दक्ष निष्क्रिय नीति क्या थी? इसका क्यों त्याग किया गया?



  • दक्ष निष्क्रिय नीति का सम्बन्ध आंग्ल-अफगान विदेश नीति से है। यह नीति लॉर्ड एलेनबरो के काल से प्रारंभ होकर लॉर्ड नार्थब्रुक के समय तक चलती रही, परन्तु लॉरेंस के समय में इस नीति की रूपरेखा स्पष्ट रूप से निश्चित कर दी गयी। 
  • प्रथम आंग्ल-अफगान युद्ध से अंग्रेजों को कोई लाभ न हुआ। अंग्रेजों के न चाहते हुए भी दोस्त मोहम्मद अफगानिस्तान की गद्दी पर पुनः बैठा। इसके पश्चात् अंग्रेज अफगानिस्तान की तरफ से निराश हो उठे। उन्होंने अफगानिस्तान के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करने की नीति अपनायी। 
  • यह निर्णय लिया गया कि ब्रिटिश अफगानिस्तान के आंतरिक झगड़ों और उत्तराधिकार के युद्धों में नहीं उलझेंगे, परन्तु जो भी शासक अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के लिए उनकी सहायता मांगेंगे उसे वे मदद देंगे। वायसराय लॉरेंस के समय बिना रूस से उलझे हुए अफगानिस्तान के मध्यवर्ती राज्य बनाकर भारत में ब्रिटिश राज को सुदृढ़ बनाने की रणनीति बनायी गयी थी। 
  • लॉरेंस के पश्चात् मेयो एवं नार्थब्रुक के समय में भी दक्ष निष्क्रिय नीति का पालन किया गया था।
  • परन्तु 1876 में लिटन के भारत का वायसराय बनकर आने के बाद यह नीति त्याग दी गई। लिटन के समय में ब्रिटिश सरकार एशिया और यूरोप में रूसी शक्ति के प्रसार को रोकना चाहती थी। 
  • परिणास्वरूप अफगानिस्तान के मामले में ‘अग्रगामी’ नीति अपनायी गई। अब अफगानिस्तान पर नियंत्रण स्थापित करने के प्रयास पुनः किये गये, जिसकी परिणति द्वितीय आंग्ल-अफगान युद्ध के रूप में हुई।


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