2. गोगाजी - सांपों के देवता, जाहरपीर
जन्म स्थान - वि. सं. 1003 गोगाजी का जन्म ददरेवा (चुरू) में।
चौहान वंशीय जेवरसिँह और बाछल इनके पिता-माता थे। केलमदे से विवाह हुआ।
समाधि - गोगामेड़ी, नोहर तहसील (हनुमानगढ)
वे एक वीर योद्धा भी थे जिसकी महमूद गजनवी ने तारीफ में कहा फड़ यह तो 'जाहरपीर' अर्थात साक्षात् देवता है। किसान खेत में बुआई करने से पहले गोगाजी के नाम की राखी 'गोगा राखड़ी' हल और हाली, दोनों को बांधते है। गोगाजी की पूजा भाला लिए योद्धा के रूप में होती हैं।
प्रमुख स्थल:- शीर्षमेडी ( ददेरवा), धुरमेडी - (गोगामेडी- नोहर, हनुमानगढ़) में।
गोगामेंडी की बनावट मक़बरेनुमा है। गोगाजी की ओल्डी सांचोर (जालौर) में है। इनका मेला भाद्रपद कृष्ण नवमी (गोगा नवमी) को भरता है। इस मेले के साथ-साथ राज्य स्तरीय पशु मेला भी आयोजित होता है। यह पशु मेला राज्य का सबसे लम्बी अवधि तक चलने वाला पशु मेला है।
इनके थान खेजड़ी वृक्ष के नीचे होते है, जहाँ सर्प की आकृति में पूजा होती है। गोरखनाथ जी इनके गुरू थे। घोडे़ का रंग नीला है।
गोगाजी हिन्दू तथा मुसलमान दोनों धर्मो में समान रूप से लोकप्रिय थे। धुरमेडी के मुख्य द्वार पर "बिस्मिल्लाह" अंकित है। इनके लोकगाथा गीतों में डेरू नामक वाद्य यंत्र बजाया जाता है।
जन्म स्थान - वि. सं. 1003 गोगाजी का जन्म ददरेवा (चुरू) में।
चौहान वंशीय जेवरसिँह और बाछल इनके पिता-माता थे। केलमदे से विवाह हुआ।
समाधि - गोगामेड़ी, नोहर तहसील (हनुमानगढ)
वे एक वीर योद्धा भी थे जिसकी महमूद गजनवी ने तारीफ में कहा फड़ यह तो 'जाहरपीर' अर्थात साक्षात् देवता है। किसान खेत में बुआई करने से पहले गोगाजी के नाम की राखी 'गोगा राखड़ी' हल और हाली, दोनों को बांधते है। गोगाजी की पूजा भाला लिए योद्धा के रूप में होती हैं।
प्रमुख स्थल:- शीर्षमेडी ( ददेरवा), धुरमेडी - (गोगामेडी- नोहर, हनुमानगढ़) में।
गोगामेंडी की बनावट मक़बरेनुमा है। गोगाजी की ओल्डी सांचोर (जालौर) में है। इनका मेला भाद्रपद कृष्ण नवमी (गोगा नवमी) को भरता है। इस मेले के साथ-साथ राज्य स्तरीय पशु मेला भी आयोजित होता है। यह पशु मेला राज्य का सबसे लम्बी अवधि तक चलने वाला पशु मेला है।
इनके थान खेजड़ी वृक्ष के नीचे होते है, जहाँ सर्प की आकृति में पूजा होती है। गोरखनाथ जी इनके गुरू थे। घोडे़ का रंग नीला है।
गोगाजी हिन्दू तथा मुसलमान दोनों धर्मो में समान रूप से लोकप्रिय थे। धुरमेडी के मुख्य द्वार पर "बिस्मिल्लाह" अंकित है। इनके लोकगाथा गीतों में डेरू नामक वाद्य यंत्र बजाया जाता है।
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