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हिन्दी अब उच्च भारतीय वर्ग की भाषा नहीं ...

byDivanshuGS -December 02, 2018
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  • यकीनन यह कथन सत्य है कि अब हिन्दी उच्च बौद्धिक वर्ग की भाषा नहीं रही है। सिर्फ पिछले 11 वर्षों में मैंने जयपुर शहर से हिन्दी को अलविदा होते देखा है। यह सत्य है कोई इस पर यकीन करे या न करे।
  • आज का युवा विशेषकर गांवों व छोटे शहरों से पढ़कर आया है उसे प्राइवेट जॉब्स के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ रहा है। उसे प्राइवेट जॉब्स के लिए अंग्रेजी भाषा सीखनी पड़ रही है। यदि अंग्रेजी में कम्यूनिकेशन नहीं तो जॉब नहीं। हां मैं खुद एम.ए., बी.एड हूं और कम्पनी में जॉब करता हूं पर वहां हिन्दी की पोस्ट है इसलिए। पर मेरा भविष्य आज भी असुरक्षित है क्योंकि मेरी अंग्रेजी बहुत ही कमजोर है पढ़ समझ सकता हूं पर बोल नहीं सकता।
  • हां, मैंने जॉब चेंज करने की सोची और कई विज्ञापन देखें पर सब के सब अंग्रेजी में तेज तर्रार बोलने व समझने वाला हो तो आपके लिए नौकरी है। वरना तो घर बैठो।
क्या कहा आपने?
  • जी हां, इंग्लिश बहुत जरूरी है हमारे संस्थान में नौकरी के लिए।
  • यह सुनकर युवा हताश हो जाता है। हम हमारे ही देश व हिन्दी राज्य में उपेक्षित है वो भी हमारी मातृभाषा में बोलचाल के कारण।
  • कितना अजीब संयोग है यह कि हम हिन्दी भाषी राज्य में है और हमें जॉब्स नहीं मिला रहा।
  • ये संस्थान वाले यह क्यूं नहीं सोचते हैं कि हमें हिन्दी माध्यम वाले लोगों से ही कम्यूनिकेशन करना है।
एक ने प्रश्न पूछा जब आप अलरेडी बी.एड. हो तो क्यूं न किसी हिन्दी स्कूल में पढ़ा लेते, एजुकेशन में भी बहुत जॉब्स हैं?
सर आपका प्रश्न सही है बहुत जॉब है पर किनके लिए?


जयपुर में, नहीं सर यहां का उच्च वर्ग अब शेक्सपियर की भाषा (अंग्रेजी) बोलते हैं और हम ठहरे ठेठ हिन्दी भाषी कभी कोशिश ही नहीं कि इंग्लिश सीखने की।
क्यों नहीं की?
कभी लगा नहीं कि हिन्दी की इतनी तौहीन होगी। और हम गाँवों व छोटे शहरों में पढ़े थे तो उन जगहों पर अंग्रेजी माध्यम की स्कूल नहीं हुआ करती थी। इसलिए हमें अंग्रेजी से डर लगता था और हम जॉब के लिए असफल हो गए।
  • रही बात स्कूलों की अब वो दम नहीं कि हिंदी मीडियम वाले अच्छी तनख्वाह दे और इंग्लिश मीडियम वाले हम हिंदी वालों को रखेंगे नहीं क्योंकि वे अपने विद्यालय का रिजल्ट खराब नहीं करना चाहते हैं। यह भी हो कि यदि कोई माता-पिता हमसे अंग्रेजी में वार्तालाप करने लगे तो विद्यालय प्रशासन को हिलाकर नहीं रख दे।
  • हम अपनों से बेगाने हो गए।
  • कोई जमाना था जब अंग्रेज भारत आकर हिंदी और संस्कृत भाषा सीखने को लालायित रहते थे। वो दौर था जब भारत सोने की चिड़िया कहलाता था और पूरा विश्व भारत में व्यापार के लिए आते थे। उस दौर में शायद हिन्दी को बढ़ावा मिला हो क्योंकि तब जरूरत थी लोगों की और अब हमारी।
  • हिन्दी सिनेमा जरूर अभी कामयाब है वो भी इसलिए अभी गांवों के युवा हिन्दी भाषी है। पर अब परिवेश बदल रहा है वहां भी अंग्रेजी पैर पसार रही है क्योंकि युवा को पता है हमारी कितनी पूछ है अंग्रेजी के इस दौर में। 
  • शायद हिन्दी का इतना बुरा दौर कभी न आता अगर हमारा हिन्दी भाषी सिनेमा अंग्रेजी को बढ़ावा न देता। अक्सर देखा जाता है जब अवार्ड सेरेमनी होता है तो अंग्रेजी बोलने की होड़ देखी जाती है। जबकि दर्शक ज्यादातर हिंदी भाषी हैं।
  • पर जयपुर जैसे शहर के बहुत से लोग अंग्रेजी फिल्मों की तारीफ करते नजर आ जाते हैं। जोकि हिन्दी सिनेमा के लिए घातक है।
  • पर हमें तो अपनी रोजी-रोटी की सोचना है वे तो क्या है अंग्रेजी फिल्मों में काम कर लेंगे पर अपनी लिए तो हिन्दी ही माय-बाप है क्योंकि अब उम्र का भी तो तकाजा है। अंग्रेजी सीखें तो पता चले कि हम तो ओवरऐज हो गया। 
  • हां, दोस्तों इस वाकिये से आप में से कुछ लोग तो जानते होंगे पर आने वाले दिनों में हमें और भी ज्यादा संघर्ष करना होगा क्योंकि आर्टिफिशयल इंटेलीजेंसी उद्योग बहुत तेजी से बढ़ रहा है।
    ये तो बड़े लोग है जो यह कहते हैं कि इससे युवाओं का रोजगार नहीं छिनेगा?
  • पर सच तो यह है कि पैसे वाला हम युवा पर विश्वास नहीं करेगा और स्किल के अभाव में हमें रिजक्ट कर दिया जाएगा।
  • तो दोस्तों आप जरूर सही निर्णय लेना क्योंकि अंग्रेजी हमें अपने ही देश में परदेशी कर देगी।
  • तो पंसद आये तो जरूर कमेंट करना और कोई सुझाव जरूर देना।


Tags: laghu_sansad_ka_sach
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