सिंधु घाटी की सभ्यता संस्कृति और धर्म के बारे में क्या प्रकाश डालती है?

सिंधु घाटी सभ्यता से सम्बन्धित आधुनिक उत्खनन कहां किया गया। यह प्राचीन संस्कृति और धर्म के बारे में क्या प्रकाश डालती है?


  • सिंधु घाटी सभ्यता का आधुनिक उत्खनन पिछले दशक में धौलावीरा, हुलास, कच्छ, बेयट, बरौर द्वारिका, खम्भात आदि क्षेत्रों में हुआ है। सामुद्रिक पुरातत्व के विकास के साथ सिन्धु सभ्यता के अनेक नवीन पक्षों पर साक्ष्यों के आधार पर प्रकाश डाला जा सकता है। धर्म किसी भी समाज के सांस्कृतिक जीवन का आधार होता है।
  • सिंधु घाटी सभ्यता (हड़प्पा)  के निवासियों के धर्म की कुछ विशेषताएं वर्तमान में हिन्दू-धर्म में भी प्रचलित है। हस सभ्यता मं धर्म सम्बन्धी जानकारी के प्रमुख स्रोत यहां से प्राप्त मिट्टी की मूर्तियां, पत्थर की मृण्मूर्तियां, मोहरें, पत्थर निर्मित लिंग व योनियों, मृदभाण्ड़ों पर चित्रित चिह्न आदि है।

मातृदेवी की उपासना-


  • उत्खनन में मिट्टी की बहुसंख्या में नारी की मूर्तियां प्राप्त हुई हैं इन्हें मातृदेवी की मूर्तियां माना गया है। कुछ पर धुंए के निशान हैं, जिससे यह प्रतीत होता है कि उपासना के लिए धूप-दीप जलाया गया होगा।
  • हड़प्पा से प्राप्त एक मूर्ति के गर्भ से निकलता हुआ पौधा दिखाया गया है, संभवतः यह पृथ्वीमाता की प्रतिमा है। यहां के निवासी पृथ्वी को उर्वरता की देवी मानकर उसकी पूजा करते थे। परवर्ती युग में शाक्त धर्म में भी देवी की प्रतिष्ठा मिलती है।

पशुपति (शिव) की उपासना-


  • पुरातात्विक एवं आधुनिक उत्खनन से इस बात को भी पुष्ट करते हैं कि यहां पशुपति या आदि शिव की भी पूजा होती थी। 
  • मोहनजोदड़ों से प्राप्त एक मोहर (सील) पर तीन मुख वाला पुरुष ध्यान की मुद्रा में बैठा हुआ है। उसके सिर पर तीन सींग हैं, उसके बांयी ओर एक गेंडा और भैंसा तथा दांयी ओर हाथी, बाघ तथा नीचे हिरण है। इसे पशुपति शिव के रूप में माना जाता है। 
  • मार्शल ने इसे आदि शिव माना है।


Post a Comment

0 Comments