु इन अक्षांशों में नीचे उतरती है जिससे यहां वायुदाब अधिक हो जाता है। 
  • अतः यह गतिजन्य पेटी है।
  • उच्च वायुदाब वाली इस पेटी को ‘अश्व अक्षांश’ कहते हैं क्योंकि अत्यधिक वायुदाब के कारण इस क्षेत्र में जलयानों की गति मन्द हो जाती है।

उपध्रुवीय निम्न वायुदाब पेटी -
  • दोनों गोलार्द्धों में 600-650 अक्षांशों के बीच निम्न वायुदाब की पेटियां पायी जाती है।
  • इन पेटियों का निम्न वायुदाब भी तापजन्य न होकर गतिजन्य ही है, क्योंकि यहां वर्ष भर कम तापमान पाया जाता है।
  • इस पेटी में पृथ्वी की घूर्णन गति के कारण हवा फैलकर स्थानान्तरित हो जाती है और निम्न वायुदाब का क्षेत्रफल बन जाता है।

ध्रुवीय उच्च वायुदाब की पेटियां -
  • उत्तरी एवं दक्षिणी दोनों ध्रुवों पर अत्यधिक कम तापमान के कारण उच्च वायुदाब की पेटियों की उपस्थिति पायी जाती है।
  • यह उच्च वायुदाब तापजन्य ही होता है, क्योंकि पृथ्वी की घूर्णन गति का प्रभाव तापमान के बहुत ही कम होने के कारण नगण्य हो जाता है।


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