भारत छोड़ों आन्दोलन Bharat Chodo Aandolan


भारत छोड़ों आन्दोलन के प्रति विभिन्न राजनीतिक दलों के दृष्टिकोणों का मूल्यांकन कीजिए?


भारत में सभी राजनीतिक दल भारत छोड़ों आंदोलन के पक्ष में नहीं थे। कांग्रेस तथा समाजवादी दल के सदस्यों ने इस प्रस्ताव का स्वागत किया, परंतु मुस्लिम लीग, उदारवादी तथा साम्यवादियों ने इसका खण्डन किया।
द्वितीय विश्व युद्ध में जब रूस को जर्मनी के आक्रमण का सामना करना पड़ा तो रूस मित्र देशों के गुट में शामिल हो गया। ऐसी परिस्थितियों में साम्यवादी दलों ने भारत के लोगों से अंग्रेजों की सहायता करने के लिए कहा तथा भारत छोड़ों आंदोलन के आलोचक हो गये।
मुस्लिम लीग ने जिन्ना के नेतृत्व में इस आन्दोलन की निन्दा की। जिन्ना के अनुसार इस आन्दोलन में गांधीजी का उद्देश्य मुस्लमानों और अन्य अल्पसंख्यकों पर कांग्रेस हिन्दुओं की सत्ता स्थापित करना है। हिन्दू महासभा ने यद्यपि ब्रिटिश सरकार की कटु आलोचना की, मगर आन्दोलन में हिन्दुओं को भाग लेने से रोका नहीं। परन्तु शीघ्र ही 31 अगस्त, 1942 के एक प्रस्ताव में इसने पूर्ण स्वतंत्रता और भारत में राष्ट्रीय सरकार की मांग की।
उदारवादियों ने भी आन्दोलन की आलोचना की। उदारवादी नेता सर तेज बहादुर सप्रू ने कांग्रेस के प्रस्ताव को अकल्पित तथा असामयिक बताया। दलितों के नेता अंबेडकर ने भी इसका विरोध किया। उनके अनुसार कानून और व्यवस्था कमजोर करना पागलपन है, जबकि दुश्मन हमारी सीमा पर है।
अन्य दलों जैसे अकाली दल, ईसाइयों ने भी इस आन्दोलन का विरोध किया, परन्तु पारसी इस आन्दोलन के पक्ष में थे। इस प्रकार स्पष्ट होता है कि कांग्रेस तथा समाजवादी दल ही इस आन्दोलन के पक्ष में थे।

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