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साख है उनकी तभी तो धाक है उनकी


किस पर विश्वास करें, कहते हैं जिसके हाथों जीवन डोर थमाते हैं वही सच नहीं बोलता।
कुछ ऐसा ही हो रहा है देश के कुछ राज्यों में चुनाव का दंगल जारी है। हमने मीडिया पुरोहित के चुनावी विश्लेषण को पढ़ा और बड़ा आश्चर्य हुआ या तो पुरोहित साहब झूठ लिख रहे थे या फिर जन प्रतिनिधि।
लिखा था एक मुख्यमंत्री साहब पिछले तीन कार्यकाल पूरा किया और इस बार भी मैदान में है लेकिन आश्चर्य की बात है कि उन्होंने खुद पर करोडों रुपये का कर्ज बताया हैं। उसका जिक्र उन्होंने बड़ी ईमानदारी से इस बार के चुनावों में पर्चा दाखिल करते समय अपनी आय का लेखा-जोखा भरा है।
खैर हमें क्या?
एक आवाज सुनी हमने, वह कह रहा था लोग हमें 50 हज़ार रुपये कर्ज नहीं देते हैं और मुख्यमंत्री साहब को करोड़ों रुपये का कर्ज दे रखा। देखों यार इसे क्या कहें? रूतबा या मुख्यमंत्री की ईमानदारी।
अरे, भैय्या हमें तो सेठ-साहूकार रुपये तो देते है पर कोई 2 रुपये सैकड़ा तो कोई 5 रुपये सैकड़े ब्याज पर।
मुख्यमंत्री जी है वे, सेठ-साहूकार उनसे अलग है का, जब सरकार ही उनकी हो।
किसकी हिम्मत होगी 2 रुपये सैकड़े ब्याज लेने की तेरी
अरे भैय्या नाराज काहे हो रहे हो?
हमने तो बस मजाक में बोला... कि
बस कर हम हमारे मुख्यमंत्री जी के खिलाफ एक भी लव्ज नहीं सुनना चाहते हैं। अगर वे बेइमान होते तो क्या अपना कर्जा लोगों के सामने जाहिर करते।
हां वे ईमानदार है तभी तो इतना साहस हुआ।
वरना तो क्या उनकी पार्टी के लोग बड़े नेता पागल थोड़े ही है जो उनको टिकट देते।
साख है उनकी तभी तो धाक है उनकी।
वैसे भी जन नेता की पहचान ही कुछ ऐसी होती है। ईमानदार भी बेइमान कहलाने लगते हैं।
ऐसी काबिलियत है उनकी वरना वे आज कुछ मंत्रियों की तरह सात पीढ़ियों के लिए पैसा जोड़ चुके होते।
हां ऐसा ही सुनने में आता है। एक बार सरपंच बनो और सात पीढ़ियों का बन्दोबस्त।

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