राजसमन्द_झील


  • राजसमन्द जिले में स्थित राजसमन्द झील में गोमती नदी का पानी आकर गिरता है।
  • इसे मेवाड़ के महाराणा राजसिंह के शासनकाल (1662-80) में दो पहाड़ियों के बीच दीवार बनाकर स्थानीय नदियों के जल प्रवाह को रोक कर बनाई गई इस झील का न केवल प्राकृतिक सौन्दर्य मनमोहक ही नहीं अपितु शिल्प एंव स्थापत्य की दृष्टि से भी ये बेजोड़ है।
  • श्वेत संगमरमर से बनी बांध की दीवार के प्रमुख भाग पर तीन मंडप तथा चार कलात्मक तोरणद्वार है। चौकियों पर लगे 25 शिलापट्टों पर राजप्रशस्ति महाकाव्य उत्कीर्ण है। इसके रचनाकार रणछोड़ भट्ट है। यह शिलालेख 1676 ई. में खुदवाया गया था।
  • इसमें मेवाड़ के प्रारंभिक इतिहास के साथ-साथ विशेष रूप से महाराणा राजसिंह के जीवन चरित्र एवं उपलब्धियों की जानकारी मिलती है। 17वीं शताब्दी के सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक एवं राजनैतिक स्थिति का विस्तार से वर्णन किया गया है। यह सबसे लम्बें शिलालेखों में से एक है तथा राजस्थान में पत्थर पर उत्कीर्ण प्रथम महाकाव्य है।
  • प्रमुख बांध का भाग चार स्तरों में बंटा है तथा प्रत्येक स्तर पर नौ सीढ़ियां बनी हैं, इसीलिए इन्हें नौ चौकी कहा जाता है। इन चौकियों पर तीन मण्डप हैं। आलंकारिक अभिप्रायों से अलंकृत स्तम्भ तथा छतों में फूल-पत्तियों के अद्भुत अलंकरण के अलावा नेत्ररंजक मूर्ति षिल्प भी दर्शकों को अभिभूत कर देता है। मूर्तियों में देवी-देवता, दषावतार, अप्सरा, नृत्यांगनाएं, वाद्यवादकों के अलावा कृष्ण लीला का भी मनोहारी अंकन हुआ है।
  • सिलीसेढ़ झील


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